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(१६) अर्थ:-भवानीके नाम ऐसें वर्णन किये हैं ॥ कुंडासना, जगतकी माता, बुद्ध देवकी माता, जिनेश्वरी, जिनदेवकी माता, जिनेंद्रा, सरस्वती हंस, जिसकी सवारी है ।
॥ नगरपुराण भवावतार रहस्यमें ॥ अकारादि हकारान्तं मृ धोरेफसंयुतं। नादबिंदुकलाक्रान्तं चन्द्रमडलसन्निभं ॥ एतद्देवि परंतत्त्वंयोविजानातितन्त्वः । संसारबन्धनं छित्त्वा सगच्छेत्परमां गतिम्
अर्थ:--आदिमें अकार और अंतमें हकार और ऊपर और नीचे रकारसे युक्त नाद और बिन्दु सहित चन्द्रमाके मंडलके तुल्य ऐसा अर्हन् (जिनदेव ) जो शब्द है यह परम तत्व है, इस्को जो कोई यथार्थ रूपसे जानता है वह संसारके बंधनसे मुक्त होकर परम गतिको पाता है.
॥ नगरपुराण ॥ दशभिर्भोजितैर्विप्रैः यत्फलं जायते कृते।
मुनिमर्हन्तभक्तस्य तत्फलं जायते कलौ ॥ अर्थः--सत्ययुगमें दश ब्राह्माणोंको भोजन देनेसे जो फल होता है वहही फल कलियुगमें अर्हतभक्त मुनिको भोजन देनेसे होता है.
॥ मनुस्मृतिग्रंथ ॥ कुलादिबीजं सर्वेषां प्रथमो विमलवाहनः। चक्षुष्मांश्च यशस्वी वाभिचन्द्रोथ प्रसेनजित् ॥ मरूदेवी च नाभिश्च भरतेः कुलसत्तमः । अष्टमो मरूदेव्यां तु नाभेर्जात उरुक्रमः ॥ दर्शयन् वर्मवीराणां सुरासुरनमस्कृतः।
नीतित्रितयकर्त्ता यो युगादौ प्रथमो जिनः॥ अर्थ:-सर्व कुलोंका आदि कारण पहिला विमलवाहन नामा और चक्षुष्मान ऐसे नामवाला यशस्वी अभिचन्द्र और प्रसेनजित् मरुदेवी और नाभि नामवाला और कुलमें श्रेष्ठ भरत और आठवां नाभिका मरुदेवीसें उरुक्रम नामवाला पुत्र उत्पन्न हुआ ॥यह उरुक्रम वीरोंके मार्गको दिखलाता हुवा देवता और दैत्योंसे नमस्कारको पानेवाला और युगके आदि में तीन प्रकारकी नीतिको रचनेवाला पहिला जिन भगवान हुवा ॥
भावार्थ:-यहां विमलवाहनादि मनु कहे हैं, जैनमतमें इनको कुलकर कहा है और यहां युगके आदिमें जो अवतार हुवा है उस्को जिन अर्थात् जैन देवता लिखाहै इससे विदित है कि जैनधर्म युगकी आदि विषे विद्यमान होनेसे सबसे पहिलेका है.
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