Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Puja Prakash Chhabda
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 244
________________ 221 दसवाँ अध्याय यामा प्रत्युत्पन्न नयभूत नय । (वर्तमान को ग्रहण (अतीत को ग्रहण करने वाला) | करने वाला) 5 तीर्थ * तीर्थंकर बनकर * इतर - तीर्थंकर के रहते - तीर्थंकर के अभाव में चारित्र |चारित्र - अचारित्र | *निकट - यथाख्यात चारित्र के अभाव में * दूर - 5 चारित्र अथवा परिहार विशुद्धि के अलावा शेष 4 चारित्र * प्रत्येक बुद्ध - स्वयं से ज्ञान प्राप्त करे |बोधितबुद्ध * बोधित बुद्ध - दूसरे के उपदेश से ज्ञान प्राप्त करें केवलज्ञान *2 ज्ञान *3 ज्ञान *4ज्ञान 5.अवगाहना अंतिम शरीर से * उत्कृष्ट - 525 धनुष कुछ कम * मध्यम - अनेक भेद * जघन्य - 3 1/2 हाथ प्रत्येकबुद्ध । नान 1 अंतर जघन्य - 1 समय उत्कृष्ट - 6 महीने अंतर अभाव (निरन्तर सिद्ध होने का काल) संख्या (एक समय में कितने जीव सिद्ध होते है) जघन्य - 2 समय उत्कृष्ट - 8 समय जघन्य - 1 उत्कृष्ट - 108 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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