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गायन नं. १५
( राग मगताल्यु ) चालो सखी छबि देखण कू, रथ चढजा रघुनन्दन आवत हैं रे ॥ टेर । तीन छत्र और तीन सिंहासण, चोसठ चंवर दुलावत हैं रे ।। चालो ॥ २ ॥ लालचंद की याही अर्ज है, सब मिल मंगल गावत है रे ॥ ३ ॥
गायन नं. १६
( क्या कारण है अब रोनेका ) तेरी सेवा हम करनेका, आतम में अब हुवा उजियाला । पाया दर्शन श्री जिनवर का, गया अंधेरा सबी जनम का ॥ तेरी सेवा ॥ १ ॥ कर्म छाये प्रभु धनघोर, पुरण दर्श समिर नीकला. क्षिणक में एवे उड जावे ॥ तेरी सेवा ॥२॥ तुं गुण गण घन मोर, पुरण धर्म तिमिर विकला, व्याप रहा मेरे तनमन में ।। तेरी सेवा ॥ ३ ।। आतमकमल भया अब मोर, देदो नाथ मुज लब्धि सकला, तेरा शरण है सच्चा जग में ॥ तेरी सेवा ।। ४ ॥
गायन नं. १७
( राग काफी ) प्रभुजी से लगियो मेरो नेह सखीरी, अब कैसे कर छूटेरी ॥ टेर ।। धृग धृग जग में जहां के जीव को, अपना प्रभुजी से रुसेरी ॥ प्रभु० ॥१॥ जो कोई प्रभुजी से नेह करेगो, शिवपुरना
अकलका तजरबा किं. ०-1-0
(२१)
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