Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ९६ मैं आया तेरे द्वार पर कुछ लेकर जाऊँगा। अपने सुखदुःख की सारी बातें नाथ सुनाऊँगा ।।टेर। जबकि तेरा कहलाता हूं मैं सेवक दुनियाँ में । तब क्यों कर अपना जीवन दुःखमय नाथ बिताऊँगा ? ॥१॥ तुं वीतराग रहता है इस से यह दुख पाना हैं। पर तुजको तज मैं औरों का नहीं दास कहाऊँगा ॥ २ ॥ अपने अनंत सुख में से मुझ को तू कुछ देदेगा । तो हरिकविन्द्र होकर मैं सुख से नित गुण गाऊँगा ॥ ३ ॥ गायन नं. ९७ ( राग-गजल) मैं देखुं प्रभु के तन की छबि, आती नजर में, हां रे हां.... आती नजर में । टेर ॥ देखने में सादी, पर अजाद भरी है । अजाद किये लाखों जिसने, मिठी नजर में ॥ १ ॥ तेरी सूरत के सामने, और देव की शकल । नहीं शोभा देती चाँद की छबी, जैसे फजर में ॥ २ ॥ आत्म लक्ष्मी आप की, प्रभु है वो मुझ को दीजिये । वल्लभ होवे हर्ष अति, साफ जिगर मैं ॥ ३ ॥ गायन नं. ९८ ( तर्ज-अहमद भूल न जाना ) बेड़ा पार लगाना, प्रभुजी भूल न जाना ॥ टेर । भारतभूमि यह देश हमारा, दूध दधि होता अन पारा, जिनका नहीं है amarinaam vvvvNIA, (६०) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only

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