Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Puja Prakash Chhabda
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ पाँचपाप जीव परिग्रह म *समरम्भ *समारम्भ *आरम्भ कुल =3 + हिंसा झूठ चोरी अब्रह्म (असावधानी- (अयत्नाचार- (बिना दी (रति जन्य (पर द्रव्य . प्रमाद पूर्वक प्रमाद सहित हुईवट लिए में ममत्व प्राणों का अप्रशस्त ऐरावत क्षेत्र प रिणाम) वियोग- [दुख विजया या करम लेच्छ खण्ड म्लेच्छ खण्ड म्लेच्छ खण्ड HTRA शि खरीपुडरीक पर्वत pagal भो. भूमि रूप्य कूला नदी स्वर्ण कूला नदी हैरण्य वत रुक्मि पर्वत तोदा नदी पर्वत निश्चय व्रत व्रत या जघन्य न जान महापुडंरीक मध्यम भोग भूमि 200 यो. उचाई व्यवहार नर कान्ता नदी नारी नदी रम्य क क्षेत्र केसरी उत्तर उत्कृष्ट कुरु भोग भूमि JORDE-22 सुबाहुजी (25) वमा (26) सुक्मा (27) महावप्रा (28) वाकावती (29) गंधा (३१)-गन्धिका (30) सुगंधा (9) कच्छा (32) गन्धमालिनी (2) सुकच्छा (3) महाकच्छा (4) कच्छकावती (9) आवर्ता (৭)লাভাল (7) पुष्कला (8) पुष्कलावती सीमंधर भगवान भूवारण्य बन 1 सीतोदा नदी सीता नदी महा Dick 2 (24) सरित (22) नलिनी (21) शंखा (20) पद्मकावती (19) महा पद्मा Men (26) (17) पद्मा (16) महक्लावती 1(99) रमणीया 1(98) युरम्यक (13) रम्या ( (12) वत्सकावती (90) सुवत्या (99) महावत्सा (1) वत्या युगमंधर जी ) हरि 20 मिथ्यात्व माया उत्कृष्ट कुरु भोग भूमि निषध तिगिञ्छ वत मध्यमभोग भूमि हरि क्षेत्र मध्यमभोग भूमि हरि कान्ता नदी हरित नदी मध्यमभोग भूमि क्षेत्र मध्यमभोग भूमि Poe जब महा हिमवन महा पदम जघन्य हैमवत क्षेत्र भोग भूमि रोहितास्या नदी रोहित नदी ज. भो. भू. हैमवत क्षेत्र ज.भो.भू. पद्म हद पर्यत म्लेच्छ खण्ड म्लेच्छ खण्ड म्लेच्छ खण्ड विप विजयार्थ पर्वत वि. प. भरतक्षेत्र आर्य खण्ड शिमा-बुक- m संयमस्थान की तारतम्यता ala स्नातक एक ही निग्रंथ पोजल हिमवन शल्य PASH, 900 foror सिंधु नदी गंगा नदी A paleta देवों के प्रकार (नि नाम भवनवासी व्यंतर ज्य स्वरूप जो भवनो में जिनका नाना प्रकार के जोज निवास करते हैं देशों में निवास है में निक भेद 10 8 प्रतिसेवना इन्द्रियोद निग्रंथों के भेद द्रव्येन्द्रिय बकुश निर्वत्ति (इन्द्रियाकार भावन्द्रिय कषाय कुशील रचमा) उपकरण लब्धि उपयोग (निर्वृत्ति का (ज्ञानावरणीय (चेतना का उपकार करे) कर्म का क्षयोपशम) परिणामविशेष) पुलाक 8 संयमस्थान जघन्य Jain Education International उत्कृष्ट For Personal & Private Use Online www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258