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तीर्थंकर की अवधारणा : ५३
प्रदान करने वाले आगमेतर ग्रन्थों में वसुदेवहिण्डी, विमलसूरि का पउमचरियं, शीलांक का उप्पन्नमहापुरिसचरियं और हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र उल्लेखनीय है । इनमें वसुदेवहिण्डी और पउमचरियं का मुख्य विषय तीर्थंकर चरित्र नहीं है ।
श्वेताम्बर परम्परा में तीर्थंकरों के जीवनवृत्त का विस्तृत विवेचन करने वाले ग्रन्थों में चउपन्नमहापुरिसचरियं का महत्त्वपूर्ण स्थान है । शीलांक की यह कृति लगभग ईसा की नवीं शताब्दी में लिखी गई है । सम्भवतः श्वे० जैन परम्परा में तीर्थंकरों का विस्तृत विवरण देने वाला यह प्रथम ग्रन्थ है । यद्यपि इसमें भी मुख्य रूप से तो ऋषभ, शान्ति, मल्लि, अरिष्टनेमि, पार्श्व और महावीर के कथानक विस्तार से वर्णित हैं, शेष तीर्थंकरों के जीवनवृत्त तो सामान्यतया एक दो पृष्ठों में ही समाप्त हो जाते हैं । इसके पश्चात् तीर्थंकरों के जीवनवृत्त का विवरण देने वाले ग्रन्थों में हेमचन्द्र का त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र भी महत्त्वपूर्ण माना जाता है । चउप्पन्नमहापुरिसचरियं एवं त्रिषष्टिशला कापुरुषचरित्र के पश्चात् तीर्थंकरों के जीवनवृत्त पर स्वतन्त्र रूप से अनेक चरित काव्य लिखे गए हैं जिनकी चर्चा यहाँ अपेक्षित नहीं है ।
दिगम्बर आगम ग्रन्थ
दिगम्बर परम्परा के आगम साहित्य में षट्खंडागम, कषायपाहुड़, मूलाचार, भगवतो आराधना, तिलोयपण्णत्ति एवं आचार्य कुंदकुंद के ग्रन्थ समाहित हैं। इनमें मुख्य रूप से मूलाचार और भगवतोआराधना यथाप्रसंग तीर्थंकरों के सम्बन्ध में कुछ सूचनाएं देते हैं, किन्तु इनमें सुव्यवस्थित रूप से तीर्थंकरों से सम्बन्धित विवरण उपलब्ध नहीं हैं । सर्वप्रथम हमें तिलोयपण्णत्ति में तीर्थंकरों की अवधारणा एवं जीवन सम्बन्धी सूचनाएं मिलती हैं । तिलोयपण्णत्ति में तीर्थंकरों के नाम, च्यवन स्थल, पूर्वभव, माता-पिता का नाम, जन्मतिथि और नक्षत्र, कुल नाम (धर्मनाथ, अरहनाथ और कुथुंनाथ — कुरुवंश में, पार्श्वनाथ – उग्रवंश में, महावीर - ज्ञातृ वंश में, मुनिसुमति, एवं नेमिनाथ – यादववंश में और शेष इक्ष्वाकु वंश में हुए हैं) जन्म- काल, आयु, कुमार काल, शरीर की ऊँचाई, वर्ण, राज्य काल, चिह्न, वैराग्य के कारण, दीक्षास्थल, ( नेमिनाथ द्वारका और शेष अपने जन्म स्थान ), दीक्षा तिथि, दीक्षा काल, दीक्षा तप, प्रथम भिक्षा में मिले पदार्थ, छद्मस्थ काल, केवल ज्ञान ( तिथि, नक्षत्र और स्थल ), समवसरण का रचना विन्यास, किसी वृक्ष के नीचे हुआ केवल ज्ञान, उत्पन्न यक्ष-यक्षिणी, कैवल्य काल, गणधरों की
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