________________
210
नवम अध्याय
पुलाकबकु शकु शीलनिर्ग्रन्थस्नातका निर्ग्रन्थाः ||46|| सूत्रार्थ- पुलाक, बकुश, कुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक ये पाँच निर्ग्रन्थ हैं ||46 || संयमश्रुतप्रतिसेवनातीर्थलिंगले श्योपपादस्थानविकल्पतः
साध्याः ।। 47।।
सूत्रार्थ - संयम, श्रुत, प्रतिसेवना, तीर्थ, लिंग, लेश्या, उपपाद और स्थान के भेद से इन निर्ग्रन्थों का व्याख्यान करना चाहिए ।। 47 ।।
निर्ग्रन्थ कुशील
नाम पुलाक बकुश
स्वरूप - उत्तर गुणों - व्रतों को
की भावना अखण्ड
से रहित पालते हैं - मूलगुणों - शरीर,
में भी
उपकरण
निर्ग्रथ स्नातक
प्रतिसेवना कषाय
-मूल- -संज्वलन - जिनका समस्त
के
मोह नाश घातिया
उत्तर
गुणों में
अलावा
परिपूर्ण शेष -कभी - 2 कषायों
कदाचित् की शोभा अपूर्णता बढ़ाने में
लगते हैं
गुणस्थान 6-7
6-7
6-7 6-10 11-12 13-14
संयम सामायिक, सामायिक, सामायिक यथाख्यात यथाख्याता यथाख्यात छेदो- छेदो- के सिवाय
छेदोपस्थापना पस्थापना पस्थापना शेष 4
Jain Education International
उत्तर गुणों की
विराधना
अथवा कर्मों का उपशमित नाश कर
हो गया है दिया है
- केवल
को जीत
लिया है ज्ञान नहीं
हुआ है
श्रुत
- जघन्य आचारांग 8 प्रवचन 8 (अष्ट) 8 प्रवचन 8 प्रवचन श्रुतज्ञान
में आचार मातृका प्रवचन मातृका मातृका से रहित वस्तु प्रमाण (5 समिति, मातृका
केवली
होते हैं
3 गुप्ति) - उत्कृष्ट 10 पूर्व 10 पूर्व 10 पूर्व 14 पूर्व 14 पूर्व
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org