Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम न इनका भूलाना, परमानन्द पद पाना ॥ ४ ।। ओसियां मण्डल अर्ज करत हैं, धन इनका नित्य ध्यान धरता है । सब इनके गुण गाना, परमानन्द पद पाना ॥ ५ ॥ गायन नं. ५१ ( तर्ज-गजल ) तेरे दरसन के देखे. से मुझे आराम होता है । टेर ॥ दरस मोही दीजीए प्रभुर्जी, दरस बिन दिल तरसता है। अंधेरी रैन में जैसे, चांदनी का उजाला हैं । तेरे॥१॥ मेरे महाराज शुभ ध्यानी, बिच मंदिर के बसत हैं । उन्हों के कानों की मोती, जलाजलसा चमकता हैं ॥ २ ॥ कहूँ कछु और करुं कछु, और यही जंजाल होता है। यही सच बात साधन की, सरासर काम होता है ॥३॥ गायन नं. ५२ ( तर्ज-कच ली ) बिना दर्सन किये तेरा, नहिं दिल को करारी हैं। चुरा के ले गयी मनको, प्रभु सुरत तुम्हारी है ॥ टेर ॥ न कलपाओ दया लावो, हमें निज पास बुलवाओ । सहाजाता नहीं अब तो, विरह का बोझ भारी है ।। बिना ॥१॥ ज्ञान से ध्यान से तेरा, न सानी रूप दुनियां में । फिदा हो प्रेम में तेरे, उमर सारी गुजारी हैं ॥ २ ॥ दया पूरण कष्ट चूरण, करो अब आश मम पूरण । मेहर की एक ही दृष्टि, हमें काफी तुम्हारी है ॥ ३ ॥ विमल है नाम स्तवनमर्जरी ( ३९ ) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74