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नवम अध्याय आर्तममनोज्ञस्य संप्रयोगे तद्विप्रयोगाय स्मृतिसमन्वाहारः।।30।। सूत्रार्थ - अमनोज्ञ पदार्थ के प्राप्त होने पर उसके वियोग के लिए चिन्तासातत्य
(सतत चिन्ता) का होना प्रथम आर्तध्यान है।।3।।।
विपरीतं मनोज्ञस्य।।31॥ सूत्रार्थ - मनोज्ञ वस्तु के वियोग होने पर उसकी प्राप्ति की सतत चिन्ता करना
दूसरा आर्तध्यान है।।31॥
• वेदनायाश्च||32| सूत्रार्थ - वेदना के होने पर उसे दूर करने के लिए सतत चिन्ता करना . .
तीसरा आर्तध्यान है।।32॥
निदानं च।।33।। सूत्रार्थ - निदान नाम का चौथा आर्तध्यान है।।33।।
तवविरतदेशविरतप्रमत्तसंयतानाम्।।34॥ सूत्रार्थ - यह आर्तध्यान अविरत, देशविरत और प्रमत्तसंयत जीवों के होता
है।।34॥
हिंसानृतस्तेयविषयसंरक्षणेभ्यो रौद्रमविरतदेशविरतयोः।।35।। सूत्रार्थ - हिंसा, असत्य, चोरी और विषय संरक्षण के लिए सतत चिन्तन करना
रौद्रध्यान है। वह अविरत और देशविरत के होता है।।35।।
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