________________
तीर्थकर की अवधारणा : ८१
२१. नमि-तीर्थकर
नमिनाथ वर्तमान अवसर्पिणी काल के इक्कीसवें तीर्थंकर माने गये हैं।' इनका जन्म मिथिला के राजा विजय की रानी वप्रा की कुक्षि से माना गया है ।२ इनके शरीर की ऊँचाई १५ धनुष और वर्ण कांचन माना गया है। इन्होंने वोरसली वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। अपनी १० हजार वर्ष की आयु व्यतीत कर इन्होंने निर्वाण प्राप्त किया ।५ इनकी शिष्य सम्पदा में २० हजार भिक्ष और ४१ हजार भिक्षुणियाँ थीं ऐसा उल्लेख है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों का उल्लेख है-सिद्धार्थ राजा और अपराजित विमान में ३३ सागर की आयु वाले देव ।
बौद्ध एवं हिन्दू परम्पराओं में इनका उल्लेख उपलब्ध है। बौद्ध परम्परा में नमि नामक प्रत्येकबुद्ध का और हिन्दू परम्परा में मिथिला के राजा के रूप में नमि का उल्लेख है।
उत्तराध्ययनसूत्र के ९ वें अध्याय "नमि प्रव्रज्या" में नमि के उपदेश विस्तार से संकलित हैं। सूत्रकृतांग में अन्य परम्परा के ऋषियों के रूप में तथा उत्तराध्ययन के १८ वें अध्ययन में प्रत्येकबुद्ध के रूप में भी नमि का उल्लेख है । यद्यपि तीर्थकर नमि और इन ग्रन्थों में वर्णित नमि एक हो हैं यह विवादास्पद है। जैनाचार्य इन्हें भिन्न-भिन्न व्यक्ति मानते हैं-किन्तु हमारी दृष्टि में वे एक ही व्यक्ति हैं वस्तुतः नमि की चर्चा उस युग में सर्वसामान्य थी-अतः जैनों ने उन्हें आगे चलकर तीर्थंकर के रूप में मान्य कर लिया। उत्तराध्ययन के 'नमि' तीर्थकर नमि ही हैं, क्योंकि दोनों का जन्म स्थान भी मिथिला ही है । २२. अरिष्टनेमि-तीर्थकर
अरिष्टनेमि वर्तमान अवसर्पिणी काल के बाईसवें तीर्थंकर माने गए हैं। १. समवायांग, ३०, ४१, १५८, कल्पसूत्र १८४, स्था० ४११, आ० नि०
३७१, ४१९ वि० आ० भा० १७५९ । २. समवायांग १५७, आ० नि० ३८६, ३८९ । ३. वही, १५७, आ० नि० ३८० ३७७ । ४. वही, १५७ । ५. स्थानांग ७३५, आ० नि० २७२-३०५ । ६. आवश्यकनियुक्ति, २५८ । ७. समवायांग, गा० १५७, उत्त० नि०, पृ० ४९६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org