Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Puja Prakash Chhabda
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 248
________________ 225 सेवन करना, पर स्त्री का रागभाव से आदर करना व स्व स्त्री के समान भाव से आलिंगन आदि करना। 8. पुरुष वेद - अल्प क्रोध, कुटिलता का अभाव, विषयों में उत्सुकता का अभाव, निर्लोभता, स्त्री के सम्बन्ध में अल्प राग होना, स्व स्त्री में सन्तोष रखना, ईर्ष्या का अभाव, स्नान-गन्ध-पुष्पमाला - आभरणादि में अनादरपना। 9. नपुंसकवेद - प्रबल क्रोध, मान, माया, लोभ के परिणाम, गुह्य इन्द्रिय का छेदना, अनंग क्रीड़ा करना, शीलवन्तों पर उपसर्ग करना, व्रती जीवों को दुःखी करना, गुणवानों की निन्दा करना, दीक्षा ग्रहण करने वालों को दुःख देना, परस्त्री के संगम का बहुत राग रखना, आचार रहित निराचारी होना। नरकायु के आसव के विशेष कारण । 1. मिथ्यादर्शन सहित आचरण करना, 2. अत्यधिक मान करना, 3. शिलाभेद के समान तीव्र क्रोध करना, 4. तीव्र लोभ के परिणाम करना, 5. निर्दयता के परिणाम रखना, 6. दूसरे जीवों को दुःख उत्पन्न करने के परिणाम रखना, 7. दूसरों का घात करने के परिणाम रखना, 8. दूसरों को बन्धन में होने का अभिप्राय रखना, 9. प्राणियों का घात करने वाला असत्य वचन कहना, 10. पर द्रव्य छीनने के परिणाम रखना, 11. मैथुन में अतिराग रखना, 12. अभक्ष्य भक्षण करना, 13. दृढ़ बैर रखना, 14. साधु की निन्दा करना, 15.तीर्थंकर की आज्ञा का विरोध करना, 16. कृष्ण लेश्या के परिणाम रखना, 17. रौद्र .. ध्यानपूर्वक मरण करना। तिबंचायुके समय के विष काल । 1. मिथ्याधर्म का उपदेश देना, 2. कपट-कूट-कुटिल कार्यों में तत्परता रखना,3. पृथ्वी रेखा के समान क्रोधीपना होना, 4. शीलरहितपना होना, 5. शब्दों द्वारा प्रवृत्ति करके तीव्र मायाचार करना, 6. दूसरे के भावों में भेद-विवाद-शत्रुता उत्पन्न कराना, 7.शब्दों का मिथ्या अर्थ करना, अति अनर्थ रूप विरुद्ध अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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