________________
208
नवम अध्याय
भिन्न
शुक्लध्यान नाम | पृथक्त्व एकत्व वितर्क सूक्ष्मक्रिया व्युपरत ।
वितर्क वीचार अवीचार - प्रतिपाती क्रियानिवृत्ति । स्वरूप | पृथक्त्व = एकत्व = एक सूक्ष्म क्रिया व्युपरत
में (द्रव्य या | = सूक्ष्म काय |क्रिया = भिन्न में पर्याय) योग में स्थित समस्त योग वितर्क = |वितर्क = | अप्रतिपाती | से निवृत्ति . भावश्रुत भावश्रुत ज्ञान | = जिससे अनिवृत्ति = ज्ञान के बल से के बल से गिरना न हो । संसार से वीचार = अवीचार =
अभी निवृत्ति | परिवर्तन सहित परिवर्तन रहित गुणस्थान 8-11 12 | 13 के अंत में | 14. . स्वामी | श्रुत केवली श्रुत केवली | केवली केवली योग कौन सा तीन योग कोई एक योग | काय योग
योग नहीं फल | मोहनीय का शेष 3 घातिया| योग का | 4 अघातिया उपशम व क्षय कर्मों का क्षय. | अभाव कर्मों का क्षय
अर्थात् मोक्ष |संहनन | उत्तम 3 सहनन वज्रवृषभ
वज्रवृषभ
वज्रवृषभ नाराच नाराच नाराच दृष्टांत | दीपक की लौ मणि का
सूर्य का प्रकाश
नहीं .
प्रकाश
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org