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तृतीय अध्याय द्विर्धातकीखण्डे ||33 |
सूत्रार्थ - धातकीखण्ड में क्षेत्र तथा पर्वत आदि जम्बूद्वीप से दूने हैं। 331 - पुष्करार्धे च || 34 ||
सूत्रार्थ - पुष्करार्ध में उतने ही क्षेत्र और पर्वत हैं ।। 34।
62
प्राङ्मानुषोत्तरान्मनुष्याः ।। 35।।
सूत्रार्थ - मानुषोत्तर पर्वत के पहले तक ही मनुष्य हैं। 35 || अढ़ाई द्वीप (मनुष्य क्षेत्र/नर लोक)
द्वीप
जम्बूद्वीप कालोदधि धातकी खण्ड आधा पुष्करवर
विस्तार
↓
45 लाख लवण,
योजन
समुद्र
आर्य
(जिसमें धर्म प्रवृत्ति हो )
ऋद्धि प्राप्त
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जितने क्षेत्र आदि
मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत तक ही होते हैं। आर्या म्लेच्छाश्च ||36।।
सूत्रार्थ - मनुष्य दो प्रकार के हैं - आर्य और म्लेच्छ । 36 ।।
मनुष्यों के
भेद
रचना
↓
1 मेरु संबंधी
ऋद्धि अप्राप्त
→
2 मेरु, जम्बूद्वीप से दूने क्षेत्रादि
2 मेरु, धातकी खण्ड
म्लेच्छ
(जिसमें धर्म प्रवृत्ति न हो)
कर्म भूमिज
( म्लेच्छ खण्ड
850)
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अंतद्वपज
(कुभोग भूमि 96)
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