Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. १५ ( राग मगताल्यु ) चालो सखी छबि देखण कू, रथ चढजा रघुनन्दन आवत हैं रे ॥ टेर । तीन छत्र और तीन सिंहासण, चोसठ चंवर दुलावत हैं रे ।। चालो ॥ २ ॥ लालचंद की याही अर्ज है, सब मिल मंगल गावत है रे ॥ ३ ॥ गायन नं. १६ ( क्या कारण है अब रोनेका ) तेरी सेवा हम करनेका, आतम में अब हुवा उजियाला । पाया दर्शन श्री जिनवर का, गया अंधेरा सबी जनम का ॥ तेरी सेवा ॥ १ ॥ कर्म छाये प्रभु धनघोर, पुरण दर्श समिर नीकला. क्षिणक में एवे उड जावे ॥ तेरी सेवा ॥२॥ तुं गुण गण घन मोर, पुरण धर्म तिमिर विकला, व्याप रहा मेरे तनमन में ।। तेरी सेवा ॥ ३ ।। आतमकमल भया अब मोर, देदो नाथ मुज लब्धि सकला, तेरा शरण है सच्चा जग में ॥ तेरी सेवा ।। ४ ॥ गायन नं. १७ ( राग काफी ) प्रभुजी से लगियो मेरो नेह सखीरी, अब कैसे कर छूटेरी ॥ टेर ।। धृग धृग जग में जहां के जीव को, अपना प्रभुजी से रुसेरी ॥ प्रभु० ॥१॥ जो कोई प्रभुजी से नेह करेगो, शिवपुरना अकलका तजरबा किं. ०-1-0 (२१) For Private And Personal Use Only

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