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प्रथम अध्याय श्रुतं मतिपूर्व व्यनेकद्वादशभेवम्।।20। सूत्रार्थ - श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है। वह दो प्रकार का, अनेक प्रकार का और बारह प्रकार का है।।20।।
श्रुतज्ञान (मतिज्ञान से जाने हुए पदार्थ का अवलम्बन कर अन्य पदार्थ का ज्ञान)
अंगबाह्य
अंगप्रविष्ट 12 भेद (द्वादशांग)
अनेक भेद (सामायिकादि 14 प्रकीर्णक)
भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणाम्।।1।। सूत्रार्थ - भवप्रत्यय अवधिज्ञान देव और नारकियों के होता है।।21।।
क्षयोपशमनिमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम्।।22।। सूत्रार्थ - क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान छह प्रकार का है, जो शेष अर्थात् - तिर्यंचों और मनुष्यों के होता है।।22।।
अवधिज्ञान ___ (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा लिये रूपी पदार्थों को स्पष्ट जानना)
भव प्रत्यय जन गण प्रत्ययक्षियोपशम निमित्तिक) | स्वरूप | जिसके होने में । जिसके होने में
| भव ही कारण हो| सम्यग्दर्शनादि कारण हो स्वामी | सर्व देव, नारकी, मनुष्य, तिर्यंच
| तीर्थंकर
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