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तृतीय अध्याय नारकियों द्वारा परस्पर दिए जाने वाले दुःख
गर्म लोहमय रस पिलाना,
अग्निरूप लाल तप्त लोहे के खम्भों से आलिंगन कराना,
1.
2.
3.
4.
5. वसूले से छीलना,
6.
चमड़ी उतारना,
7.
8.
9.
10.
11.
शूली पर चढ़ाना,
12.
भाले से बींधना,
13.
करों से चीरना,
14. अंगारों पर लिटाना,
15.
गर्म रेत पर चलाना,
16.
वैतरणी में स्नान कराना,
17. तलवार जैसे पत्तों के वन में प्रवेश कराना,
18.
कूट - शाल्मलि वृक्ष के ऊपर चढ़ाना - उतारना,
लोहमय घनों से पीटना,
गर्म तेल से नहलाना,
लोहे के गर्म कड़ाहों में पकाना,
भाड़ में सेंकना,
घानी में पेलना,
व्याघ्र, रीछ, सिंह, श्वान, सियार, सियारनी, बिलाव, नेवला, सर्प, कौवा, गीध, चमगादड़, उल्लू, बाज, आदि बनकर एक दूसरे को अनेक प्रकार के दुख देना,
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19.
दूर से देख क्रोध करना,
20. पास आने पर मारना,
21. क्रोध से भरे वचन कहना,
22. विक्रिया से शस्त्र बनकर मारना, काटना, छेदना, भेदना आदि ।
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