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द्वितीय अध्याय
23 सम्यक्त्वचारित्रे।।3।। सूत्रार्थ - औपशमिक भाव के दो भेद हैं-औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र ।।3।।
औपशमिक भाव
औपशमिक सम्यक्त्व (मोहनीय की 7, 6 अथवा
5 प्रकृतियों के दबने से)
औपशमिक चारित्र (मोहनीय की 21 प्रकृतियों के दबने से)
ज्ञानदर्शनदानलाभभोगोपभोगवीर्याणि च।।4।। सूत्रार्थ - क्षायिक भाव के नौ भेद हैं - क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक
दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक भोग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र।।4।।
क्षायिक भाव
क्षायिक ज्ञान क्षायिक दर्शन क्षायिक वान क्षायिक सम्यक्त्व (ज्ञानावरण . (दर्शनावरण) क्षायिक लाभ (दर्शनं मोहनीय के क्षय से) के क्षयंसे) क्षायिक भोग के क्षय से)
क्षायिक उपभोग क्षायिक चारित्र
क्षायिक वीर्य (चारित्रमोहनीय (अंतराय के क्षय से) के क्षय से)
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