________________
नवम अध्याय
195
एकादयो भाज्या युगपदेकस्मिन्नैकोनविंशतः।।17।। सूत्रार्थ - एक साथ एक आत्मा में एक से लेकर उन्नीस तक परीषह विकल्प से
हो सकते हैं।।17।। एक साथ एक जीव को कितने परीषह सम्भव हैं |
1 से लेकर 19 19 कौन सी → *शीत * शय्या * शेष 17
*चर्या *निषद्या
*उष्ण
इनमें से 1-1
19 = . 1 + 1 + 17 सामायिकच्छे दोपस्थापनापरिहारविशुद्धिसूक्ष्मसाम्पराय
यथाख्यातमितिचारित्रम्।।18।। सूत्रार्थ - सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात - यह पाँच प्रकार का चारित्र है।।18।।
चारित्र |1. व्रतों का धारण 2. समितियों का पालन | 3. कषायों का निग्रह. 4. दण्डों का त्याग 5. इन्द्रियों की विजय नाम सामायिक छेदोप- परिहार सूक्ष्म यथाख्यात
स्थापना विशुद्धि साम्पराय स्वरूप समस्त सावद्य *दोषों को दूर प्राणी हिंसा जहाँ | मोहनीय के
(हिंसा सहित) कर पुनः व्रतों से पूर्ण । कषाय | सम्पूर्ण क्षय योग का एक का ग्रहण करना निवृत्ति अति अथवा उपशम सेसाथ त्याग *समस्त सावद्य से प्राप्त | सूक्ष्म | आत्मा का
योग का भेद विशुद्धि जैसा स्वभाव रूप से त्याग
है, वैसा होना EME6-9 | 6-9 | 6-7 | 10 | 11-14
हो
स्थान
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org