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३४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन को प्रत्येकबुद्ध कहा गया है। इसी प्रकार इसिभासियाई के निम्न ४५ ऋषियों को भी प्रत्येकबुद्ध कहा गया है
१-देवनारद, २-वज्जियपुत्त, ३-असित देवल, ४-अंगिरस भारद्वाज, ५-पुप्फसालपुत्त, ६-वागलचीरी, ७-कुम्मापुत्त, ८-केतलीपुत्त, ९-महाकासव, १०-तेत्तलिपुत्त, ११-मंखलीपुत्त, १२-जण्णवक्क, ( याज्ञवल्क्य ) १३-भयाली मेतेज्ज, १४-बाहुक, १५-मधुरायण, १६-सोरियायण, १७-विदुर, १८-वरिसव कण्ह ( वारिषेणकृष्ण ), १९-आरियायण, २०उक्कल, २१-गाहावतिपुत्त तरुण, २२-दगभाल, २३-रामपुत्त, २४-हरिगिरि, २५-अंबड, २६-मातंग, २७-वारत्तए, २८-अद्दएण, २९-वद्धमाण, ३०-वायु,३१-पास, ३२-पिग, ३३-महासालपुत्तअरुण, ३४-इसिगिरिमाहण, ३५-अद्दालअ, ३६-तारायण, ३७-सिरिगिरिमाहणपरिव्वाय, ३८-सातिपुत्तबुद्ध, ३९-संजए, ४०-दीवायणं, ४१-इंदनाग, ४२-सोम, ४३-जम, ४४-वरुण, ४५-वेसमण ।
जैन परम्परा के अनुसार वे साधक जो कैवल्य या वीतराग दशा की उपलब्धि के लिए न तो अन्य किसी के उपदेश की अपेक्षा रखते हैं और न संघीय जीवन में रहकर साधना करते हैं वे प्रत्येकबुद्ध कहलाते हैं । प्रत्येकबुद्ध किसी निमित्त को पाकर स्वयं ही बोध को प्राप्त होता है तथा अकेला ही प्रवजित होकर साधना करता है । वीतराग अवस्था और
१. उत्तराध्ययन चूर्णी १८१६ २. पत्तेय बुद्ध मिसिणो वीसं तित्थे अरिट्ठणेमिस्स ।
पासस्य य पण्णरस वीरस्स विलीणमोहस्स ॥१॥ णारद-वज्जिय-पुत्ते असिते अंगरिसि-पुप्फसाले य । वक्कलकुम्मा केवलि कासव तह तेतलिसूत्ते य ॥२॥ मंखली जण्णभयालि बाहुय महु सोरियाण विदूविंपू । वरिसकण्हे आरिय उक्कलवादो य तरुणे य ॥ ३ ॥ गद्दभ रामे य तहा हरिगिरि अम्बड मयंग वारत्ता।। तंसो य अद्द य वद्ध माणे वा तीस तीमे ॥ ४ ॥ पासे पिंगे अरुणे इसिगिरि अद्दालए य वित्तेय । सिरिगिरि सातियपुत्त संजय दीवायणे चेव ।। ५ ॥ तत्तो य इंदणागे सोम यमे चेव होइ वरुणे य । वेसमणे य महप्पा चत्ता पंचेव अक्खाए ॥ ६ ॥
-इसिभासियाई संगहिणी गाथा परिशिष्ट १, पृ० २९७
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