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232 लेगा। आपके इस उत्तम प्रयास के लिए कोटिशः धन्यवाद देते हुए अपेक्षा करते हैं कि आप इसी प्रकार कुछ नया प्रकाशन शीघ्र करायेंगी।
- ब्र. संदीप 'सरल' * डॉ. वीरसागरजी जैन, विभाग प्रमुख, जैनदर्शन विभाग,
श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, नई दिल्ली
भारतीय प्राच्य विद्याओं के महामेरु पद्मभूषण प्रो. सत्यव्रत शास्त्री ने एक बार कहा था कि जैनदर्शन को भलीभाँति समझने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को दो । ग्रन्थों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए- 1. तत्त्वार्थसूत्र और 2. समयसार। ठीक ही है, जैन आगम और अध्यात्म के मूल आधारभूत इन दो ग्रन्थों के गहन अध्ययन से सम्पूर्ण जैनदर्शन का प्रतिपाद्य हृदयंगम किया जा सकता है। जैनदर्शन के जिज्ञासु को इधर-उधर से ध्यान हटाकर उक्त दो ग्रन्थों पर अपना ध्यान मुख्य रूप से केन्द्रित करना चाहिए। ____श्रीमती पूजा-प्रकाश छाबड़ा ने तत्त्वार्थसूत्र को ही भलीभाँति समझाने के लिए उसे रेखाचित्रों और तालिकाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। मैं समझता हूँ कि इसमें उन्हें बहुत परिश्रम करना पड़ा होगा, परन्तु इससे ग्रन्थ की विषयवस्तु अत्यधिक सरल-सुबोध बन गई है। साधारण से साधारण व्यक्ति भी इससे तत्त्वार्थसूत्र का गूढ़-गंभीर विषय आसानी से समझ सकेगा। लेखिका एवं प्रकाशक - दोनों ही कोटिशः साधुवाद के पात्र हैं।
- वीरसागर जैन * श्री कुमुदचन्दजी सोनी, प्रतिष्ठाचार्य, परम मुनिभक्त,कर्मठ
कर्मयोगी,दिगम्बर जैन महासभा के केन्द्रीय संयुक्त महामंत्री, अजमेर (राज.)
____4/3/10 मैं सर्वप्रथम आपको बहुत-बहुत साधुवाद एवं बधाईयाँ देना चाहूँगा कि आपने तत्त्वार्थसूत्र कथित तत्त्वार्थों को भलीभाँति भावभासन पूर्वक जानकरसमझकर इसे रेखाचित्र एवं तालिकाओं के माध्यम से अभिनव, सर्वग्राह्य सुगम अभिव्यक्ति प्रदान की है। आपका श्रम सार्थक है। आधुनिक उच्चशिक्षित वर्ग
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