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चतुर्थ अध्याय
69 देवाश्चतुर्णिकायाः।।1।। सूत्रार्थ - देव चार निकाय (समूह) वाले हैं।।1।।
___आदितस्त्रिषु पीतान्तलेश्याः।।2।। सूत्रार्थ - आदि के तीन निकायों में पीत पर्यन्त चार लेश्याएँ हैं।।2।।
दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः।।3।। सूत्रार्थ - वे कल्पोपपन्न देव तक के चार निकाय के देव क्रम से दस, आठ, पाँच
और बारह भेद वाले हैं।।3।। इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषदात्मरक्षलोकपालानीकप्रकीर्णकाभियोग्य
__ किल्विषिकाश्चैकशः।।4।। सूत्रार्थ - उक्त दस आदि भेदों में से प्रत्येक इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, पारिषद,
आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक
रूप हैं।।4।। .. त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यन्तरज्योतिष्काः।।5।। सूत्रार्थ - किन्तु व्यन्तर और ज्योतिष्क देव त्रायस्त्रिंश और लोकपाल इन दो भेदों
से रहित हैं।।5।। . सूत्र क्रमांक 6 से 9 तक के लिए आगे देखें ! भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीपदिक्कुमाराः॥10॥ सूत्रार्थ - भवनवासी देव दस प्रकार के हैं - असुरकुमार, नागकुमार, विद्युत्कुमार,
सुपर्णकुमार, अग्निकुमार, वातकुमार, स्तनितकुमार, उदधिकुमार,
द्वीपकुमार और दिक्कुमार।।10।। व्यन्तराः किन्नरकिम्पुरुषमहोरगगंधर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः।।11।। सूत्रार्थ - व्यन्तर देव आठ प्रकार के हैं - किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गन्धर्व, यक्ष,
. राक्षस, भूत और पिशाच।।11।। ज्योतिष्काः सूर्याचन्द्रमसौग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च।।12।। सूत्रार्थ - ज्योतिषी देव पाँच प्रकार के हैं - सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और
प्रकीर्णक तारे।।12।।
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