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षष्ठ अध्याय
इन्द्रियकषायाव्रतक्रियाः पञ्चचतुः पञ्चपञ्चविंशतिसंख्याः पूर्वस्य भेदाः ||5||
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सूत्रार्थ - पूर्व के अर्थात् साम्परायिक कर्मास्रव के इन्द्रिय, कषाय, अव्रत और क्रिया रूप भेद हैं, जो क्रम से पाँच, चार, पाँच और पच्चीस हैं ||5||
साम्परायिक आसव
इन्द्रिय
5
(पाँच इन्द्रियों
के विषय में
प्रवृत्ति का भाव )
- स्पर्शन
- रसना
घ्राण
चक्षु
- श्रोत्र
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कषाय
अव्रत
5
(दुःख का
कारण बुरा
अर्थात् दुःख दे ) कार्य)
- क्रोध
हिंसा
मान
माया
- लोभ
(जो आत्मा
को कसे
झूठ
'चोरी'
39 भेद
-
कुशील • परिग्रह
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क्रिया
25
( भिन्न-भिन्न
भावों सहित
प्रवृत्ति)
5 विभिन्न क्रिया
5 हिंसा भाव की
मुख्यतारूप 5 इन्द्रियों के भोग
-
बढ़ाने सम्बन्धी
5 धर्माचरण में
दोष कारक 5 धर्म धारण से
विमुख करनेवाली
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