Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Puja Prakash Chhabda
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 246
________________ परिशिष्ट -1 ज्ञानावरण कर्म के आस्रव के विशेष कारण 1. सच्चे आचार्य तथा उपाध्याय से प्रतिकूलता रखना, 2. तत्त्वों में श्रद्धा नहीं रखना, 3. तत्त्वाभ्यास - तत्त्वश्रवण में आलस रखना, 4. अनादर पूर्वक शास्त्र का उपदेश सुनना, 5. धर्मतीर्थ - सच्चे उपदेश का लोप करना, 6. स्वयं को बहुश्रुतज्ञ मानकर अभिमान करना तथा मिथ्या उपदेश देना, 7. अन्य बहुश्रुत ज्ञानियों का अपमान करना, 8. असत्य प्रलाप तथा उत्सूत्र कथन करना, 9.लोभबुद्धि (धनार्जन, ख्यातिबुद्धि, पदवी प्राप्ति आदि) से शास्त्र लिखना और बेचना, 10. हिंसादि में प्रवर्तन करना। वर्शनावरण कर्म के आस्रव के विशेष कारण 1. आँखें बिगाड़ देना - निकाल लेना, 2. अपनी दृष्टि का गर्व करना, 3. बहुत सोना, 4. दिन में सोना, 5.आलस्य स्वभाव रहना, 6. नास्तिकता का भाव रखना, 7. सम्यग्दृष्टि को दूषण लगाना, 8. अन्य मतों की प्रशंसा करना, 9. प्राणियों का घात करना, 10. सच्चे मुनियों की निन्दा करना। असातावेदनीय के आस्रव के विशेष कारण 1.पर का अपवाद, विश्वासघात, चुगली, निंदा, 2. पर को दुःखी करना, निरर्थक दण्ड देना, 3. निर्दयता, अंगोपांग का छेदन-भेदन, ताड़न, त्रासन, तर्जन, भर्त्सना इत्यादि, 4. अपनी प्रशंसा करना, 5. संक्लेश प्रकट करना, 6. महा आरम्भ, महापरिग्रह धारण करना, 7. वक्रस्वभाव रखना, 8.पापकर्म से आजीविका करना, 9.विष मिलाना, जाल-पिंजरा-फाँसी आदि बनाना, 10.अन्य जीवों को पकड़ने - मारने के यन्त्रादि उपाय बताना, 11. खोटे प्रयोग सिखाने वाले शास्त्रों को दूसरों को देना। . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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