Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ टेर ।। वीर दर्शन से प्रसन्न मन होवे, आतम गुण प्रभु ध्यान से जोवे । आलंबन वीर दर्शन सोहे ।। जय० भावो० ॥१॥ मुद्रा शान्त प्रशान्त करत है, त्रिविध ताप संताप हरत है। अलख ध्यान उरमाही धरत है ॥२॥ करणेन्द्रिय है ज्ञान की दर्शक, ज्ञानेन्द्रिय आतम गुण फरसत । सत्य ज्ञान उर माँही धरते है ॥३॥ मोह महिरण मुंझावत भारी, आतम गुण हर करत है ख्वारी । कर्म कटक भट होत संहारी ॥ ४ ॥ औसिया वीर मण्डली गुण गावे हरदम वीर चरणो चित्त लावे । नागर अजर अमर पद पावे ॥ ५ ॥ गायन नं. ५६ ( तर्ज-कोरो काज लियो ) श्री धर्मनाथ धर ध्यान हम को अपनालो । टेर ॥ मायाजाल में फंसकर मुझ को न रहा धर्म का भान ॥ हम ॥१॥ रहा लीन मैं पाप कर्म में भूल गया भगवान ॥ २ ॥ सज्जन के मुखसे हितशिक्षा, बहरे सुनने में कान ॥३॥ पेट का रोना है निशदिन, नहीं दया नहीं दान ॥ ४ ॥ रहा द्वेष ईर्षा का वास किया, प्रेम सुधी नहीं पान ॥ ५ ॥ चिन्ता होती है इन सब की, जब होता अवसान ॥ ६ ॥ चउनति में अब खूब भ्रमण कर, थका सर्वथा जान ॥ ७ ॥ ओसीया मण्डल नाथ उबारो, करते तुम गुणगान ।। ८ । निपट अज्ञान है जान दास, धन रखलो हे प्रभो आन ॥ ९ ॥ स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only

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