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सप्तम अध्याय
पर जीव के घात रूप हिंसा
अविरमण रूप * पर जीव के घात में प्रवर्तन न होने पर भी हिंसा का त्याग नहीं करना
परिणमन रूप पर जीव के घात में प्रवर्तन करना
हिंसा के त्याग के लिए जानें
हिंस्य हिंसक हिंसा हिंसा फल . * जिसकी । * हिंसा करने * हिंस्य का * इस लोक में निन्दा हिंसा हो वाला घात करना, घात व पर लोक में
पीड़ा पहुँचाना नरकादिदुःख
* स्वयं उसका * स्वयं वैसे
घात न करें न बनें
* इसका त्याग * इससे भयभीत रहें करें
15 प्रमाद
5 इन्द्रिय -स्पर्शन
4 कषाय क्रोध
-मान
-रसना घ्राण चक्षु
4 विकथा निद्रा स्नेह
स्त्री कथा - भोजन कथा - राष्ट्र कथा L चोर कथा
माया Lलोभ
Lश्रोत्र
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