Book Title: Sthanangsutram Part 02
Author(s): Abhaydevsuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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श्रीस्थानागसूत्र
वृत्तिः
॥४६८॥
ज्ञातत्वमुद्गमोऽपि च न शुद्ध्यति अविमुक्तिरलाघवता दुर्लभा शय्या व्युच्छेदश्च ॥१॥" राज्ञः-चक्रवर्तिवासुदेवादेः पिण्डो राजपिण्डः, इदानीमुभयोरपि जिनयोः समानतानिगमनार्थमाह-'जस्सील'गाहा, यौ शीलसमाचारौ-स्वभावानुष्ठाने यस्य स यच्छीलसमाचारः तावेव शीलसमाचारौ यस्य स तथेति ॥ महापद्मजिनो हि महावीरवदुत्तरफाल्गुनीनक्षत्रजन्मादिव्यतिकर इति नक्षत्रसम्बन्धान्नक्षत्रसूत्रं
णव णक्खत्ता चंदस्स पच्छंभागा पं० २०-अमिती समणो धणिट्ठा रेवति अस्सिणि मग्गसिर पूसो। हत्थो चित्ता य तहा पच्छंभागा णव हवंति ॥ १ ॥ (सू० ६९४) आणतपाणतआरणचुतेसु कप्पेसु विमाणा णव जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं पं० (सू० ६९५) विमलवाहणे णं कुलकरे णव धणुसताई उद्धं उच्चत्तेणं हुत्था (सू० ६९६) उसमे णं अरहा कोसलिते णं इमीसे ओसप्पिणीए णवहिं सागरोवमकोडाकोडीहिं विईकंताहिं तित्थे पवत्तिते (सू०६९७) घणदंतलट्ठदंतगूढदंतसुद्धदंतदीवाणं दीवा णवणवजोयणसताई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता (सू०६९८) सुकस्स णं महागहस्स णव वीहीओ पं० २०-हयवीही गतवीही णागवीही वसहवीही गोवीही उरगवीही अयवीही मितवीही वेसाणरवीही (सू० ६९९) नवविधे नोकसायवेयणिजे कम्मे पं० २०-इत्थिवेते पुरिसवेते णपुंसगवेते हासे रती अरइ भये सोगे दुगुंछे (सू०७००) चउरिदियाणं णव जाइकुलकोडीजोणिपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता, भुयगपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं नवजाइकुलकोडिजोणिपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता (सू० ७०१) जीवा णं णवट्ठाणनिवत्तिते पोग्गले पावकम्मत्ताते चिणिंसु वा ३ पुढविकाइयनिवत्तिते जाव पंचिंदितनिवत्तिते, एवं चिणउवचिण जाव णि
९ स्थाना० उद्देशः ३ पश्चाद्भागविमानकु| लकरतीर्थान्तरद्वीपवीथीनोकषायकुलकोटीपापपुद्गलाः स०६९४
॥४६८॥
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