________________
द्वितीय अध्याय गतिकषायलिङ्गमिथ्यावर्शनाज्ञानासंयतासिद्धलेश्याश्चतुश्चतुस्त्र्ये
कैकैकैकषड्भेदाः।।6।। सूत्रार्थ - औदयिक भाव के इक्कीस भेद हैं- चार गति, चार कषाय, तीन
लिंग, एक मिथ्यादर्शन, एक अज्ञान, एक असंयम, एक असिद्ध भाव और छह लेश्याएँ।।6।।
औदयिक भाव
4 गति 4 कषाय 3 वेव 6 लेश्याएँ 4 शेष - नरकगति - क्रोध -स्त्रीवेद -कृष्ण लेश्या - मिथ्यादर्शन - तिर्यंचगति— मान - पुरुषवेद-नील लेश्या - अज्ञान - मनुष्यगति - माया L नपुंसक -कापोत लेश्या - असंयम – देवगति - लोभ वेद -पीत लेश्या - असिद्धत्व
-पद्म लेश्या _शुक्ल लेश्या
जीवभव्याभव्यत्वानि च।।7.. सूत्रार्थ-पारिणामिक भाव के तीन भेद हैं-जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व।।7।।
पारिणामिक भाव
जीवत्व
भव्यत्व अभव्यत्व (चेतना परिणाम) (सम्यग्दर्शनादि प्रकट (सम्यग्दर्शनादि प्रकट न
होने की योग्यता) होने की योग्यता)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org