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तीर्थंकर की अवधारणा : ७१
था तथा इनका जन्मस्थान चन्द्रपुर था।' इनके शरीर की ऊँचाई १५० धनुष मानी गई है। इनके शरीर का वर्ण चन्द्रमा के समान श्वेत बताया गया है । इनको नागवृक्ष के नीचे बोधिज्ञान प्राप्त हुआ था। इनको शिष्य सम्पदा में ढाई लाख भिक्षु और ३ लाख ८० हजार भिक्षुणियाँ थीं। त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों--पद्म राजा और अहमिन्द्र देव का उल्लेख मिलता है ।
अन्य परम्पराओं में इनका कहीं भी उल्लेख उपलब्ध नहीं है । ९. सुविधि या पुष्पदन्त
सुविधिनाथ जैन परम्परा के नवें तीर्थंकर माने गये हैं । इनका जन्म काकन्दो नगरी के राजा सुग्रोव के यहाँ हुआ था और इनकी माता का नाम रामा था। इनके शरीर की ऊँचाई १०० धनुष बताई गयी है। इनके शरीर का वर्ण चमकते हये चन्द्रमा के समान बताया गया है। इनको काकन्दी नगरी के बाहर उद्यान में मल्लिका वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हआ था तथा २ लाख पूर्व वर्ष आयु व्यतीत करने के पश्चात निर्वाण लाभ हुआ था। इनके संघ में २ लाख साधु एवं ३ लाख साध्वियां थीं।२ अन्य परम्पराओं में इनका भी उल्लेख नहीं मिलता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-महापद्म राजा और अहमिन्द्र देव का वर्णन हुआ है।
१. समवायांग गाथा १५७; आवश्यकनियुक्ति, ३८२, ३८५, ३८७ । २. वही गा० १०१; आवश्यकनियुक्ति, ३७८ । ३. आवश्यकनियुक्ति, ३७६ । ४. समवायांग गा० १५७; स्थानांग, ७३५; आवश्यकनियुक्ति, २७२-३०७ । ५. वही, गा० ९३; आवश्यकनियुक्ति २५७, २६६ । ६. कल्पसूत्र, १९६; आवश्यकनियुक्ति १०९१ । ७. समवायांग गा० १५७; आवश्यकनियुक्ति, ३८५, ३८८ । ८. वही, गा० १००; आवश्यकनियुक्ति, ३८५, ३८८ । ९. आवश्यक नियुक्ति, ३७६ । १०. समवायांग गाथा १५७ । ११. आवश्यकनियुक्ति, ३०३, ३०७ । १२. वही, २५७, २६१ ।
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