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५६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन विकसित होकर सुनिश्चित हुई है । इसी प्रसंग में अतीत एवं अनागत तीर्थकरों और बुद्धों की कल्पना विकसित हुई जो तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण कही जा सकती है ।
अब हम ग्रन्थ की सीमा को देखते हुए भूतकालीन और आगामी तीर्थंकरों के नाम निर्देश के साथ वर्तमान अवसर्पिणी काल के तीर्थंकरों के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालेंगे। तीर्थंकरों की संख्या-वर्तमान, अतीत और अनागत काल के तीर्थङ्कर
यद्यपि भागवत में विष्णु के अनन्त अवतार बताये गये हैं फिर भी वैष्णवों में चौबीस अवतार की अवधारणा प्रसिद्ध है। उसो प्रकार जैन ग्रन्थ महापुराण में यद्यपि भूत और भविष्य की अनन्त चौबीसियों के आधार पर अनन्त जिनों को कल्पना की गई है। फिर भी जैनों में चौबीस तीर्थंकरों की अवधारणा ही अधिक प्रचलित रही है तथा विविध क्षेत्रों और कालों को अपेक्षा से अनन्त चौबीसियों की कल्पना की गई ।
जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकर इस प्रकार हैं
१. ऋषभ, २. अजित, ३. संभव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पद्मप्रभ, ७. सुपार्श्व, ८. चन्द्रप्रभ, ९. सुविधि-पुष्पदन्त, १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, १७. कुन्थु, १८. अर, १९. मल्लो, २०. मुनिसुव्रत, २१. नमि, २२. नेमि, २३. पाश्र्व और २४. वर्धमान ।
१. भागवत १।२।५; २।६।४१-४५ २. णाइ णन्तु भाविणिहि णिरुतउ, एहउ वीरजिणिदेवुतउ । पढ़तु समासमि कालु अणाइउ, सो अणन्तु जिणणाणि जाइउ ॥
__-महापुराण २।४ ३. जबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था ।
तं जहा-उसभे १, अजिये २, संभवे ३, अभिणंदणे ४, सुमई ५, पउमप्पहे ६, सुपासे ७, चंदप्पभे ८, सुविहि-पुष्पदंते ९, सीयले १०, सिज्जसे ११, वासुपुज्जे १२, विमले १३, अणंते १४, धम्मे १५, संती १६, कुंथू १७, अरे १८, मल्ली १९, मणिसुव्वए २०, णमी २१, मी २२, पासे २३, वड्ढमाणो २४ । -समवायांग, श्री मधुकर मुनि, प्रकीर्णक समवाय ६३५ ।
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