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गायन नं. ९६ मैं आया तेरे द्वार पर कुछ लेकर जाऊँगा। अपने सुखदुःख की सारी बातें नाथ सुनाऊँगा ।।टेर। जबकि तेरा कहलाता हूं मैं सेवक दुनियाँ में । तब क्यों कर अपना जीवन दुःखमय नाथ बिताऊँगा ? ॥१॥ तुं वीतराग रहता है इस से यह दुख पाना हैं। पर तुजको तज मैं औरों का नहीं दास कहाऊँगा ॥ २ ॥ अपने अनंत सुख में से मुझ को तू कुछ देदेगा । तो हरिकविन्द्र होकर मैं सुख से नित गुण गाऊँगा ॥ ३ ॥
गायन नं. ९७
( राग-गजल) मैं देखुं प्रभु के तन की छबि, आती नजर में, हां रे हां.... आती नजर में । टेर ॥ देखने में सादी, पर अजाद भरी है । अजाद किये लाखों जिसने, मिठी नजर में ॥ १ ॥ तेरी सूरत के सामने, और देव की शकल । नहीं शोभा देती चाँद की छबी, जैसे फजर में ॥ २ ॥ आत्म लक्ष्मी आप की, प्रभु है वो मुझ को दीजिये । वल्लभ होवे हर्ष अति, साफ जिगर मैं ॥ ३ ॥
गायन नं. ९८
( तर्ज-अहमद भूल न जाना )
बेड़ा पार लगाना, प्रभुजी भूल न जाना ॥ टेर । भारतभूमि यह देश हमारा, दूध दधि होता अन पारा, जिनका नहीं है
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(६०)
स्तवनमंजरी.
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