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अष्टम अध्याय
सदसवेद्ये।।8। सूत्रार्थ - सवेद्य और असद्वेद्य - ये दो वेदनीय हैं।।४।।
वेदनीय
सांता
असाता * सुख रूप अनुभव *दुःख रूप अनुभव उपचार से * अनुकूल सामग्री की प्राप्ति *प्रतिकूल सामग्री की प्राप्ति
चारों गतियों में दोनों का उदय होता है।
आत्मा का सुख गण
स्वभाव परिणमन निराकुलता
विभाव परिणमन आकुलता
अतीन्द्रिय सुख
इन्द्रिय सुख .. इन्द्रियदुःख
इनमें वेदनीय कर्म निमित्त है
दर्शनचारित्रमोहनीयाकषायकषायवेदनीयाख्यास्त्रिद्विनवषोडशभेदाः सम्यक्त्वमिथ्यात्वतदुभयान्यकषायकषायो हास्यरत्यरतिशोक
भयजुगुप्सास्त्रीपुन्नपुंसकवेदा अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानसंज्वलनविकल्पाश्चैकशः क्रोधमानमायालोभाः।।9। सूत्रार्थ-दर्शनमोहनीय, चारित्रमोहनीय, अकषायवेदनीय और कषाय वेदनीय
इनके क्रम से तीन, दो, नौ और सोलह भेद हैं। सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और तदुभय -ये तीन दर्शनमोहनीय हैं। अकषायवेदनीय और कषायवेदनीय ये दोचारित्र-मोहनीय हैं। हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद- ये नौ अकषायवेदनीय हैं तथा अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन- ये प्रत्येक क्रोध, मान, माया, लोभ के भेद से सोलह कषायवेदनीय हैं।।9।।
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