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तीर्थंकर की अवधारणा : ४९
भगवती
अंग आगमों के क्रम की दृष्टि से समवायांग के पश्चात् भगवती सूत्र का क्रम आता है, यद्यपि स्मरण रखना होगा कि विद्वानों द्वारा रचनाकाल की दृष्टि से भगवती को समवायांग की अपेक्षा पूर्ववर्ती माना गया है । भगवतीसूत्र भगवान् महावीर के सम्बन्ध में समवायांग की अपेक्षा अधिक जानकारी प्रस्तुत करता है । इसमें देवानन्दा को महावीर की माता कहा गया है । महावीर और गोशालक के पारस्परिक सम्बन्ध को लेकर इसमें विस्तार के साथ चर्चा हुई है तथापि विद्वानों ने इस अंश को परवर्ती और प्रक्षिप्त माना है । भगवती में महावीर और जामालि के विवाद को भी स्पष्ट किया गया है, फिर भी इसमें महावीर के अतिरिक्त अन्य तीर्थंकरों के सम्बन्ध में नामों के उल्लेख के अतिरिक्त हमें विस्तार से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है । महावीर से पार्श्वापत्यों (पार्श्व के अनुयायियों) के मिलने एवं चर्चा करने का उल्लेख तो इसमें है किन्तु पारवं के जीवनवृत्त का भी अभाव ही है। इससे निश्चित ही ऐसा लगता है कि समवायांग के तीर्थंकर सम्बन्धी विवरण भगवती की अपेक्षा परवर्ती काल के हैं । ज्ञाताधर्मकथा
ज्ञाता कथा यद्यपि अन्य तीर्थंकरों के सम्बन्ध में तो विशेष सूचनाएँ नहीं देता है, किन्तु १२ वें तीर्थंकर मल्लि के सम्बन्ध में इसमें विस्तार से विवरण उपलब्ध है । सम्भवतः इतना विस्तृत विवरण अन्य किसी तीर्थंकर के सम्बन्ध में अंग आगमों में उपलब्ध नहीं है । विद्वानों ने ज्ञाताधर्मकथा के इस मल्लि नामक अध्याय को अपेक्षाकृत परवर्ती काल का माना है । इसमें मल्लिको स्त्री- तोर्थंकर मानकर श्वेताम्बर परम्परा की स्त्रीमुक्ति की अवधारणा को पुष्ट किया गया है । इसी आधार पर कुछ दिगम्बर विद्वान् इसे श्वेताम्बर - दिगम्बर परम्परा के विभाजन के पश्चात् का मानते हैं । इसके मल्लि नामक अध्याय में ही तीर्थंकर नाम गोत्र-कर्म उपार्जन की साधना विधि का उल्लेख है । मल्ल सम्बन्धी यह विवरण निश्चित हो समवायांग के समकालीन या अपेक्षाकृत कुछ परवर्ती है ।
अन्य अंग आगम
जहां तक उपासकदशा का प्रश्न है इसमें महावीर के काल के १० भावकों का विवरण है, इसी प्रसंग में महावीर के कुछ उपदेश भी इसमें उपलब्ध हो जाते हैं, किन्तु इसमें २४ तीर्थंकरों की अवधारणा का स्पष्ट
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