Book Title: Tattvartha Sutra
Author(s): Puja Prakash Chhabda
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 237
________________ दसवाँ अध्याय मोहक्षयाज्ज्ञानदर्शनावरणान्तरायक्षयाच्च केवलम् ॥1॥ सूत्रार्थ - मोह का क्षय होने से तथा ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्म का क्षय होने से केवलज्ञान प्रकट होता है ।। 1 ।। 214 मोक्ष के पहले केवलज्ञान की उत्पत्ति क्षय किस गुणस्थान में 4 से 7 किसी एक में 10 के अंत में 12 के अंत में घातिया कर्म 1. दर्शन मोहनीय 2. चारित्र मोहनीय 3. ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अंतराय फल केवलज्ञान की उत्पत्ति 13वें गुणस्थान में बन्धहेत्वभावनिर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः ॥ 2 ॥ सूत्रार्थ - बन्ध-हेतुओं के अभाव और निर्जरा से सब कर्मों का आत्यन्तिक क्षय होना ही मोक्ष है ||2|| Jain Education International मोक्ष होने के हेतु नवीन बंध के हेतुओं (मिथ्यादर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय, योग) का अभाव पूर्व बँधे कर्मों की निर्जरा For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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