Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Puja Prakash Chhabda
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 249
________________ 226 प्रकट करना, 8. मिलावट करना, 9. जाति, कुल, शील में दूषण लगाना, 10. विसंवाद में प्रीति रखना, 11. दूसरे के उत्तम गुणों को छिपाना, न रहनेवाले . अवगुण प्रकट करना - कहना, 12.नील और कापोत लेश्या के परिणाम रखना, . 13. आर्तध्यान पूर्वक मरण करना। मनुष्यायु के आस्रव के विशेष कारण । 1. मिथ्यादर्शन सहित ज्ञानवान होना, 2. मिथ्यादर्शन सहित विनयवान होना, 3. सरल स्वभाव रखना, 4. सत्य आचरण में सुख मानना, 5. अपना सच्चा सुख प्रकट बतलाना, 6. अल्प और क्षणिक क्रोध रखना, 7.व्यवहार में सरलता रखना, 8. विशेष गुणी पुरुषों के साथ प्रिय व्यवहार रखना, 9. व्यवहार में सन्तोषभाव रखना तथा उसी में सुख मानना, 10. जीवों के घात से विरक्तता रखना, 11. कुकर्म से निवृत्त रहना, 12. सभी से मीठा अनुकूल बोलना, 13. स्वभाव में मधुरता होना, 14. व्यर्थ बकवाद नहीं करना, 15. लौकिक व्यवहार कार्यों से उदासीन रहना, 16. ईर्ष्यारहितपना रखना, 17. अल्प संक्लेशभाव रखना, 18. देव, गुरु और अतिथि आदि के लिए दान-पूजा के लिए अपना धन अलग रखना, 19. कापोत लेश्या और पीत लेश्या के परिणाम होना, 20. धर्मध्यान पूर्वक मरण करना। देवायु के आस्रव के विशेष कारण । 1. अपने आत्मा के कल्याणकारक मित्रों से सम्बन्ध रखना, 2. धर्म के स्थानों का सेवन करना, 3. सत्यार्थ धर्म का श्रवण करना, प्रशंसा करना, 4. धर्म की महिमा दिखाना, 5. तप में भावना रखना, 6. जल रेखा समान अति मन्द क्रोध होना। अशुभ नामकर्म के आस्रव के विशेष कारण .........। 1. मिथ्यादर्शन बनाये रखना, 2. पीठ के पीछे खोटा बोलना, 3. किसी के द्वारा मार्ग पूछने पर खोटा मार्ग ही सही बतलाना, 4. चित्त की अस्थिरता, 5.तौलने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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