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प्रथम अध्याय
गुणप्रत्यय
अनुगामी अननुगामी वर्धमान हीयमान अवस्थित अनवस्थित (अन्य क्षेत्र/ (अन्यक्षेत्र/ (बढ़ता (घटता (न घटे, (घटता, भव में साथ भव में साथ, हुआ) हुआ) नबढे) बढ़ता रहे) जाए) न जाए)
अन्य प्रकार से अवधिज्ञान के भेद
देशावधि
परमावधि
सर्वावधि
भवप्रत्यय
गुणप्रत्ययः
परमावधि और सर्वावधि के स्वामी नियम से उसी भव में मोक्ष जाते हैं।
ऋजुविपुलमती मनःपर्ययः।।23। सूत्रार्थ - ऋजुमति और विपुलमति मन:पर्ययज्ञान हैं।।23।।
विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः।।24।। सूत्रार्थ - विशुद्धि और अप्रतिपात की अपेक्षा इन दोनों में अन्तर है।।24।।
मनःपर्ययज्ञान (जो दूसरों के मन में स्थित रूपी पदार्थों को स्पष्ट जाने)
ऋजुमति * सरल को जाने
विपुलमति * सरल - कुटिल दोनों को जाने
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