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४८ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
नेमि और ऋषभदेव के सम्बन्ध में भी किंचित् विवरण मिलता है, शेष तीर्थंकरों का केवल नामनिर्देश ही है । इसके पश्चात् तीर्थंकरों के सम्बन्ध में जानकारी देने वाले ग्रन्थों में समवायांग और आवश्यक नियुक्ति का काल आता है । समवायांग और आवश्यकनियुक्ति संक्षिप्त शैली में ही सही, किन्तु वर्तमान भूतकालिक और भविष्यकालिक तीर्थंकरों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं । दिगम्बरपरम्परा में ऐसा ही विवरण यतिवृषभ की तिलोयपण्णत्ति में मिलता है । श्वेताम्बर आगम ग्रन्थ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ऋषभ के सम्बन्ध में और ज्ञाताधर्मकथा मल्लि के सम्बन्ध में विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हैं। तिलोयपण्णतिके बाद दिगम्बर परम्परा में पुराणों का क्रम आता है। पुराणों में तीर्थंकरों के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में विपुल सामग्री उपलब्ध है । श्वेताम्बर परम्परा में स्थानांग, समवायांग, कल्पसूत्र, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, आवश्यकनियुक्ति, विशेषावश्यक भाष्य, आवश्यकचूर्ण, चउपन्नमहापुरिसचरियं एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र और कल्पसूत्र पर लिखो गई परवर्ती टीकाएँ तीर्थंकरों का विवरण देने वाले महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं ।
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समवायांग में उपलब्ध विवरण
ऐसा लगता है कि तीर्थङ्कर सम्बन्धी विवरणों में समय-समय पर वृद्धि होती रहो है । हमारी जानकारी में २४ तीर्थङ्करों की अवधारणा और तत्सम्बन्धी विवरण सर्वप्रथम श्वेताम्बर परम्परा में समवायांग और विमलसूरि के पउमचरियं में प्राप्त होता है । यद्यपि स्थानांग एवं समवायांग की गणना अंग आगमों में की जाती है, किन्तु समवायांग में २४ तीर्थङ्करों सम्बन्धी जो विवरण है वह उसके परिशिष्ट के रूप में है और ऐसा लगता है कि बाद में जोड़ा गया है। इस प्रकीर्णक समवाय में तीर्थङ्करों के पिता, उनकी माता, उनके पूर्वभव, उनकी शिविकाओं के नाम, उनके जन्म एवं दीक्षा नगर का उल्लेख मिलता है। मान्यता यह है कि ऋषभ और अरिष्टनेमि को छोड़कर सभी तीर्थङ्करों ने अपनी जन्मभूमि में दीक्षा ग्रहण की थी। सभी तीर्थङ्कर एक देवदुष्य वस्त्र लेकर दीक्षित हुए। इसके साथ-साथ प्रत्येक तीर्थङ्कर ने कितने व्यक्तियों को साथ लेकर दीक्षा ली, इसका भी उल्लेख इसमें मिलता है । इसी क्रम में समवायांग में दीक्षा लेते समय के व्रत, प्रथम भिक्षादाता, प्रथम भिक्षा कब मिली इसका भी उल्लेख है । इसमें तीथंङ्करों के प्रथम शिष्य और शिष्याओं का भी उल्लेख है । समवायांग में सर्वप्रथम २४ तीर्थंङ्करों के चैत्यवृक्षों का भी उल्लेख हुआ है ।
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