Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 8
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || श्री जिन नव अंग पूजने के दूहा || अंगूठा -- जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजत | ऋषभ चरण अंगूठडो, दायक भवजल अंत ॥ १ ॥ गुटना - जानु बले काउससम्म रह्या, विचर्या देशविदेश | खड़ां खड़ां केवल लघुं, पूजो जानु नरेश ॥ २ ॥ हाथ - लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान ॥ ३ ॥ खंभा - मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत । भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ॥ ४ ॥ मस्तक — सिद्धशिला गुण उजली, लोकांते भगवंत । वसीया तेणे कारण भवी, शीरशिखा पूजंत ॥ ५॥ लीलाड़ - तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ॥ ६ ॥ कंठ - सोल पहोर प्रभु देशना, कंठ विवर वर्तुल । मधुर ध्वनि सुर नर सुणे, तीणे गले तिलक अमुल ॥७॥ हृदय - हृदय कमल उपशम बले, बाल्या राग ने रोष । हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष ॥ ८ ॥ नाभि - रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम | नाभि कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ९ ॥ ( ५ ) स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74