Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनमंजरी pref संशोधक पं. अमृतलाल मोहनलाल संघवी व्याकरणतीर्थ- वैयाकरणभूषण प्रकाशक श्री संभवनाथ जैन पुस्तकालय फलोदी For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री संभवनाथ जैन पुस्तकालय सिरिज नं० १८ श्रीसंभवनाथाय नमः स्तवनमंजरी (प्रथम भाग) संशोधक पं. अमृतलाल मोहनलाल संघवी । व्याकरणतीर्थ-वैयाकरणभूषण प्रकाशक श्री संभवनाथ जैन पुस्तकालय ठि. निहाल धर्मशाला सरदारपुरा फलोदी (मारवाड) र वीर संवत् २४६४ । मूल्य . वि० सं० १९९५ इस्वी सन् १९३८ । चार आना । प्रथमवार ४००० For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Avvvvvvvvvvv/myvNAMyanm/1007/s/paryayv.nnn. .... . ... . .. . मुद्रकः-शाह गुलाबचंद लल्लुभाइ श्री महोदय प्रीन्टींग प्रेस-भावनगर. wirinararabank-navAriAawvvvvvvvvvvvvirurvernormanyuvanARKIRTAN For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीसंभवनाथाय नमः ।। स्तवनमंजरी। प्रथम प्रकरण ।। जिनेन्द्र प्रतिमाजी के सन्मुख बोलने की स्तुतिएं। ॐकारं बिन्दुसंयुक्तं, नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव, ॐकाराय नमो नमः दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पापनाशनं । दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनं सरसशांतसुधारससागरं, शुचितरं गुणरत्नमहाकरं । भविकपंकजबोधदिवाकर, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरं ॥ ३ ॥ पूर्णानंदमयं महोदयमयं, कैवल्यचिद् दृग्मयं । रूपातीतमयं स्वरूपरमणं, स्वाभाविकाश्रीमयं ॥ ज्ञानोद्योतमयं, कृपारसमयं, स्याद्वादविद्यालयं । श्रीसिद्धाचलतीर्थराजमनिशं, वंदेहमादीश्वरं नेत्रानंदकरी भवोदधितरी, श्रेयस्तरोमंजरी । __ श्रीमद्धर्ममहानरेंद्रनगरी, व्यापल्लताघूमरी ।। होत्कर्षशुभप्रभावलहरी, रागद्विषां जित्वरी । मूर्तिः श्रीजिनपंगवस्य भवतु श्रेयस्करी देहिनाम् ॥५॥ For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्हन्तो भगवंत इन्द्रमहिताः सिद्धाश्च सिद्धिस्थिताआचार्या जिनशासनोन्नतिकरा, पूज्या उपाध्यायकाः ॥ श्रीसिद्धान्तपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः । पंचैते परमेष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलं छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःखहरी, श्री वीरजिणंदनी | भक्तो छे सर्वदा सुखकरी, जाणे खीली चंदनी ॥ आ प्रतिमाना गुणभाव धरीने, जे माणसो गाय छे । पामी सघलां सुख ते जगतमां, मुक्ति भणी जाय छे ॥ ७ ॥ श्री जगनायक, तुं धणी महा मोटा महाराज | मोटे पुन्ये पामीयो, तुम दरसन में आज आज मनोरथ सब फले, प्रगटे पुण्य कल्लोल । पाप करम दूरे टलीया, नाटा दुःख डंडोल प्रभु दरसन सुखसम्पदा, प्रभु दरसन नवनिद्धि । प्रभु दरसनथी पामीर, सकल पदारथ सिद्धि भावे जिनवर पूजिये, भावे दीजे दान | भावे भावना भावीए, भावे केवलज्ञान जीवडा ! जिनवर पूजीए, पूजाना फल होय । राजा नमे प्रजा नमे आण न लोपे कोय जगमें तीर्थ दोय बड़ा, शत्रुंजय गिरनार । एक गढ रीखव समोसर्या, एक गढ़ नेमकुंवार ( २ ) चंदराजानो रास (गुजराती) कि. ४-०-० For Private And Personal Use Only ॥ ६ ॥ ॥ ८ ॥ ॥ ९ ॥ 11 30 11 ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir फूलडां केरां बागमां, बेठा श्रीजिनराज । जिम तारामां चन्द्रमा, तिम सोहे महाराज वाडी चम्पों मोगरो, सौवन कुंपलिया । चौविस तीर्थंकर पूजिये, पंचो आंगुलिया प्रभुनामकी औषधी, खरे मनसे खाय । रोग शोक व्यापे नहीं, महादोष मिट जाय ॥ १४ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ प्रभुनाम अमोल है, या जगमें नहिं मोल । नफा बहुत टोटा नहीं, भर भर मुखसे बोल आभने बहाली वीजली, धरतीने वहालो मेह | राजुल वहाला नेमजी, आपनो बहालो देह अरिहंत सिद्ध आचारज भला, उपाध्याय महाराज | साधु सेवा भावसे, यह पांच ही मंगलिक काज विघ्नहरण मंगलकरन, आदिनाथ भगवान | ॥ २० ॥ भजने से भव दुःखहरे, निश्चय दिलमें जान शांतिनाथ प्रगट परमेश्वर, अरि विघ्न सब दूर करो । वाट घाट में समरुं साहिब, भय भंजन चकचूर करो ॥ २१ ॥ लीला लछी दास तुमारो, कोई सेवे ने कोई अरज करे । नजर करी और निरखो साहिब, तूम सेवक अरदास करे ।। २२ । पार्श्वनाथ को सुमरिये, एकाग्रह चित्त लाय । सर्व रोग दूरे टले, सकल विघन टल जाय स्तवनमंजरी 11 20 11 ॥ १८ ॥ ॥ १९ ॥ ॥ २३ ॥ ( ३ ) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीर महाराजको, भेटे भविचित्त लाय । शासन के शिरताज है, संबकी करसी सहाय ॥२४॥ हाथ जोड बिनति करुं, सुणिये दीनानाथ !। इन्द्र शरण हैं आपके, राखे चरणको दास ॥२५॥ ॥ दूध की प्रक्षाल करते वखत बोले । मेरुशिखर नवरावे हो सुरपति, मेरुशिखर नवरावे । जन्मकाल जिनवरजीको जाणी, पंच रूप करी आवे हो सुरपति, मेरुशिखर नवरावे ॥ || जल की प्रक्षाल करते वखत बोले ।। ज्ञान कलश भरी आतमा, समता रस भरपूर । श्री जिनने नवरावतां, करम थयां चकचूर ।। ॥धूप की पूजा करते वखते बोले ॥ धूपनी पूजा करीए रे, ओ मनमान्या मोहनजी । प्रभु धूप घटा अनुसरीए रे, ओ मनमान्या मोहनजी ।। प्रभु नहीं कोई तमारी तोले रे, ओ मन मान्या मोहनजी । अंते छे शरण तमारं रे, ओ मनमान्या मोहनजी ।। ॥ पुष्पपूजा करते बखत बोले । प्रभु कंठे ठवी फूलनी माला, फूलथकी व्रत उच्चरीए, चित्त चोखे, चोरी नव करीए । स्वामीअदत्त कदापि न लीजे, भेद अढार परिहरिये । चित्त० ॥ श्रीसंभवनाथचरित्र किं. ०-१२-० For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || श्री जिन नव अंग पूजने के दूहा || अंगूठा -- जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजत | ऋषभ चरण अंगूठडो, दायक भवजल अंत ॥ १ ॥ गुटना - जानु बले काउससम्म रह्या, विचर्या देशविदेश | खड़ां खड़ां केवल लघुं, पूजो जानु नरेश ॥ २ ॥ हाथ - लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान ॥ ३ ॥ खंभा - मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत । भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ॥ ४ ॥ मस्तक — सिद्धशिला गुण उजली, लोकांते भगवंत । वसीया तेणे कारण भवी, शीरशिखा पूजंत ॥ ५॥ लीलाड़ - तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ॥ ६ ॥ कंठ - सोल पहोर प्रभु देशना, कंठ विवर वर्तुल । मधुर ध्वनि सुर नर सुणे, तीणे गले तिलक अमुल ॥७॥ हृदय - हृदय कमल उपशम बले, बाल्या राग ने रोष । हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष ॥ ८ ॥ नाभि - रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम | नाभि कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ९ ॥ ( ५ ) स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 卐 साथीया करते वखत बोले ॥ दर्शन ज्ञान चारित्रना, आराधनथी सार । सिद्धशिलानी उपरे, हो मुज वास श्रीकार ।। अक्षत पूजा करतां थकां, सफल करुं अवतार । फल मागु प्रभु आगले, तार तार मुज तार ॥ संसारिक फल मागीने, रवड्यो बहु संसार । अष्ट कर्म निवारवा, मागुं मोक्ष फल सार । चीहुं गति भ्रमण संसारमां, जन्म मरण जंजाल । पंचम गति विण जीवने, सुख नहीं त्रिहुं काल । चैत्यवंदनो श्री शत्रुजय चैत्यवंदन (१) विमल केवलज्ञान कमलाकलित त्रिभुवन हितकरं, सुरराज संस्तुत चरणपंकज नमो आदि जिनेश्वरं ॥ १ ॥ विमल गिरिवर शृंगमंडण, प्रवर गुणगण भूधरं । सुर असुर किन्नर कोडी सेवित, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ २ ॥ करती नाटक किन्नरीगण, गाय जिनगुण मनहरं । निर्जरावली नमे अहोनिश, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ ३ ॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी, कोडी पण मुनि मनहरं । श्री विमलगिरिवर शृंग सिद्धा, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ ४ ॥ निज स्तवनमंजरी किं. ५-४-८ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साध्य साधक सुर मुनिवर, कोडीनंत ए गिरिवरं । मुक्तिरमणी वर्या रंगे, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ ५॥ पाताल नर सुरलोकमांही, विमल गिरिवर तो परं। नहीं अधिक तीरथ तीर्थपति कहे, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ ६ ॥ इम विमल गिरिवर शिखर मंडण, दुःख विहंडण ध्याईए । निज शुद्ध सत्ता साधनार्थं, परम ज्योति नीपाईए ॥७॥ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परम पदस्थित जयकरं । गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं ॥ ८ ॥ ___ श्री शांतिजिनेश्वर चैत्यवंदन (२) शांति जिनेश्वर सोलमा, अचिरासुत वंदो । विश्वसेन कुल नभोमणि, भविजन सुखकंदो ॥ १॥ मृगलंछन जिन आउखुं, लाख वरस प्रमाण । हथ्थिणाउर नयरी धणी, प्रभुजी गुणमणिखाण ॥ २ ॥ चालीश धनुषनी देहडी, समचोरस संठाण । वदन पद्म ज्यु चंदलो, दीठे परम कल्याण ॥ ३ ।। श्री नेमिजिन चैत्यवंदन (३) नेमिनाथ बावीशमा, शिवादेवी माय । समुद्रविजय पृथ्वीपति, जे प्रभुना ताय ॥ १ ॥ दश धनुषनी देहडी, आयु वरस हजार । शंख लंछनधर स्वामीजी, तजी राजुल नार !॥ २ ॥ सौरीपुरी नयरी भलीए, ब्रह्मचारी भगवान । जिन उत्तम पद पद्मने, नमतां अविचल ठाण ॥ ३ ॥ श्री पार्श्वनाथ चैत्यवंदन (४) आस पूरे प्रभु पासजी, त्रोडे भव पास । वामा माता जन म्तवनमंजरी (७) For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मीया, अहि लंछन जास ॥ १ ॥ अश्वसेन सुत सुखकरु, नव हाथनी काया । काशीदेश वाणारसी, पुण्ये प्रभु आया ॥ २ ॥ एक सो वर्ष, आउखुं ए, पाली पार्श्वकुमार । पद्म कहे मुगते गया, नमतां सुख निरधार ॥ ३ ॥ श्री महावीरजिन चैत्यवंदन (५) सिद्धारथसुत वंदीए, त्रिशलानो जायो । क्षत्रियकुंडमां अवतर्यो, सुर पति गायो ॥१॥ मृगपति लंछन पाउले, सात हाथनी काय । बहोंतेर वर्षनुं आउ, वीर जिनेश्वरराय ॥२॥ खीमाविजय जिनराजनो ए, उत्तम गुण अवदात । सात बोलथी वर्णव्यो, पद्मविजय विख्यात ॥ ३ ॥ श्री चोवीश जिनका चैत्यवंदन (६) पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहीए । चंद्रप्रभु ने सुविधिनाथ, दो उज्वल लहीए ॥ १ ॥ मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला नीरख्या । मुनिसुव्रत ने नेमनाथ, दो अंजन सरिखा ।। २॥ सोले जिन कंचन समाए, एवा जिन चोवीश । धीरविमल पंडिततणो, ज्ञानविमल कहे शिष्य ॥ ३ ॥ श्री आदिजिनेश्वर चैत्यवंदन (७) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे। भाव धरीने जे चडे, तेने भवपार उतारे ॥ १ ॥ अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीर्थनो राय । पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठविया प्रभु पाय ॥२॥ (८) महासती सुरसुन्दरी किं. ४-८-० For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरजकुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम। नाभिराया कुलमंडणो, जिनवर करुं प्रणाम ॥ ३ ॥ श्री मंदिरजी में जानेकी विधि प्रथम घर से शुद्ध वस्त्र पहिन कर साथ में चावल, बादाम, मिश्री, लड्डू, फल वगैरह नैवेद्य लेकर " निसिही" कह कर मंदिर के पास पहुंचना चाहिये, वहां पहुंच कर दूसरी “ निसिही" कह कर मंदिर में प्रवेश करे, फिर तीसरी “निसिही" कह कर श्री भगवानके मूल गंभारा से तीन प्रदिक्षणा दे के फिर भावना के लिये यह पढ़े। हे प्रभो ! आनन्ददाता, ज्ञान हमको दीजये । शीघ्र सारे दुर्गुणोंसे, दूर हमको कीजिये ।। लीजिये अपनी शरण में, हम सदाचारी बनें । ब्रह्मचारी धर्मरक्षक, वीर व्रतधारी बने ॥ १॥* फिर पाट या पाटीया के उपर अक्षत याने चावल से त्रण ज्ञान, दर्शन, चरित्र छोटी ढगलीयें कर के नीचेके भाग में एक साथीया कर के उपर के आकार में चन्द्रमाकी तरह सिद्धशिला मँडाण मांड लेवे, जैसे नीचे दीये हुवे मुजब । 010 * नोट-विशेष उपर स्तुतीएं दी गई है। स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चैत्यवंदन करने की विधि ईच्छामि खमासमणो ! वंदिऊं जावणीज्जाए निसिहीआए मध्यएण वंदामि (ऐसे तीन वार खमासमणो हाथ जोड़ के खड़ा हो फिर गोडालिएं बेठके करे । फिर डाबा गोड़ा ऊंचा करके नीचेका पाठ कहे ―) ईच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! चैत्यवंदन करूंजी, इच्छं, चैत्यवंदन आज देव अरिहंत नमुं, सुमरू ताहरो नाम । ज्यां ज्यां प्रतिमा जिनतणी, तिहां तिहां करूं प्रणाम ॥ १ ॥ शत्रुंजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरिनार । तारंगे श्री अजितनाथ, आबु रिखब जुहार ॥ २ ॥ अष्टापद गिरि ऊपरे, जिन चौविसे जोय । मणिमय मुरती मानसु, भरत भरावी सोय || ३ || समेतशिखर तीर्थ बडो, ज्यां वीसे जिनराज । वैभारगिरि ऊपरे, वीर जिनेश्वरराय || ४ || मांडवगढनो राजियो, नामे देव सुपास । रीषभ कहै जिन समरतां, पूरे मननी आस || ॥ जं किंचि ॥ जं किंचि नामतिथ्यं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाई जिणबिंबाई, ताई सबाई वंदामि ॥ || नमुथ्थुणं ॥ नमुथ्थु णं अरिहंताणं, भगवंताणं ॥ १ ॥ आइगराणं, तिथ्थ - यराणं, सयंसंबुद्धाणं ॥ २ ॥ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरि ( १० ) सुलसा सती किं. ०-४-० For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सवरपुंडरीयाणं, पुरिसवरगंधहथ्थीणं ॥ ३ ॥ लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं ॥ ४ ॥ अभयदयाणं, चरूखुदयाणं, मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहीदयाणं ॥ ५ ॥ धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, ॥ ६ ॥ अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं, वियट्टछ ऊमाणं ॥ ७॥ जिणाणं जावयाणं, तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोह्याणं, मुत्ताणं मोअगाणं ॥ ८ ॥ सबन्नूणं सबदरिसीणं सिव-- मयल मरुअ-मणंत-मरूखय-मबाबाह-मपुणरावित्तिसिद्धिगईनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं, जिअभयाणं ॥ ९॥ जेअ अईआ सिद्धा, जेअ भविस्संति णागए काले, संपई अ वट्टमाणा, सचे तिविहेण वंदामि ॥ १० ॥ जावंति चेईआई ॥ जावंति चेइआई, उड्ढे अ अहे अ तिरिअलोए अ। सबाई ताई बंदे, इह संतो तत्थ संताई। ॥ जावंत के वि साह ।। जावंत के वि साहू, भरहेरवयमहाविदेहे अ । सवेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंडविरयाणं । ॥ पंचपरमेष्ठि नमस्कार ।। नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्याय सर्वसाधुभ्यः । विधि-यहां कोई अच्छा स्तवन ( गायन ) पढ़ा करे ।। स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बाद में दोनो हाथ जोड़ कर के मस्तक के अंजली कर के जयवीयराय पढे। ॥ जय वीयराय ॥ जय वीयराय ! जगगुरु! होउ ममं तुह पभावओ! भयवं!। भवनिव्वेओ मग्गा–णुसारिया इट्ठफलसिद्धि ॥ लोगविरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परत्थकरणं च । सुहगुरुजोगो तन्वय–णसेवणा आभवमखंडा ॥ *वारिजइ जइ वि निया-णबंधणं वीयराय ! तुह समए । तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥ दुरकरकओ कम्मरकओ, समाहिमरणं च बोहिलाभोअ। संपजउ मह एयं, तुहनाह पणामकरणेणं । सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणं । प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम् । विधि-पिछे खड़े होकर नीचे का पाठ कहै । । अरिहंतचेइआणं ॥ अरिहंतचेइयाणं करेमि काउस्सग्गं । वंदणवत्तिआए पूअणवत्तिआए सकारवत्तिआए सम्माणवत्तिआए बोहिलाभवत्तिआए निरुवसग्गवत्तिआए । सद्धाए मेहाए धीईए धारणाए अणुप्पेहाए वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं । ॥ अन्नत्थ ऊससिएणं ॥ अन्नथ्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभा * तपगच्छवाले बोलते हैं । (१२) महासती मृगावती किं. ०-३-० For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलीए पित्तमुच्छाए, सुहुमेहि अंगसंचालेहि, सुहुमेहिं खेलसंचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्टीसंचालेहिं, एवमाइएहिं आगारेहिं, अभग्गो अविराहिओ हुज मे काउस्सग्गो। जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि । ताव कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि । विधि—यहां मन में एक नवकार का काउस्सग्ग का स्मरण करे। बाद में काउस्सग्ग पार के 'नमो अरिहंताणं' कही नमोऽहत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः । बाद में स्तुति कहैं । अष्टापद श्री आदि जिनवर, वीरजिन पावापुरे । वासुपूज्य चम्पानयरी सिद्धा, नेम रेवा गिरिवरे । समेतशिखरे वीस जिनवर, मोक्ष पुहता मुनिवरो। चौवीस जिनवर नित वंदूं, सकल संघे सुखकरो ।। افالت قتلت نفست । प्रथम प्रकरण संपूर्ण Falcomments - ~ संभवनाथचरित्र-यह चरित्र हिन्दीमें पहीला छपा है, इसमें संभवनाथ भगवानका चरित्र बहोत सरल और अच्छी भाषामें लिखा गया है । प्रचारके खातर किंमत रु. ०-१२-० बारह आने रखे गये है। लिखिये और आज ही मंगवाकर पढीऐ। पत्ता श्रीसंभवनाथ जैन पुस्तकालय-फलोधी. ~ ~ .........................raamraparimarurammer स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दूसरा प्रकरण मंगलाचरण गाओ प्यारी महिमा न्यारी, जगहितकारी की ॥ टेर० ॥ वीतराग गुणधारी, शिव मगने आहाकारी ।। भवदुःखहारी सब सुखकारी, जगहितकारी की ॥ गा० ॥१॥ कुमति विनासी सुमति प्रकाशी, घट घट अन्तरयामी है। नाम तो है आनंदविहारी, निकलम विकलम अकलम __ कलिमलहारी की ।। गा० ॥२॥ गायन नं. १ ( राग-रखिया बंधावो मैयां ) जिनजी को ध्यावो भैयां, गुणगण गावो रे ॥ टेर ॥ मूरति प्रभु की भाली, सूरत निराली, तारे तुमारी नैयां, जय जग दीवो रे ॥ जिनजी० ॥ १ ॥ पूजन की थारी, लगी हे लय भारी, जगमा तमारी जईयां, जय जग दीवो रे ॥२॥ दुरगतिने दारी, आत्म गुणकारी, कर्मोनो थावो खईयां, जय जग दीवो रे ॥३॥ गुणों की श्रेणी आली, देती है दुःख टारी, सेवो सदा ए सइयां, जय जग दीवो रे ॥ ४ ॥ पार्श्व जिणंदासे, प्रीत लगी है मोहे, लब्धिसूरि गुण गईयां, जय जग दीवो रे ॥ ५॥ (१४) जिनेन्द्र पूजा संग्रह किं. ०-३-८ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. २ ( राग-दयामण दीजे यह वरदान । प्रभो ! हम सब होवे गुणवान् ॥ टेर ॥ चिन्ताचूरण वांछितपूरण, सुखकर्ता भगवान् । है रक्षक और स्वामी सब के, रक्खो हमारा मान । प्र० ॥ १ ॥ सद्गुणशील बने हम भारी, करें गुरुजन का मान । त्यागें झूठ अप्रिय वाचा को, करें अतिथि सन्मान ॥ २ ॥ द्वेष क्रोध ईर्षा को त्यागें, प्रेम सुधा करें पान । छात्र सकल और धन मिल संगे, करें तेरा गुणगान ॥ ३ ॥ गायन नं. ३ ( कव्वाली ) तुम्हारी मोहनी मूरत मेरे दिल में समाई है । टेर ।। न दिन को चैन पहलू में, न सब को नींद आती है । न जाने आपने दर्शन की, मय कैसी पिलाई है ॥ तु० ॥ १ ॥ दिया मैं त्याग जग फानी, फकीरी वेष धारा है। नजर जादूभरी जब सें, हमें तुमने दिखाई है ॥ २ ॥ विचरतां हूँ कभी तन में, कभी वस्ती कभी वन में। जहां सारा रही भटका, मुझे तेरी जुदाई है ॥३॥ नहीं ताकत मेरे पैरों में, अब दर दर भटकने की । तिलक को नाम वस हरदम, एक तेरा सहाई है॥ ४ ॥ गायन नं. ४ ( राग-तुंहीने मुझ को प्रेम शिखाया ) वीर जिणंद मुजे दिल में भाया, काल अनादि का मोह स्तवनमंजरी (१५) For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भिगाया ॥ टेर ॥ समकित मेरे दिल में बसाया, आतम ध्याया ज्योति जगाया, तूम ही हो वीतराग वालम, तुम ही हो वीतराग ॥ वीर० ॥ १ ॥ काल अनादि से भव में फसाया, सुख नहीं पाया दुःख में हटाया, तुम ही हो वीतराग वालम, तुम ही हो वीतराग | वीर० ॥ २ ॥ प्रभु चरणों में शिर को जुकाया, दुःख हटाया मोह मीटाया, तुम ही हो वीतराग वालम, तूम ही हो बीतराग ॥ वीर० ॥ ३ ॥ अब जिनवर मेरे दिल में ठाया, गुणगण गाया भव से तराया, तुम ही हो वीतराग वालम, तूम ही हो वीतराग ।। वीर० ॥ ४ ॥ भूला न जावे गुण को भूलाया, ज्ञान जगाया आनंद पाया, लब्धिसूरि सुखकार वालम लब्धिसूरि सुखकार ॥ वीर० ॥ ५ ॥ गायन नं. ५ ( बसंत ) होई आनन्द बहार रे प्रभु बैठे मगन में ॥ टेर ॥ अष्टादश दूषण नहीं जिन में, प्रभु गुण धारे बार रे ।। प्रभु० ॥ १॥ चौतिस अतिशय पैंतीस बानी, जगजीवन हितकार रे ॥२॥ शांतरूप मुद्रा प्रभु प्यारी, देखो सब नर नार रे ।। ३॥ आनंद थावो प्रभु गुण गावो, मुख बोलो जयकार रे ॥ ४ ॥ प्रभु भक्ति से वल्लभ होवे, आनंद हर्ष अपार रे ॥५॥ गायन नं. ६ ( राग-बालम आय बसो मोरे मन में ) प्रभुजी आये बसो मोरे मन में ॥ टेर ।। राग न जीन में rrrrwwwwwwwwww (१६) घर का डाक्टर किं. ०-२-० For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वेष न जीन में, तुम बिना देव न और सुहावे । तेरे दर्शन नयन करत जब, हर्ष भयो अति तन में ॥ प्रभुजी० ॥ १ ॥ विरतियां जाकी जग भारी, सब जीवन की रक्षणकारी । इस लिये शिवपुर बसावे, तुं ही वसा नयन में ॥ प्रभुजी० ॥ २ ॥ आत्मकमल में हुई खूमारी, मति इस से सुधरे हमारी । वीरमगाम सूरि लब्धि गावे, तुं ही बसा नयन में ॥ प्रभुजी० ॥ ३ ॥ गायन नं. ७ ( भैरवी ) अब तो प्रभुजी का लेलो सरन | टेर ॥ आरज देश उत्तम कुल जाति, मानव भव अब पायो रतन ॥ अब० ॥ १ ॥ द्रव्यभाव से पूजा प्रभु की, महानिशीथे जिनवर बचन ॥२॥ गृही को पूजा दोनों ही सुंदर, भावपूजा से साधु लगन ॥३॥ अष्ट द्रव्य से द्रव्य पूजा है, भावपूजा करो प्रभु नमन ॥ ४ ॥ जिनप्रतिमा जिन सारखी मानो, आतम वल्लभ तारनतरन ॥ ५॥ गायन नं. ८ ( सुनादे, सुनादे, सुनादे, कृष्णा ) पधारो, पधारो, पधारो, महावीर, अहिंसा का मन्त्र सुनाने महावीर ॥ टेर ॥ निखिल जगतमें जिन जो सुनाया, वीर वही मन में है भाया । दूनिया को फिर से सुना दो महावीर, सुनादो, महामन्त्र, फिर से महावीर ।। पधारो॥१॥ भीषण दृश्य न देखे जाते। जैननित्यस्मरणमाला किं. ०-१-० (. १७ ) For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्यों न जिनेश्वर साम्य जगाते ? दारुण दृश्य, नशादो महावीर, नशादो, नशादो, नशादो महावीर ॥२॥ जैन विभाजित होते जाते, निज अस्तित्व नशाते जाते । जैनों में, प्रेम बढ़ा दो महावीर, बढादो, बढादो, बढादो महावीर ।। ३ ॥ जिन मत शान बचाओ जिनवर, धर्म ही जग में सब से बढ़कर । नूतन ज्योति जगादो महावीर, जगादो, जगादो, जगादो महावीर ॥ ४ ॥ गायन नं. ९ ( छोटी मोटी सैया रे जालीका मोरे गुंथना ) पार्श्व प्रमुजी रे, बिनति मोरी मानना ॥ टेर ॥ अति दुःख पाया मैने, मोह के राज में ( २ ) लाख चौराशी रे, योनिमें जहाँ घूमना । पार्थ ॥१॥ फंस रहा हूं मैं तो, कर्मों के घेर में (२) चार गतिकेरे, दुःखों को बड़े जीलना ॥२॥ भटक रहा हूं प्रभु, अंधेरी रेन में (२) । ज्योति जगादो रे, टले ज्युं मेरा रुलना ॥३॥ सम्यग्दर्शन ज्ञान के राज में, चरण मीलादो रे, स्वामीजी नहीं भूलना ॥ ४॥ गायन नं. १० ( श्याम कल्याण ) आयेरी हम दरसन दरवाजा तेरा खोलो ॥ टेर ॥ ध्यान धरूंगा तेरी पूजा करूंगा, आंगी बनाऊं रंगरोल ॥ आये ॥ १ ॥ थे मेरा ठाकुर प्रभुजी में तेरा चाकर, एक बार हंस बोल ॥२॥ (१८) सवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भोमाजी के नन्दा पारस जिनन्दा, सुरत पर घनघोर ॥ ३ ॥ कहता बनारसी प्रभुजी, में तेरा बन्दा मुखड़े की छबि जोर ॥ ४ ॥ गायन नं. ११ ( बिछूडारी घाली पीवर चाली हो ) म प्रभु के कारण बन में चाली हो सांवरिया | आछो लागे डूंगरियो, सवायो लागे डूंगरियो || ढेर || जूनागढ से ब्याहन प्रभुजी आये हो सांवरियाँ । आछो लागे डूंगरियो । नेमः ॥ १ ॥ तोरन पर आयोडा पिछा फिरिया हो सांवरियाँ । आछो लागे डूंगरियो ॥ २ ॥ पशुवन की तो करुना दिल में धारी हो सांवरिया । आछो लागे डुंगरियो ॥ ३ ॥ संपत तोरे शरणे आयो तारो हो साँवरिया । आछो लागे डूंगरियो ॥ ४ ॥ गायन नं. १२ ( सरोता कहां भूल आई प्यारी नणदोइया ) प्रभुजी ! नहीं भूलना हम को कभी प्यारे प्रभुजी० ॥ टेर || गुण गावें हम हे प्रभु तेरे, सुन अर्जी सबकेरी । अष्ट कर्म जंजाल मिटादो, टालो भव की फेरी ॥ प्रभुजी० ॥ १ ॥ महिमा तेरी पार न पावें, गुण अनन्त भण्डारी | सुरनर कथन करें जो तेरा, कहते न आवे पारी || २ || भरे अनन्त अवगुण से प्रभु हम, उनको ना संभारो। नैया भवसागर में डूबे, जल्दी पार उतारो || ३ || और अधिक कहूं क्या तुजको ? जानत दृष्टान्तरत्नसमुच्चय किं. ०-१-० ( १९ ) For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दशा हमारी । अर्जी धन की सुनकर अब तो, भवभ्रमण देारी ॥ ४ ॥ गायन नं. १३ ( राम पद ) जिनराज नाम तेरा, राखु हमारे घट में || टेर ॥ जाके प्रभाव मेरा, अज्ञान का अंधेरा, भागा भया उजेरा ॥ १ ॥ सुरती है तेरी रागे, देख्याँ विभाव जागे, अध्यात्मरूप जागे || २ || मुद्रा प्रमोदकारी, रूपभेस ज्युं तिहारी, लागत मोहे प्यारी || ३ || त्रैलोक्यनाथ तुमही, हम हे अनाथ गुनही, करीए सनाथ हमही ॥ ४ ॥ प्रभुजी तिहारी साखे, जिन हर्ष सूरि भाषे, दिल मोही - याहीं राखे || ५ || गायन नं. १४ ( पूजारी मोरे मंदिर में आओ ) प्रभुजी मन मंदिर में आयो । ज्ञानन की सुरीता सरीतामें, आ कर दिलको बहावो || प्रभुजी | तेरे आगे में करूं आरती, भव दुःखको दहलावो । कर्म को वारो भविजन के तुम, शिवके सुख दिलावो || प्रभुजी || दिल हम उठ रह्यो क्यों प्रभुजी, ए बाता न समजावों | ज्युं मन गम ए आवे जिनजी, ए मुज मार्ग बतावो ॥ प्रभुजी ॥ श्री चंद्रानन चंद्र ज्युं शीतल, शीतलता उपजावो । आत्म कमल में दर्शन प्याली, लब्धि सूरि को पीलावो || प्रभुजी || ( २० ) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. १५ ( राग मगताल्यु ) चालो सखी छबि देखण कू, रथ चढजा रघुनन्दन आवत हैं रे ॥ टेर । तीन छत्र और तीन सिंहासण, चोसठ चंवर दुलावत हैं रे ।। चालो ॥ २ ॥ लालचंद की याही अर्ज है, सब मिल मंगल गावत है रे ॥ ३ ॥ गायन नं. १६ ( क्या कारण है अब रोनेका ) तेरी सेवा हम करनेका, आतम में अब हुवा उजियाला । पाया दर्शन श्री जिनवर का, गया अंधेरा सबी जनम का ॥ तेरी सेवा ॥ १ ॥ कर्म छाये प्रभु धनघोर, पुरण दर्श समिर नीकला. क्षिणक में एवे उड जावे ॥ तेरी सेवा ॥२॥ तुं गुण गण घन मोर, पुरण धर्म तिमिर विकला, व्याप रहा मेरे तनमन में ।। तेरी सेवा ॥ ३ ।। आतमकमल भया अब मोर, देदो नाथ मुज लब्धि सकला, तेरा शरण है सच्चा जग में ॥ तेरी सेवा ।। ४ ॥ गायन नं. १७ ( राग काफी ) प्रभुजी से लगियो मेरो नेह सखीरी, अब कैसे कर छूटेरी ॥ टेर ।। धृग धृग जग में जहां के जीव को, अपना प्रभुजी से रुसेरी ॥ प्रभु० ॥१॥ जो कोई प्रभुजी से नेह करेगो, शिवपुरना अकलका तजरबा किं. ०-1-0 (२१) For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुख लेसेरी ॥ प्रभु० ॥ २ ॥ सेवाराम प्रभु गांठ रेसमकी, लागी लगन नहिं छूटेरी प्रभु० ॥ ३ ॥ . .... गायन नं. १८. -- ( राग-थियेटर ) प्रभु पूजा है प्यारी भव पार उतारी, करो शास्त्रानुसारी मेरे प्यारे सुजान, मानुं जेसु ध्यान प्रभु-पूजा बनावो, पूजन से शिव फल पाओ मेरी जान, करो पूजा भगवान, धरो सुमति का ध्यान, होवे आत्म कल्याण, होवे वाह वाह वाह, होवे वाह वाह वाह, होवे वाह वाह वाह ॥ गायन नं. १९ ( राग-नागर वेलीयो रोपाव ) ... प्रभु पार्श्वने दरबार, तारा चर्णमांही आज । स्थंभन देवनो जुहार, कीधो प्रेमथी में आज ॥ टेर ॥ हुं लाख चोरासी रूल्यो, तुज धर्मनो पण भूल्यो । अब तुज ध्यानमांही डूल्यो । तारा । ॥१॥ तेरा चरणे जे लागे, वोही जीव दुःख भांगे, अमने सुख सवायो जागे ॥ २ ॥ मोहन भवमां पड़ता, बचावे धर्मधारी जडता, कहे सुयश शिवमांही मलता ॥ तारा ॥ ३ ॥ गायन नं. २० ( राग-नदी किनारे बैठ के आओ) ज्ञान वाहन पर चढ कर आवो, अध्यातम दिल लावो । wwwwwwwwwwwwwwwwwww. (२२) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनका पल पल ध्यान धरिने, निज करम को कटावो ॥ ज्ञान ।। तुम बन जावो आतम राजा, सुमति बनुं मैं रानी । एकमेक हो चेतन हम तुम, शिवपुर मार्ग सोहावो ॥ ज्ञान ॥ केवलज्ञानका भाव जगाकर, भव वन को ही दहावो । आत्मकमल को खूब खीला कर, लब्धिसूरि सुख पावो ॥ ज्ञान ।। गायन नं. २१ ( राग तम सारी ) धन्य भाग हमारा दरसन कीनो रे गोडीपास का ॥ टेर ॥ बहुत दिनों से थी अभिलाषा, कद भेटुं प्रभु पास । पुन्य अंकुरो उगीयोसरे, आज फली मुझ आस हो । धन्य० ॥ १ ॥ शान्त मुद्रा मोहनगारी, नीलवरण तन सोहें। नयन निरखता आनंद आवे, सुरनर का मन मोहे ॥ धन्य० ॥ २ ॥ ज्ञानादिक गुण सम्पदासरे तुज अनन्त अपार । एक अंस तिण मांहलो सरे, मुझे दीजै करतारजी ॥ धन्य० ॥३॥ परंपरा प्रभु आपके सरे, जिणरे छढे पाठ । पर उपकारी श्रीरत्न-प्रभु सूरि नाम लिया होय थाटजी ॥धन्य० ॥४॥ नगर फलोधी भेटी यास रे, प्रथम गोड़ी पास । गयवरचंद सरणो लियो सरे, पूरो वांछित आशजी ।। धन्य० ॥ ५ ॥ गायन नं. २२ ( तर्ज-काली कमलीवाले तुमको, लाखों प्रणाम ) आवो वीर प्यारे नैया डूब रही है ॥ टेर ॥ गहरी गहरी पद्यमयमहावीर जीवन किं. ०-०-९ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नदियां नाव पुरानी । बड़े बड़े भँवरहैं गहरा पानी । हो गई भारी हानि नैया डूब रही है । आवो ॥ १ ॥ जैसे चन्दनबाला तारी । गोतम को दी शिक्षा प्यारी । तारो नाव हमारी नैया डूब रही है ॥ २ ॥ छोटे छोटे बालक शरण में आये । चरण में आप के शीश झुकाये । गुण गायें हर्षाएँ नैया डूब रही है ॥ ३ ॥ मदन, गुमान हैं तेरे प्यारे । चन्दन मुन्नी तेरे दूलारे । राम जाय बलिहारी नैया डूब रही है ॥ ४ ॥ गायन नं. २३ ( तर्ज-या इलाही मिट न जाये दर्दे दिल ) . वीर भगवन ! शीघ्र सुध ले जाइये । धर्म उपवन को पुनः विकसाइए ॥ १ ॥ विश्व सोया है तिमिर अज्ञान में । ज्ञान का आलोक अब प्रसराईए ॥ २ ॥ द्वेष की ज्वाला में सब ही भस्म हैं । प्रेम अमृत वीर ! अब छिड़काइए ॥ ३ ॥ साम्यवादी राष्ट्रवादी हों सभी । विश्व को यह अमर मन्त्र सुनाइए ॥४॥ शुष्क हैं सब पुष्प उपवन विश्व के । कर कृपा इन में अमरता लाइए ॥ ५॥ दीनबन्धो ! करुणा क्रन्दन दीनके । वीर जिनवर ! कर कृपा सुनजाइए ॥ ६ ॥ आश केवल आप की भगवन ! लगी। नाथ निज करुणा प्रवाह बहाइए ।। ७ ।। गायन नं. २४ ( राग गाली ) - पारस भजले बारंबार, जैनधर्म से पायो सार ॥ टेर ॥ नगर (२४) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बनारसी जन्म लियो हैं, अश्वसेनजी के घरबार । पारस ॥ १ ।। मस्तक मुकुट काना दो कुंडल, भुजबंध सोहे झलकेदार ।। २ ॥ हीवडे हार मोतियन को सोहे, पुणची सोहे रत्न जडाव ॥ ३ ॥ अन्य देव मैं बोत सेविया, अब मेरे तेरो आधार ॥ ४ ॥ राग द्वेष दोय चोर लुटेरा, यह दोनु पडीया मेरी लार ॥ ५ ।। दास कान चरणांको चाकर, भवसागर से पार उतार ॥ ६ ॥ गायन नं. २५ ( राग-धुंसारी ) दरसन कियो आज सिखरगिरि को, दरसन कियो । टेर ।। देखो माधोबन सितानालो । जहां को नीर बहै निको । दरसन ॥ १ ॥ बीस कोस से गिरवर दीसे । तो भागीयो भरभ सकल जन को ॥ २ ॥ बीस टुंक पर बीस गुमटीया । तिण मांहे चरण जिनेश्वर को ॥ ३ ॥ अब जिनेश्वर के सरण में आयो। रस्तो पायो सिवपुरको ॥ ४॥ गायन नं. २६ ( तर्ज-प्रेमकी बसी बाजे ) जगत में वीर की वाणी गाजे ॥ टेर ।। वाणी को गाना, दुःखको मीटाना । वाणी प्रभु सुखदाना ।। जगत ॥ १ ॥ वाणी ही मुक्ति, वाणी वीरकती। वाणीसे शिव पाना ॥ २ ॥ वाणी ही धन है, वाणी रटन है । भव अटन को मीटाना ॥ ३ ॥ वाणी .....wwwwrimariwww.www.www.wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww • नवीनमहावीर गायनमाला किं. ०-०-६ (२५) For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ही मस्ती, दर्शन हस्ती । कर्म जाड कटाना ॥ ४ ॥ वाणी विलासी, ज्ञान प्रकाशी । अडवीश लब्धि स्थाना ॥ ५ ।।.. गायन नं. २७ संभव जिनवर देव सेवो भवि भाव से ॥ टेक || अष्टादश दोषों के त्यागी ( २ ) प्रभु गुण धारे बार भविक मन भावते ॥ सं० ॥ १ ॥ चउतिस अतिशय पेत्रिश वाणी ( २ ) जगजीवन सुखकार भविकजन तारते ।। सं० ॥ २ ॥ सोहन वरणी मूर्ति सोहे (२) दर्शन से दुःख जाय ध्यावो शुभ भाव से ॥ सं० ॥ ३ ॥ शान्तिस्वरूपी मुद्रा धारी ( २ ) भविजन के हितकार कर्म रोग निवारते ॥ सं० ॥ ४ ॥ फलोदी नगर सिरदारपुरा में, निहाल धर्मशाल जो है बडी विशाल ॥ सं० ॥ ५॥ किसनलाल संपतलालने, मन्दिर बनाया मनुहार दर्शन अति आवते ॥ सं० ॥ ६ ॥ शिखर कोरणी है अति सारी ( २ ) देव भुवन अनुसार भविक मन मोहनी ।। सं० ॥ ७ ॥ संवत् उगनीसे नव्यासी वर्षे (२) मिगसर मास गुलजार अति आनन्दसे ॥सं० ॥ ८ ॥ सुखकारी भगवान उपकारी (२; शिवलक्ष्मी प्रेम आधार दिल में अति भावते । सं० ९॥ गायन नं. २८ ( तर्ज-गजल ) है जगत में नाम ये रोसन सदा तेरा प्रभु । तारते उसको - wwwvvwvvwvvwvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvwwwww (२६) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सदा जो ले सरन तेरा प्रभु ।। टेर ।। लाख चौरासीने घेरा कर्मने मारा मुझे । ले बचा अब तो साहारा है मुझे तेरा प्रभु ।। है जगत० ॥१॥ सैकडो को तारते हो मेहर की करके नजर । क्यों नहीं तारो मुझे है ? क्या गुनाह मेरा प्रभु ॥ २ ॥ है जगत० ॥ हाल जो तन का हुआ है आप बिन किस से कहुं ? । मोह राजाने मुझे चारो तरफ धेरा प्रभु ॥ है जगत० ॥ ३ ॥ आपसे हरदम तिलक की येही तो अरदास है ॥ आप के चरणों में मेरा रहे सदा डेरा प्रभु ॥ ४ ॥ गायन नं. २९ ( तर्ज-गालीकी ) मंदिर नगर फलोदी रलियामणा रे, प्रभु पारसनाथ सुहावणा रे ॥ टेर ॥ पोस वदि दसमी दिवसे जाया, जन्म आधिरात का पाया। माता भोमादे हुल राया, अश्वसेन घर हरख वधामणा रे ॥ मंदिर० ॥१॥ जिनजी को नील वरण छ नीको निलवट सोहे केसर टिको । मुखडो चन्द्रवदन जिनजी को, भवि तुम दरसन कर सुख पावणारे ॥ २ ॥ जिनजीकी मूरति मोहनगारी, लागे भवि जीवन को पियारी । गुण जस गावत है नर नारी, मारी आवागमन निवारणा रे ॥३॥ मस्तक मुकुट सोहे अतिभारी, काना कुंडल की छबी न्यारी । मैं तो जाऊं बलिहारी थारी, मने भवसागरथी तारणा रे ॥४॥ अर्जी एक इन्द्रचन्द्र की धारो, लागो चित्त चरणो में मारो। मारी मनरा कारज सारो, मारी विनतडी अवधारणा रे ॥५॥ स्थापनाजी किं. ०-०-३ ( २७ ) For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं.३० ( तर्ज--प्रेम कहानी सखी सुनत सुहावे ) शांति जिणंद मुज चित्त सोहावे। प्रभु दिलावे ज्ञान खजाना । जन्म मरण की रीतियां छुडाई ॥ शांति ॥ १ ॥ प्रभु हटावे मोह का भाला । लाख चौराशी की पीर हटाई ॥ २ ॥ धर्म भाव की प्रीत निहाली । जो दील लावे अमर होजावे ॥ ३ ॥ आत्म कमल में ध्यान लगाई, जो गुण गावे मरण नहिं पावे ॥ ४ ॥ लब्धि सूरि नीज ज्योत जगाई, भव दुःख हर के शिवपुर जावे ॥५॥ गायन नं. ३१ ( तर्ज-मथुरा में सही गोकुलमें सही ) मुज मन में तुंही, मुज तनमें तुंही, में सदा रटुं जिन तुंहीं ने तुंही । अब हीनहीं तो कब ही सही। प्रभु दर्श दिखावो कहीं ने कहीं ॥ टेर ॥ लाख्खों को तारे थे जिनवर, अब हम को भी तारो दिलवर । हम प्यासे है प्रभु शिवसुख के, हम चरण दीखा दो कहींने कही ॥ मुज ॥ १ ॥ तुम नाम रटन दिनरात करूं, तुम ध्यान में मस्त सदा ही फीरुं । उम्मेद है हमको तारोगे, प्रभु कर्म हरोगे कहीने कही ॥ २ ॥ आत्मकमल में प्रभु सीमरणसे, सूरि लब्धिका होय विकास सदा । हम कर्मो का अब चुरकरो, प्रभुदर्श दीखावो कहीने कहीं ॥ ३ ॥ ( २८ ) · स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ३२ ( तर्ज-रेखता ) चाहे तारो या न तारो, शरणा तोले देव स्वामी मेरे, सरना है चरणा तेरे || चाहे ॥ १ ॥ देवाधिदेव देवा, फल में आ चुका हूं || २ || जिन वीतराग कर, दिल तुमसे ले चुका हूं || ३ || सेवक कष्ट हरीए, अपनेही जैसा करीए, आखिर यह कह चुका हूं ॥ ४ ॥ आतम लक्ष्मी दीजै, अत्यंत हर्ष कीजै, वल्लभ तो हो चुका हूं ॥ ५ ॥ गायन नं. ३३ ( तर्ज - छोटासा बलमा मोरे आँगने में गीली खेले ) I भजले श्री पार्श्व मन तूं छोड़ कर झंझट को सारी || ढेर || छोड़ के झंझट को सारी, येही तो दुख को करनारी । लेकरके शस्त्र इनके नाम का, दे इनको मारी ॥ भज ॥ १ ॥ प्रभुका ही नाम है भवताप को मिटाने वारी । करते इनका शुद्ध मन से ध्यान, वे होजावे पारी ॥ २ ॥ ओसिया मंडल को शरणा, पार्श्वका इनकी जाँयवारी । चरणों की सेवा धन अश्वसेन वामा नंद की प्यारी ॥ ३ ॥ चुकाहूं || ढेर || रिखबचरणों में आ पडा हुं मुक्तिसुख मेवा, शरणा संकर, भविजिव के प्रियं गायन नं. ३४ ( तर्ज - मांड ) सांवरो सुखदाई जाहांकी छबि, वरणी नहिं जाई ॥ टेर ॥ जीवनचरित्र भेट ( २९ ) For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अश्वसेन भोमाजी के नन्दन, कीर्ति त्रिभुवन छाई । समेतशिखरगिरि-मंडन प्रभु को देख दरस हरखाई, हृदय मेरो अति हुलसाई, || सांवरो || १ || आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो, आज आनन्द बधाई । त्रण भुवन को नायक निरख्यो, प्रगट्यो पूर्व पुन्याइ, सफल मेरो जन्म कहाई ॥ २ ॥ प्रभुजी को दरस सरस बिन भटक्यो, भवभव भटक्यो में भाइ । अब तोरा दरस सरस नित चाहत, बालक है गुण गाई, प्रभुजी से लगन लगाई ॥ ३ ॥ ( ३० ) गायन नं. ३५ ( तर्ज - केरवो ) भैं सुसंगी सुसंगी सुसंगी प्रभु मिल गये, सुसंगी प्रभु मिल गये 1 सफल भये मेरे नेन नेना सुसंगी प्रभु मिल गये || ढेर || हांरे एक तो दरसन मैं दरसन भैं दरसन को प्यासा । मै दर्शन को प्यासा हां रे दरसन बिना नहिं चैन ॥ नैना ॥ १ ॥ हारे एक तो मैं पापी मैं पापी हूं प्राणी, मैं पापी हूं प्राणी तारनावाले दीनानाथ ॥ २ ॥ हरेि एक तो मैं माया मैं माया मैं माया को लोभी मैं माया को लोभी हां रे झुठी माया मेरी जान मैं आया मैं आया मैं आया मैं आया तेरे शरणे हारे जैन मंडली गुण गाय ॥ ४ ॥ गायन नं. ३६ ( तर्ज - एक बंगला बने न्यारा ) -- एक ध्यान प्रभु तारा, बने मनवा जीससे सारा ॥ टेर ॥ स्तवनमंजरी. || ३ || हारे एक तो शरणे, मैं आया तेरे For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होने को रंगला, कर्मों को मंगला, शुद्ध धर्मो के द्वारा, शिव मंदिर प्यारा ॥ एक. ॥ १ ॥ इतना ऊंचा रंगला होवे, मानु आतम प्यारा, ध्यान को घर के ज्ञान वाहन पर, फुलेफाले चित्त हमारा ॥२॥ मंडाण हो गुणों का आतम में प्यारा ध्यानदिल को भर के जीन को, लब्धि में सुखपाई ॥ ३ ॥ गायन नं. ३७ ( तर्ज - तेरी छलबल है न्यारी ) करो दरसन जिनन्द, होवे आतम आनन्द, कटे जगत के फन्द मानो चतुरसुजान ॥ धरो मन प्यार प्रभु लगन लगावो । दरसन से शिवसुख पावो मेरी जान । प्रभु दरसन महान, वल्लभ आतम सुजान, करे अपने समान होवे वाह वाह वाह वाह वाह वाह, वाह वाह वाह || गायन नं. ३८ ( तर्ज - केशराया धांसु प्रीत करी रे ) संभव जिन स्वामी चरणों में हम को रख लीजिये || टेर || कर्मराज के फंद पडे हैं, इससे नाथ बचाना । तुम बिन आश्रय और न हमको, जीसको जाय सुनानाजी | संभव || १ || सम्भवनाथ तुम्हारा स्वामी सार्थक यह कर लीजे । असम्भव को सम्भव करके, मुक्ति का वर दीजे जी ॥ २ ॥ छात्र सकल और धन मिलकर के, गुण गावे हम आज | सुनकर अर्ज हमारी अब तो, सारौ वांछित काजजी ॥ ३ ॥ रत्नाकरपचीसी किं. ८-१-० For Private And Personal Use Only ( ३१ ) Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ३९ ( तर्ज-क्या जादु भर लाइरे हो मोरा नंना देवरीया ) भवी ध्यावो रे, हारे भवि ध्यावो रे, हां प्रभु शीतल जिनन्द को ॥ टेर ॥ चन्द्र समान शीतल प्रभु सोहे, नहीं प्रभु को विसराओ रे ॥ १॥ तज कर मोह दीक्षा ली धारी, क्यों न शरण प्रभु धारो रे ॥ २ ॥ शरणागत को प्रभु अपनाते नहीं, इन प्रभु को भुलाऔ रे ॥ ३ ॥ छोडो तुम झंझट दुनिया का, नित्य प्रति ध्यान लगाओ रे ॥ ४ ॥ ओसिया मंडल धन नित्य समरे, मिल प्रभु सनमुख आओ रे ॥ ५॥ गायन नं. ४० यात्रा नवाणु करीए विमलगिरि, यात्रा नवाणु करीए ।।टेर॥ पूर्व नवाणु वार शत्रुजय गिरि ऋषभ जिनंद समोसरीए || विमल ॥१॥ कोडी सहस भव पातक त्रुटे, शेत्रुजा सामो डग भरीए ।। २ ।। सात छठ्ठ दोय अठ्ठम तपस्या, करी चडीए गिरि वरिए ॥ ३ ॥ पुंडरिक पद जपीए मन हरखे, अध्यवसाय शुभ धरीए ॥ ४ ॥ पापी अभव्य न नजरे देखे, हिंसक पण उद्धरीए ॥ ५॥ भूमि संथारो ने नारी तणो संग, दूर थकी परिहरीए ॥ ६॥ सचित्त परिहारी ने एकल आहारी, गुरु साथे पद चरीए ॥ ७ ॥ पडिक्कमणा दोय विधिशुं करिए, पाप पडल परिहरिये ॥ ८ ॥ कलिकाले ए तीरथ मोटुं, प्रवहण जेम भर दरिये ॥ ९ ॥ उत्तम ए गिरिवर सेवंता, पद्म कहे भव तरीए ॥ १० ॥ hrrina ( ३२ ) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ४१ सिद्धाचल गिरि भेट्या रे, धन्य भाग्य हमारां ॥ टेर । ए गिरिवरनो महिमा महोटो, कहेतां न आवे पारा, रायण रुषभ समोसर्या स्वामी, पूर्व नवाणुं वारा रे ॥ धन्य ।। १॥ मूलनायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा । अष्ट द्रव्य शुं पूजो भावे, समकित मूल आधारा रे ॥ २ ।। भाव भक्ति शुं प्रभु गुण गावे, अपना जन्म सुधारा । यात्रा करी भविजन शुभ भावे, नरक तिर्यंच गति वारा रे ॥ ३ ॥ दूर देशांतरथी हुं आव्यो, श्रवणे सुणी गुण तोरा । पतितउद्धारन बिरुद तुमारो, ए तीरथ जग सारा रे ॥४॥ संवत अढार त्याशी मास अषाढ, वदि आठम भोमवारा। प्रभु के चरण प्रताप से संघ में, क्षमारत्न प्रभु प्यारा रे ॥ ५ ॥ गायन नं. ४२ वासुपूज्य विलासी, चंपाना वासी, पुरो अमारी आश । करूं पूजा हुं खासी, केसर घासी, पुष्प सुवासी, पूरो अमारी आश ।। ॥टेर ॥ चैत्यवंदन करुं चित्तथी प्रभुजी, गाऊं गीत रसाल । एम पूजा करी विनति करुं छु, आपो मोक्ष विशाल, दीयो कर्मने फांसी, काढो कुवासी, जेम जाय नासी, पूरो अमारी आश ॥ वा० ॥१॥ आ संसार घोर महोदधिथी, काढो अमने बाहर । स्वारथनां सहुं कोइ सगां छे, मात पिता परिवार, बालमित्र उल्लासी, विजय विलासी, अरजी खासी, पूरो अमारी आश ॥ वा० २॥ स्तवनमंजरी. ( ३३ ) For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ४३ ( तर्ज - जाओ जाओ अय मेरे साधु ) लेलो लेलो हे नेम पिया ! मुझे तुम्हारे साथ || टेर || कर के प्रीत छोड़कर चलना, तुमको यह न सुहाय । जो जाना मुक्ति में पकडो, मेरे भी तुम हाथ || लेलो ॥ १ ॥ निर्मोही हो मुझ को छोड़ा, मैं नही छोडूं साथ । पास तुम्हारे लुंगी दीक्षा, मुक्ति में फिर साथ || २ || छोडा संसार असार समझ फिर, कर लिया आत्मकल्याण | वर वधू दोनों प्रीत समय में, समरे धन सुख पाय || ३ || गायन नं. ४४ शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांति करण अनुकुल में हो जिनजी, तुं मेरा मन में, तुं मेरा दिल में, ध्यान धरूं पल पल में साहेबजी || तुं मेरा ॥ १ ॥ भवमां भगतां में दरिशन पायो, आश पूरो एक पल में हो जिनजी || २ || निर्मल ज्योत वदन पर सोहे, निकस्यो ज्युं चंद बादलमें हो जिनजी || ३ || मेरो मन तुम साथे लीनो, मीन वसे ज्यु जल में साहेबजी || ४ || जिन रंग कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकल में हो जिनजी ॥ ५ ॥ गायन नं. ४५ ( तर्ज - मोटर धीरे धीरे हांक ) श्री अनन्तनाथस्वामी को भवि तुम नित उठ घ्याओ रे घ्याओ नित्य तुम भाव सहित, परमानन्द पाओरे ॥ टेर || अनन्त काल से ( ३४ ) चंदराजानो रास (गुजराती) किं. ४-०-० For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भ्रमण किया, भव में प्रभु से मुख मोड । अब भी नाथ शरण धारण कर, भव बन्धन दे तोड ॥१॥ भारभूत पृथ्वी पर वे नर, जिनकी न प्रभु से प्रीत । जन्म वृथा सब खोकर अपना, मरण समय भवभीत ॥ २ ॥ अनन्त ज्ञान दर्शन चारित्र ये, आतम गुग प्रगटाय । पाप कर्म सब अनन्तकाल के, क्षण में दूर पलाय ॥ ३ ॥ संघ चतुर्विध स्थापन कर, तीर्थंकर गोत्र बंधाय । नित आत्म कल्याण को करते, पर हित चित्त दगाय ॥ ४ ॥ ओसियाँ मण्डल नित्य जिनजी के, चरणों में रहे लीन । नहीं नाथ बिन शरणा, धन को रहें जिसके आधीन ।। ५ ।। गायन नं. ४६ ( तर्ज-जट जावो चंदन हार लावो ) . भवि भावे देरासर आवो, जिणंदवर जय बोलो । पछी पूजन करी शुभ भावे, हृदय पट खोलोने ॥ शिवपुर जिनथी मांगजो, मांगी भवनो अंत । लाख चोरासी वारवा, क्यारे थइशु अमे प्रभु संत । भवि एम बोलोने ॥ भवि ॥ मोंधी मानव जिंदगी, मोंघो प्रभुनो जाप । जी चित्तथी दूर करो, तमे कोटी जनमना पाप । हृदय पट खोलोने ॥ २ ॥ तुं छे मारो साहिबो, ने हु छु तारो दास । दीनानाथ मुज पालीने, प्रभु आपोने शीवपुर वास । हृदयपट खोलोने ॥३॥ छाणी गामनो राजीयो, नामे शांति जिणंद । आत्मकमलमां ध्यावतां, शुद्ध मले लब्धिनो वृंद । हृदयपट खोलोने ॥३॥ www.rrrrrrrrrorm vivaamirmire स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ४७ ( तर्ज-पनजी मुंढे बोल ) बोल बोल आदीश्वर वाला, कांई थारी मरजी रे, मांसु मुंढे बोल ।। टेर ।। माता मरुदेवी वाट जोवता, इतने बधाई आई रे । आज ऋषभजी ऊतर्या बाग में, सुण हरखाई रे ॥ मांसु० ॥१॥ नाय धोयने गज असवारी, करी मरुदेवी माता रे । जाय बाग में नन्दन निरखी, पाई शाता रे॥ मांसु० ॥२॥ राज छोडने निकल्यो रिखवो, आ लीला अदभूति रे। चमर छत्र ने और सिंहासन, मोहनी मुरती रे ॥ मांसु०॥३॥ दिन भर बैठी वाट जोवती, कद मारो रिखको आवे रे । कहती भरत ने आदिनाथरी, खबरां लावे रे ॥ मांसु० ॥ ४ ॥ किसी देश में गयो वालेसर, तुझ बिन वनिता सुनी रे । बात कहो दिल खोल लालजी, क्यों बन्या मुनि रे ? ॥ मांसु० ॥ ५ ॥ रह्या मजामां है सुखशाता, खूब किया दिल चाया रे । अब तो बोल आदीश्वर माँसु, कल्पे काया रे ।। मांसु० ॥६॥ खैर हुई सो हो गई वाला, बात भली नहीं कीनी रे । गया पीछे कागद नहीं दिनो, मारी खबर न लीनी रे ॥ मांसु० ।। ७ ।। ओलंभा मैं देऊं कठा लग ? पाछो क्यों नहीं बोले रे ? । दुःख जननी को देख आदीश्वर, हीवडे तोले रे॥ मांसु० ॥८॥ अनित्य भावना भाई माता, निज आतमने तारी रे । केवल पामी मुक्ति सिधाया, ज्याने वंदना हमारी रे ॥ मांसु० ॥ ९ ॥ मुक्ति का दरवाजा खोल्या, मोरादेवी माता रे । काल असंख्या ( ३६) श्रीसंभवनाथचरित्र किं. ०-१२-० For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रह्या उघाडा, जंबू दे गया ताला रे || मांसु० ॥ १० ॥ साल बहोत्तर तीर्थ ओसियां, गयवर प्रभु गुण गाया रे । मूर्ति मनोहर प्रथम जिनंद की, प्रणमुं पायारे ॥ मांसु ।। ११ ।। ० गायन नं. ४८ ५ ( तर्ज - चालों संग सब पूजनको गुरु श्री अभिनंदनस्वामी सदा, सब के ही वांछित पूरते हैं । मूर्ति प्रभु की शान्त निरख कर, भव की बाधा टालते हैं रे || टेर || राग न द्वेष किसी से प्रभु को, सुखी सब प्राणी को चाहते हैं रे ॥ १ ॥ सिद्धार्थ के जो हैं दुलारे, दीनों को अपनाते हैं रे || २ || कपि लंडन के धारणकर्ता, सुरनर सब गुण गाते हैं रे ॥ ३ ॥ शरणागत के पालक प्रभु हैं, भव से पीछा छुड़ाते हैं रे || ४ || ओसियां मण्डल धन को शरणा, चरणों में शिर नवाते हैं रे ॥ ५ ॥ । ) गायन नं. ४९ ( तज फागणकी गाली ) प्रभु वीरतणो उपदेशके दिल में धारणा रे । भवियण जनम मरण मिट जाय, फेर नहिं आवणा रे || ढेर || कक्का कल्पसूत्र सुन सारी, खख्खा खेंवा पार लगारी । गग्गा ज्ञान से कहो बिचारी, घाघट बिच प्रभु को राख फेर नहिं आवणा रे || प्रभु० ॥ १ ॥ चच्चा चउदा सुपना देखो, छछछा छीन छीन रो लेवो लेखो । स्तवनमंजरी. ( ३७ ) For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जज्जा जन्म प्रभु को देखो, झझझा झूट कभी नहि बोल फेर नहि आवणारे ||२|| टट्टा र प्रभु से हमारी, ठठ्ठा ठोर मिले सुखकारी । डड्डा डर राखो भयभारी, ढड्ढा ढील कब हुं नहिं जाण फेर नहिं आवणा रे || ३ || तत्ता तन मन धन स्थिर नहिं, थथथा स्थिर जग में कोइ नांहि । दद्दा दान देवो जगमांही, धद्धा धर्म से करो तुम प्रीत फेर नहिं आवणा रे || ४ || पप्पा पुस्तकजी घर लावो, फफ्फा फिर तुम रात जगावो । बब्बा बांधो पुनरो लाहो, सम्भा भवसागर तिर जाय फेर नहिं आवणा रे || ५ || यय्या यह इच्छा बहु भारी, रर्रा राखो धर्म बिचारी । लल्ला लाभ लेवो सुखकारी, वन्वा विघ्न टले सुख पाय फेर नहि आवणा रे || ६ || सस्सा समत सितंतर जानों, दुतिक श्रावण मास वखानो । वद तेरस वार बृहस्पति जानों, सस्सा सेवक छगन को तार फेर नहिं आवणा रे ||७|| गायन नं. ५० ( तर्ज - अहमद भुल न जाना ) श्रीसुविधिनाथ को ध्याना, परमानन्द पद पाना || ढेर || जब श्रीनाथ गर्भ में आये, धर्म में मातपिता चित्त लाये | नहीं प्रभु जाय बखाना, परमानन्द पद पाना ॥ १ ॥ सुग्रीव रामा के प्रभु नन्दन, छुडवाते कर्मोंका बन्धन | इनका ध्यान लगाना, परमानन्द पद पाना || २ || प्रभु हैं अनन्त शक्ति के धारी, पार किये हैं कई नरनारी । और न नाथ बनाना, परमानन्द पढ़ पाना || ३ || अभयदान के प्रभु हैं दाता, जगजीवों को करते शाता । ( ३८ ) स्तवनमंजरी किं. ०-४-० For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाम न इनका भूलाना, परमानन्द पद पाना ॥ ४ ।। ओसियां मण्डल अर्ज करत हैं, धन इनका नित्य ध्यान धरता है । सब इनके गुण गाना, परमानन्द पद पाना ॥ ५ ॥ गायन नं. ५१ ( तर्ज-गजल ) तेरे दरसन के देखे. से मुझे आराम होता है । टेर ॥ दरस मोही दीजीए प्रभुर्जी, दरस बिन दिल तरसता है। अंधेरी रैन में जैसे, चांदनी का उजाला हैं । तेरे॥१॥ मेरे महाराज शुभ ध्यानी, बिच मंदिर के बसत हैं । उन्हों के कानों की मोती, जलाजलसा चमकता हैं ॥ २ ॥ कहूँ कछु और करुं कछु, और यही जंजाल होता है। यही सच बात साधन की, सरासर काम होता है ॥३॥ गायन नं. ५२ ( तर्ज-कच ली ) बिना दर्सन किये तेरा, नहिं दिल को करारी हैं। चुरा के ले गयी मनको, प्रभु सुरत तुम्हारी है ॥ टेर ॥ न कलपाओ दया लावो, हमें निज पास बुलवाओ । सहाजाता नहीं अब तो, विरह का बोझ भारी है ।। बिना ॥१॥ ज्ञान से ध्यान से तेरा, न सानी रूप दुनियां में । फिदा हो प्रेम में तेरे, उमर सारी गुजारी हैं ॥ २ ॥ दया पूरण कष्ट चूरण, करो अब आश मम पूरण । मेहर की एक ही दृष्टि, हमें काफी तुम्हारी है ॥ ३ ॥ विमल है नाम स्तवनमर्जरी ( ३९ ) For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनतेरा, विमल कर नाथ मन मेरा । चरण में आप के डेरा, तिलक भवभव सकारी है ॥ ४ ॥ गायन नं. ५३ मह उठी मैं सदा नमुं हाथ जोड के साम, चौवीसे जिनराजकु हुं नित्य करूं प्रणाम || ढेर || रिषभ अजित संभव अभिनंदन, और सुमति जिनराज । पद्म सुपार्श्व चन्द प्रभु से, लगन लगी है आज || १ || सुविधि शीतल श्रेयाँस, सवाई दीजे मुक्ति नाथ । वासुपूज्य जिन बारमा, विमल अनंतनाथ || २ || धर्म शांति अरु कुंथु जिनेश्वर, अर मल्ली महाराज | मुनिसुव्रत नमि नेमजी, पार्श्व वीर जिनराज || ३ || कहै पाठक कल्याण की, निधान पूरी आस । कर जोडी गुण गावता, चंद गोपालदास ॥ ४ ॥ गायन नं. ५४ ( तर्ज - कल्याण ) जिन गल सोहे मोतियनकेरी माला || ढेर || मस्तक मुकुट सोहे मनमोहन, कुण्डल लागत वाला || जि० ॥ १ ॥ भजो रे भजो तुम लोक सहर के, नहीं रे भजे सोही काला || २ || माणक पर प्रभु मेहर करीने, अपनो विरद संभाल || ३ ॥ ( ४० ) गायन नं. ५५ ( तर्ज - सुखकर दुःखहर प्रणतपाल तुम ) भावो भविकजन भाव से भावना, वीर दर्शन की जय जय महासती सुरसुन्दरी किं. ०-८-० For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ टेर ।। वीर दर्शन से प्रसन्न मन होवे, आतम गुण प्रभु ध्यान से जोवे । आलंबन वीर दर्शन सोहे ।। जय० भावो० ॥१॥ मुद्रा शान्त प्रशान्त करत है, त्रिविध ताप संताप हरत है। अलख ध्यान उरमाही धरत है ॥२॥ करणेन्द्रिय है ज्ञान की दर्शक, ज्ञानेन्द्रिय आतम गुण फरसत । सत्य ज्ञान उर माँही धरते है ॥३॥ मोह महिरण मुंझावत भारी, आतम गुण हर करत है ख्वारी । कर्म कटक भट होत संहारी ॥ ४ ॥ औसिया वीर मण्डली गुण गावे हरदम वीर चरणो चित्त लावे । नागर अजर अमर पद पावे ॥ ५ ॥ गायन नं. ५६ ( तर्ज-कोरो काज लियो ) श्री धर्मनाथ धर ध्यान हम को अपनालो । टेर ॥ मायाजाल में फंसकर मुझ को न रहा धर्म का भान ॥ हम ॥१॥ रहा लीन मैं पाप कर्म में भूल गया भगवान ॥ २ ॥ सज्जन के मुखसे हितशिक्षा, बहरे सुनने में कान ॥३॥ पेट का रोना है निशदिन, नहीं दया नहीं दान ॥ ४ ॥ रहा द्वेष ईर्षा का वास किया, प्रेम सुधी नहीं पान ॥ ५ ॥ चिन्ता होती है इन सब की, जब होता अवसान ॥ ६ ॥ चउनति में अब खूब भ्रमण कर, थका सर्वथा जान ॥ ७ ॥ ओसीया मण्डल नाथ उबारो, करते तुम गुणगान ।। ८ । निपट अज्ञान है जान दास, धन रखलो हे प्रभो आन ॥ ९ ॥ स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ५७ ( तर्ज-चिन्तामणि पार्श्व प्रभो अर्ज करूं मैं ) श्री कुन्थुनाथ स्वामी, अर्जी पे ध्यान धरिये । कर्मों का पडदा छाया, प्रभो शीघ्र दूर करिये ॥ टेर ।। शुद्ध देव धर्म गुरुपर, श्रद्धा तनिक भी नहीं है। मिथ्यात्व को मिटाकर, समकित प्रदान करिये ॥ १ ॥ नहीं दान शील हम में, तप करना नहीं सुहाता, शुभ भावना जरा नहीं, इन दुर्गुणों को हरिये ॥ २ ॥ शुभ कार्य करने से मन, पीछे सरकता है। दौडे जहां खेल तमासे, कुमति को ऐसी हरिये ॥ ३ ॥ गुरु वाणी पर न हमको, होती रूचि जरा भी। मण्डल की है यह अरजी, धन सुमति सब में भरिये ॥ ४ ॥ गायन नं. ५८ ( तर्ज-प्रभु मोरी नैया बेडा पार लगादै ) हमें नहीं प्रभु मल्लिनाथ विसारो ॥ टेर ॥ फंसा प्रभो मैं धन यौवन में, शरणा तुम्हारा हमें नाथ उबारो ॥ हमें ॥ १ ॥ भूले तुम्हें अज्ञान दशा में । पर प्रभो यह नहीं दिल में विचारो ॥२॥ डूबती नैया मेरी भवसागर में । तुम्हीं दया कर पार उतारो ॥३॥ तप जप ध्यान न है बन आता । शरणा तुम्हारा विनति अवधारो ॥ ४ ॥ मण्डल तुम्हें नित्य शीश नवाता । कर्मों को हम से धन शीघ्र निवारो ॥ ५ ॥ (४२) सुलसा सती किं. ०-४-० For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org गायन नं. ५९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( तर्ज - नाछेडो गाली दूंगीरे, भरने दे गगरी ) नमिनाथ प्रभो ! सुधी लेनाजी, तुम ही एक पालनहार । तुम हमको अपना लेनाजी, तेरा एक आधार || टेर || निरखी जब मूर्ति प्यारी, आंख हुई अति सुखियारी । क्षय हुए कर्म दल भारी, भारी सकल भयहारी रे || तुम ॥ १ ॥ यश गा सकते नहीं तेरा, टालो प्रभो ! मोह का थेरा | अब हो नहीं फिर भव फेरा, न हो शिव डेरा रे || २ || धन तुम को शीश नमावे, मण्डल शुद्ध भाव से ध्यावे । गीत गान से तुझे रिझावें, रिझावे और सुख पावे रे || ३ ॥ गायन नं. ६० ( तर्ज - मारुं वतन आ मारुं वतन ) प्रभु नमन कर प्रभु नमन । खरुं खरुं छे प्रभु नमन |र || राग द्वेषनी छाया नहीं ज्यां, एवा प्रभुथी टले भवनुं भ्रमण ॥ प्रभु ॥ १ ॥ क्रोध मान माया दूर काढो, लोभतणा प्रभु तोडो फंदन || २ || शांतिजिनेश्वर जग परमेश्वर, भजन तमारुं ताप हरे चंदन || ३ || षट् खंड त्यागी संजम धार्यु, अद्भुत त्यागी तने करूं वंदन || ४ || आत्मकमलमां लब्धि स्थापो, तुंही शरण प्रभु तुंही शरण || ५ || स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only ( ४३ ) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ६१ सिद्धारथना रे नंदन विनवू, विनतडी अवधार। भवमंडपमां रे नाटक नाचीयो, हवे मुज दान देवराव, हवे मुज पार उतार ।। सिद्धाः ॥ त्रण रतन मुज आपो तातजी, जेम नावे रे संताप । दान देयंतां रे प्रभु कोसीर कीसी ? आपो पदवी रे आप ॥ २ ॥ चरण अंगूठे रे मेरु कंपावीयो, सुरना मोड्यां रे मान । अष्ट कर्म. नारे झगडो जीतवा, दीधुं वरसी रे दान ॥३॥ शासननायक शिवसुखदायक, त्रिशला कूरखे रतन । सिद्धारथनो रे वंश दीपावीयो, प्रभुजी तमे धन्य धन्य ॥ ४ ॥ वाचकशेखर कीर्तिविजय गुरु, पामी तास पसाय । धर्मतणा ए जिन चोवीशमा, विनयविजय गुण गाय ॥ ५ ॥ __गायन नं. ६२ वहाला वीर जिनेश्वर जन्म जरा निवारजो रे । प्यारा प्रभुजी प्रीते मुज शिर परे कर स्थापजो रे ॥ १ ॥ त्रण रत्न प्रभु आपो मुजने, खोट खजाने को नहिं तुजने। अरजी उर धरी कर्म कटक संहारजो रे ॥२॥ कुमति डाकण वलगी मुजने, नमी नमी विनवू है प्रभु तुजने । ए दुःखथी दूर करवा वहेला आवजो रे ॥ ३ ॥ आ अटवीमां भूलो पडीयो, तुं साहेब साचो मने मलीयो । सेवकने शिवपुरनी सडक देखाडजो रे ॥ ४ ॥ (४४) महासती मृगावती किं. ८-३-० For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ६३ जावो जावो नेमी पिया तोरी गति जानी रे। इतनी अर्जपिया मेरी नहिं मानी रे ॥ जावो ।। १ ॥ जब काहु किनो संग सहसा बन लिये रंग। सोलह सौ राणियां के बिच राधा रूकमणी रे ॥२॥ पसुपर दया कीनी भये व्रत धारी रे । आगे ही मिलुगी तुमसे सुनो केवलज्ञानी रे ॥ ३ ॥ पिचकारी जल भरी विमल कमल करी । अबिर गुलाब विच कैसी झीणो. छानी रे ।। ४ ।। अधम उधारी प्रभु वन उपकारी रे । कपुर प्रभु के पाये जैसे दूध पाणी रे ।।५।। गायन नं. ६४ ( तर्ज-लेलो लेलो लेलो कोइ गजरा ) गालो गालो गालो गुणी गुणको-गालो० ॥टेर॥ श्री जिनवर की म्हेर मीलाई । पाइ आनंदकरी छाया ।। गालो ॥१॥ लाई रंग का रेला, बनो प्रभुका चेला । ए दुनिया दिवानी, जाणी जग को फानी ॥ गालो ।। २ ॥ श्री प्रभु में दिल डाली। चित्त भावों की लाली ॥ गालो ॥ ३ ॥ ज्ञान गुणाली ध्यान गुणाली । फर्म रूठे है मुज छे के ॥ गालो ।। ४ ।। ए ताजा ध्यान जिनेश्वर का । ए शरणा लेना श्री जिनका ॥ गालो ।। ५ ।। जो सुज गई हो अन्तरकी । तो पावे आत्म कमल लब्धि ॥ ६ ॥ गायन नं. ६५ आदि जिनंद मनाया आज मेने, आदि जिनंद मनाया टेर॥ स्तवनमंजरी. (४५) For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १ ॥ सोने की झारी गंगाजल पानी, प्रभुजी को नवहण कराया || आज || केसर चंदन भरी कचोली, प्रभुजी का पूजन कराया ॥ २ ॥ धूप दीप नैवेद्य सुगंधी, प्रभुजी की आंगीया रचाया ||३|| सेवक प्रभुजी से अर्ज करत है, चरणों में ध्यान लगाया ॥ ४ ॥ गायन नं. ६६ दरस दिखादे रे सांवरिया || ढेर || आनंद कंदन भव दुःख भंजन, सुरत बताई देरे ॥ सांवरिया ॥ १ ॥ अश्वकुल चंदन जगत के चंदन, प्रेम लगा देरे || २ || भोमा देवी मात जाया, बनारसी नगरी राया, नजर मिलाय देरे ||३|| वंदन आनन्दकंद, मुख पूनमचंद नेह लगाय देरे || ४ || ओसिया मंडल करत है बंदन, भवदुःख मिटाय देरे || ५ || गायन नं. ६७ ( तर्ज - इसरे जोबन का गुमान न करीये ) इसरे जीवन में जिणंद को भजीये । माया न करीये ममता जीये | इसरे || १ || ये जीवने प्यारे दिल हर्ष्या, पाप रहित प्रभु दर्शन करीये | इसरे || २ || आत्म कमल में लब्धि दाता, दास भक्ति से दिल को भरीये | इसरे || ३ ॥ ( ४६ ) गायन नं. ६८ नैयां प्रभुजी मेरी अटक पडी, अटक पडी मोरे खटक पडी जिनेन्द्र पूजा संग्रह किं. ०-३-० For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||र || नरक निगोदे हुं भम्यो, सह्यां दुःख अपार । विनति कर के कहत हुं, मुज पामरने तार || अब प्रभुजी मोहे खबर पडी || नैया ॥ १ ॥ आ संसारसमुद्रमां, कर्या पाप अपार । विषय कषायना पासमां, फसीयो वारंवार || आवो प्रभुजी मुज वारे चडी || २ || मोहे मुजे फसावीयो, नांख्यो भव मोजार । जेम तेम करीने पामीयो, सुंदर नर अवतार || करूं समरण प्रभु हर घडी ॥ ३ ॥ आत्म कलमां किजीये, लब्धितणो भंडार । जयंत करगरी ने कहे दे दो शिवपुर द्वार || प्रभु भक्ति की मोहे बुटी जडी ||४|| गायन नं. ६९ ( तर्ज - केशरिने लम्बे बाल राजा जाने न दूँगी ) आओजी नेमिनाथ मेरी अर्जी उर धारो || ढेर || यादव कुल में जन्म आप का, अरिष्टनेमि नाम || मेरी ॥ १ ॥ सहित बरात जूनागढ आये, पशुओं की सुनी पुकार ॥२॥ रथ को फेर चढे गिरनारी, दीक्षा वहाँ पर ली धार || ३ || राजुल ऊभी अर्ज करत हैं, क्यों छोडी निराधार ? || ४ || नव भव प्रीत न छोडो पलक में, तुम ही हो प्राणाधार || ५ || हाथ पकड नहीं रोकुंगी तुम को, शिवपुर की जो है चाय || ६ || छोडा संसार समझकर, दीक्षा ली प्रभु के पास || ७ || चरित्र पाल नेमिसे पहिले, राजुलने शिव लिया पाय || ८ || धन ओसियां मण्डल के सङ्ग मिल, करते इनका गुणगान ॥ ९॥ स्तवन मंजरी. For Private And Personal Use Only ( ४७ ) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन न. ७० पारस की छवि देख के मनडो मोह्यो रे ॥टेर। मैं तो गया था दर्शन करन को, दर्शन कीना रे। तन मन से ध्यान लगाय के, दर्शन कीना रे ॥ तन ॥ १ ॥ मैं तो गया था पूजन करन को, पूजा कीनी रे ॥ तन ॥ २ ॥ मैं तो गया था धूप करन को, अगर उखेव्यु रे ।। तन ।। ३ ।। मैं तो गया था दीप करन को, दीपक कीना रे ॥ तन ॥ ४ ॥ मैं तो गया था भक्ति करन को, भक्ति कीनी रे ॥ तन ॥ ५ ॥ मैं तो गया था आरती करन को, आरति कीनी रे ॥ तन ॥ ६ ॥ ओसियाँ मण्डल हर्ष सहित हो, जिन गुण गाया रे ॥ तन ॥ ७ ॥ गायन नं. ७१ ( राग-गुंजत क्यां भमरा ? ) चिंतत क्यां मनवा न जिनवर, दावानल में तु दहना ॥चिंतत।। श्री जिनराज के गुण भवन में, सेजन में ठाई रसीयां ॥ चिंतत ॥ आत्म ज्योत को खोल खेलारी, रमत आतम भाव दीलारी, आत्म कमल ए लब्धि सुधा ॥ चिंतत ।। गायन नं. ७२ मोरवा पपईया बोले पीउ पीउ घनमें, नेम पिया वसे सहसाबन में ॥ टेर । निशि अंधीयारीकारी बिजुरी डरावे, दुजी विरह व्याकुल भइ तन में ॥ १ ॥ झिरमिर झिरमिर बरसत दादुर, सोर ( ४८ ) घर का डाक्टर किं.: ०-२-५ For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करत रही नंदीया रन में ॥२॥ आनन्द ए सम देखन चाहे, राजुल वैरागन भइ है छिन में ॥ ३ ॥ गायन नं. ७३ ( तर्ज-प्रभाती ) मुजरा साहेब मुजरा साहेब, साहेब मुजरा मेरा रे। साहेब सुविधि जिनेश्वर स्वामी, चरण पखालुं तेरा रे ॥ १ ॥ केसर चंदन चरचूं अंगियां, फूल चढाऊं गेहरा रे ॥ २ ॥ घंट बजाऊं अगर उखेवू, करूं प्रदक्षिण फेरा रे ॥ ३ ॥ पंच शब्द बाजिंत्र बजाऊं, नृत्य करूं अधिकेरा रे ॥ ४ ॥ रूपचन्द गुण गावत हरखत, दास निरञ्जन तेरा रे ॥ ५ ॥ गायन नं. ७४ ( तर्ज-मन लाग्युं मारु लाग्युं प्रभु तारा ध्यानमां ) दिल चाहे २, प्रभु ! तारी सेवना । प्रभु ! तारी सेवना, गमे मोरी टेवना ।। दिल ॥ १॥ ध्यान छे तारुं मान छे तारुं, तारी कामना । गणधर मुनिवर गुणीवर प्यासा, तारा नामना ॥ २ ॥ तुं मुज प्यारा दिल बसनारा, आठो 'यामना। पांच क्रोड सहवासी थया छो, सिद्धि धामना ।। ३ ।। पुंडरीकखामी गुण गण गामी, पूरो कामना । पुंडरीकगिरि ए नाम प्रकाशक, तारी नामना १. पहोर. wanaw जैननित्यस्मरणमाला किं. ०-१-० (४९) For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ४ ।। आत्म कमलमां प्रभु ध्याननी, धारुं वासना । लब्धि सूरि मुज फेरा टालो, भवोभव पासना ॥ ५ ॥ गायन नं. ७५ ( तर्ज-आनंद मंगल गावो ) प्रभु दरबारे आवो, स्वामीनां गुण गावो । आवो लाहो फरी नहीं आवशे ॥ टेर ॥ प्रभुनी जाऊं बलिहारी, कर्मोने नाखो वारी । नरनारी गुणो तमारा गावशे ॥ प्रभु ॥ १ ॥ तारा चरणे आव्यो, हुं भक्ति भेटणुं लाग्यो । मोहराजा हवे नहीं फावशे ॥२॥ शासन प्रभुनु मलीयुं, हवे भवनुं दुःख टलीयुं । मध्यदरिये नैया हमारी चालशे ॥ ३॥ क्रोध मानने मारो, माया लोभ छै नठारो । तेने वारो तो जरूर ए हालशे ॥ ४ ॥ प्रभुजी मने मलीया, सुरतरु आंगणे फलीया । मुक्ति रमा मां जल्दी ए म्हालशे ॥ ५ ॥ प्रभु तमारी वाणी, जे मानशे प्रमाणी । ते प्राणीने जरूर ए तारशे ॥६॥ प्रभुना गुण मैं गाया, पावन थइ मारी काया । तारी कृपा ए कर्मो चीसो पाडशे ॥७॥ आत्म कमलना दरिया, लब्धि गुणो ए भरीआ । तेथी जयंत गुणो तारा धारशे ॥ गायन नं. ७६ ( तर्ज-ओ मोटरवाले रे मोटर को जरा रोकना ) ओ पार्श्व भटेवा रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ टेर । काम न वश में, क्रोध न वश में, ए तुं सब जाने रे । अहो मेरो vavvvvw (५०) स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम जाने रे, कर्मों को जरी रोकना।। १ ॥ नन्न न वश में, दिल नहीं वश में, ए तुं सब जाने रे । अहो मेरा आतम जाने रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ २ ॥ नरके रखडतां निगोद में पडतां, प्रभुजी बचावो रे । सुख संपद लावो रे, कर्मों को जरी रोकना ॥३॥ तिर्यंच दुखीयां, देव भी दुखिया, मानव दुःख दावो रे । न होय धर्म सहावो रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ ४ ॥ आत्म कमल में, धर्म अमल में, शुभ लब्धि जगावो रे। मुझे प्रभु शिवपुर ठावो रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ ५॥ गायन नं. ७७ ( तर्ज-मेरे मौला बुलालो मदीने मुझे ) मेरा जीव कर्मों से प्रभु हार गया । मेरा मन है माया में मस्तान भया ॥ टेर। हिंसा कीनी मैं झूठ बोला, चोरीयों कीनी बहु । लालच सरिता में डूबा हुं, जिन चरणा शरणा गहुँ । मेरा जीवन करियो जिणंद नया ॥ मेरा ॥ १ ॥ दान नहीं है शील नहीं है तप भी मैं कीया नहीं। भावना का लेश नाही, तुं सभी जाणे सही । तेरे आगे मुझे बहुत आती हया ॥२॥ नीच से भी नीच कामों, कर रहा मैं नित्य हुं । तेरा बनी जिणंदजी, में बहुत गुन्हेगार हुं । मोहे शुद्ध करो मोपे लाइ दया ॥ ३ ॥ लाख चौराशी फिरे, फिर भी बडा मुश्किल है । एसा जनम मानव भया, फिर क्यों भया गाफेल है ? । मैने युही ये रतन गुमाय दीया ॥ ४ ॥ नाम तेरा काम आना, और मायाजाल है। इसके सहारे पालिया, दृष्टान्तरत्नसमुच्चय किं. ०-१-० For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शिवपुर सो निहाल है । तेरा नाम रटन दिनरात किया ॥ ५ ॥ आत्म कमल लब्धि मिले, जिनराज हृदये आणीये । जिनराग से जीवन कटे, सो जीवन खूब वखाणीए । मेरे जीगर में जिनजी ने स्थान लिया ।। ६ । गायन नं. ७८ केसरियां थांसु प्रीति करी रे साचा भावसुं || ढेर || मधुकर मोहियो मालती रे, में मोहियो प्रभु नाम । अवर देवने नहिं नमुं मैं, भजुं अलख भगवान रे || केसरिया ॥ १ ॥ काला गोरा भैरव बिराजै, बटुक भैरव भारी । केइ केइ खंडित करवा आया, लली लेली नाठा हारीरे ॥ २ ॥ नाभिराजा मरुदेवी को नंदा, मुख पुनम को चंदा | पांच से धनुष सौवनमय काया, नगर अयोध्याना रायारे ॥ ३ ॥ भोजक गावे भावसुं रे, बडनगरी का बास । कालीदास करजोड़ कहे छे, जय जय त्रिलोकी नाथरे ॥ ४ ॥ गायन नं. ७९ पार्श्व प्रभु प्यारा वामा माता के हो तन || टेर || नाग उगारी नागेन्द्र बनायो । सुनावी मंत्र नवकार || पा० ॥ १ ॥ कमठे उपसर्ग कीनो है भारी । निश्चल रहे महाराज ॥ २ ॥ कर्म खपावी केवल पाई । तायें घणा नरनार ॥ ३ ॥ शुक्लध्यान में शिवपद पाया । ज्योति में मिले महाराज || ४ || ओसियां वीर जिन मंडली बोले । दीजो प्रभु शिवराज ॥ ५ ॥ ( ५२ ) स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ८० ( राग वागेश्वरी-त्रिताल ) . (कोन करत तोरी बिनति पीहरवा ) नित्य करो प्रभु विनति जीयरवा । जाने दो जाने दो दुसरी बात ॥ नित्य० ॥ टेर । चार गति के दुःख को टारी । राहे मुक्तन के लीजे तात । नित्य० ॥ १ ॥ आत्म कमल में लब्धि लहेरो। चाहे सो जिनके घर जात ॥ २ ॥ गायन नं. ८१ तर्ज-दुनियातणा दिवाना दिलभर मजाओ लूटे ज्योति अजब छे जिनवर, बुटी नहीं ए खूटे । प्रीति अति तुमथी, तूटी नहीं ए तूटे ।। १ ॥ लबलुट कोइ मचावे, कोइ प्राण पण पचावे । ए प्रेम मुज प्रभुनो, छूठ्यो कदी न छूटे ॥ २ ॥ भटकुं नही हुं भवमां, अटकुं न दुःख दवमां । कुंथुजिणंद भेटी, आनंद चित्त लूटे ॥ ३ ॥ आतम-कमलनी धारा, लब्धि जिणंद ध्याने । वधतां विशेष भावे, कर्मोनो कुट फूटे ।।४ ।। गायन नं. ८२ मैं तो दीवाना प्रभु तेरे लिये रे ॥ टेर॥ चम्पो चमेली ने और मोगरो । फूलन के हार प्रभु तेरे लिये रे ॥मैं ।। १॥ केशर चन्दन भरी भरी गोली । अंगिया रचाऊँ प्रभु तेरे लिये रे ॥२॥ मस्तक अकलका तजरवा किं. ०-१-० For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुकुट कानों में कुण्डल । रत्नों का हार प्रभु तेरे लिये रे ॥ ३ ॥ ओसियां मडली अर्ज करत है। आत्म कल्याण प्रभु तेरे लिये रे॥४॥ गायन नं. ८३ ( तर्ज-मेरी माता के सिरपर ताज रहो ) मेरे दिल में श्री वीर विराज रहो। ए शिर के सदा शिरताज रहो ॥ टेर ॥ शुद्ध देव-गुरु की टेक रहो, जिनधर्म का रीतिरिवाज रहो। मुख से जिन ए उच्चार रहो, और घट में दया का प्रचार रहो ॥ मेरे ॥१॥ जिनराज मेरे रहीमगार रहो, भाइ भाइ का दिल से मिलान रहो । नहीं कोइ कीसी से विरोध रहो, प्रभु नाम हाजरहजुर रहो ॥ २ ॥ तुं ब्रह्मा विष्णु महेश रहो, और दुनिया भेद का छेद लहो । नहि जग में कुछ ही क्लेश रहो, सब लोक में संपसरित वहो ॥ ३ ॥ प्रभु गुण में दिल मुस्ताक रहो, ए सब का भला कर पाक रहो । मेरे आत्म कमल में नाथ रहो, सूरि लब्धि सदा जयकार रहो ॥ ४ ॥ गायन नं. ८४ राग-भैरवी-दीपचंदी ( रसके भरे तोरे नैन ) चमके प्रभुजी के नैन । अंगीयां शोभत भविजन लोभत, देवत वो दिलचेन, चमके० ॥ टेर ॥ आज जीयरवा प्रमुजी को ध्यावो । और करी लो नतिया ॥ चमके० ॥ १॥ आत्म कमल में लब्धि की माला । जोर मुक्ति से रतियां ॥ चमके० ॥ २ ॥ स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ८५ ( राग-तेरे पूजन को भगवान ) मेरे जीवन में भगवान, वसा है अंतर आलीशान | भंडार है तेरा प्रेम अखूट, मेरे जीवन में भगवान ॥टेर ॥ सोई जगावे तेरी मुरत, जिसने पेखी तेरी सुरत । साचे मन में प्रभु हय मेरा, मेरे जीवन में भगवान ॥ १ ॥ भविक तेरी तान खीलावे, भज मन तेरे गान खीलावे । पूज के तेरी प्रीत कोपावे, मेरे जीवन में भगवान ॥ २ ॥ सुरत तेरी शान्त दीखावे, सुयश तेरे रूप हसावे । खूशबो तेरी सब को भावे, मेरे जीवन में भगवान || ३ ॥ गायन नं. ८६ उतार मेरे प्रभुजी भवजल से पार उतार ।। टेर ।। काल अनादि भटक्यो भवमाही, पाया है दुःख अपार । अपार मेरे ॥१॥ करुणाजनक दशा है मेरी, तेरी है दृष्टि उधार। उधार मेरे ॥२॥ जगवन दुःख दावानल दहके, सेवकको लीजो ऊंगार । ऊंगार मेरे ॥ ३ ॥ शीतल जिन शीतल अघ कर के, आतमवल्लभ उजार । उजार मेरे ॥ ४ ॥ इसी निसार जगत में तिलक को, आज्ञा है तुम्हारी सार । सार मेरे प्रभुजी ॥ ५॥ गायन नं. ८७ मन लाग्यु मारु लाग्यु प्रभु तारा ध्यानमां ॥ प्रभु० ॥ खान न सुझे, पान न सुझे तारा ध्यानमां । मान अने अपमान न पद्यमयमहावीर जीवन किं. ०-०-९ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूझे - तारा ध्यानमां ॥ मन ॥ १ ॥ तू प्रभु त्राता, शिवसुखदाता, तारी नामना | सुरवर नरवर, मुनिजन गुणीजन तारा ध्यानमां || २ || स्तवन पूजन, तेरी करिये स्वामी - पूरो कामना । शिवसुख आपो, भवदुःख कापो, रहिये ध्यानमां ॥ ३ ॥ गायन नं. ८८ राग - आशावरी - त्रिताल भजन मोहे पार करे भवजल से, भजन० || ढेर || श्रीशंखेश्वर गावत ध्यावत, आवत नाहीं दुःख मरतबा | कांठे आनंद भये हमरा सजीवन || भजन० ॥ प्रभु गुणको जो दिल से गावत, जावत कर्म का बंध जीयरवा । आत्मकमल प्रभु लब्धिसुमिलन || भजन || गायन नं. ८९ ( राग - मथुरामा खेल खेली आव्या ) वीर तारुं नाम व्हालुं लागे हो स्वाम, शिवसुखदाया ||टेर || क्षत्रियकुंडमां जन्म्या जिणंदजी । दिगुकुमरी हुलराया, हो स्वामी ॥ शिव ॥ १ ॥ माथाना मुगट छो, आंखोना तारा | जन्मथी मेरु कंपाया हो स्वाम || २ || मित्रोनी साथे रमत रमतां । देवे भुजंगरूप ठाया हो स्वाम || ३ || निर्भय नाथे भुजंग फेंकी । आमलक्रीडाने सोहाया हो स्वाम || ४ || महावीर नाम देवनाथे त्यां दधुं । पंडित विस्मय पाम्या हो स्वाम || ५ || चारित्र लइ प्रभु कर्मों हटाइ | केवलज्ञान प्रगटाया हो स्वाम ॥ ६ ॥ हिंसा ( ५६ ) स्तवन मंजरी For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृषा चोरी मैथुन वारी । परिग्रह बुरा बताया हो स्वाम ॥ ७ ॥ आत्म कमलमां शैलेसी साधी। शिव लब्धि उपाया हो स्वाम ॥८॥ गायन नं. ९० जै-जै-जै-जै, श्री जिन ध्यान धरो सुखकारी सदा जो हितकारी । जै० ॥ टैर ॥ अब तो मुझे बचा, मैं दिल कहु कचा । तेरा ही सेवक जानके, अब शिवपुर पंथ चला। जै ॥ १ ॥ दुखिया मैं दीन हूं, विषयां में लीन हूं। करता हूँ पाप रातदिन, सब से अलीन हूँ ॥ २ ॥ गायन नं. ९१ ( राग-झट जाओ चन्दनहार लाओ ) नित्य जपे तुम्हारी माला, कर्म सब धो डालो ॥टे।। साखीहम निःसहाय अनाथ है, तुम हो करुणागार । आये तुम्हारी शरण में, हमें तेरा ही एक आधार ॥ कर्म ॥ १ ॥ है अवगुण से हम भरे, बुरी हमारी चाल । छिपा कुछ तुम से नहीं, प्रभु जो हैं हमारा हाल ॥ २ ॥ हमें भरोसा आप का, जो सब के शिरताज । विनवे मण्डल और धन, हमें तेरा ही एक आधार ॥ ३ ॥ गायन नं. ९२ __तुम्हें नाथ नैया तिरानी पड़ेगी ॥ तिरानी पड़ेगी तिरानी पड़ेगी ॥ तुम्हें ।। तारणतरण है विरुद तुम्हारो। डूबत नैया तिरानी पड़ेगी ॥ तुम्हें ॥ भवसागर में डूबी जो नैया। तेरे विरुद ....vavvvvvvvvvvvvvvvv wwwwww नवीनमहावीर गायनमाला किं. ०-०-६ (५७) For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में खामी पड़ेगी ॥ तुम्हें ।। हरि कवीन्द्र की यही विनती है। मुक्ति नगरिया दिखानी पड़ेगी ॥ तुम्हें ।। गायन नं. ९३ ( तर्ज-सर्व तीर्थ में मोटा तीर्थ श्री शत्रुजय प्यारा रे ) संभवदेव जिनंदा प्यारा, है मन मोहनगारा रे । दोषों का संभव नहीं प्रभु में, पूर्ण गुण भंडारा रे ॥ संभव ॥१॥ अनंत रूप अनंत चतुष्टय, पुनरपि अठ प्रतिहारा रे । चौसठ सुरेन्द्र पूजित प्रभु के, अमर नमें चरणारा रे ॥ २ ॥ सकल देव शिर मुगटमणि, जिन चौतिस अतिशय वारा रे । पुत्र रत्न सेनाराणी के, जितारी कुल शृंगारा रे ॥ ३ ॥ फलोदी सरदारपुरा में, दर्शन किया सुखकारा रे । लूनावत कीसनलाल बनाया, मन्दिर और धर्मशाला रे ॥ ४ ॥ साल नियाशी मगसर शुद में । एकादशी गुरुवारा रे । सर्व धातमय मूर्ति स्थापन, महोत्सव हुआ अपारा रे ।। ५ ।। उपधान तप कराया सूरिने, धन्य धन्य करनेवारा रे ॥ गुणसुन्दर संभवजिन दर्शन, ज्ञान सुधारस धारा रे॥ ६ ॥ गायन नं. ९४ (तर्ज-कमलीवाले की) जिनमत का डंका आलम में बजवा दिया शिवपुरवालेने । जिनवाणी का अमृत आलम में वर्षा दिये सिवपुरवालेने ॥ टेर ॥ जो श्रीमुख से फरमाया था, गणधरने उसको गूंथ लिया, कहा सार चीज नवकार रहो फरमाया शिवपुरवालेने ॥ १ ॥ अज्ञान vvvvvvvvvvvvvvvv (५८) स्तवनमंजरी For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तिमिर को दूर किया, और ज्ञान का रोशन जगाय दिया। मिथ्या अंधेरा मेट दिया, उजियारा शिवपुरवालेने ॥ २ ॥ सदगुरुने ये उपदेश दिया, प्रभु नाम समर ले होत जिया । भव सिंधु से तर जावेगा, फरमादिया शिवपुरबालेने ॥ ३ ॥ हंसराज सदा वंदत चरणा, प्रभु नाम सदा संकट हरणा । सरणासे हो जावे तिरना, फरमादिया शिवपुरवालेने ॥ ४ ॥ गायन नं. ९५ ( तर्ज-काली कमलीवाले तुमपे लाखो प्रणाम ) सिद्धाचलना वासी जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ टेर ॥ आदि जिनवर सुखकर स्वामी, तुम दर्शनथी शिवपद धामी । थया छै असंख्य, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ सिद्धा ॥ १ ॥ विमलगिरिना दर्शन करतां, भवो भवना तिमिर हरतां । आनंद अपार, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ २ ॥ हुँ पापी छं नीच गति गामी, कंचनगिरिनु शरणुं पाभी । तरशुं जरूर, जिनने क्रोडो प्रणाम ।। ३ ।। अणधार्या आ समयमां दर्शन, करतां हृदय थयु अति परसन । जीवन उज्ज्वल, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ ४ ॥ गोडी पार्श्व जिनेश्वरकेरी, करुण प्रतिष्ठा विनति घणेरी । दर्शन पाम्यो मानी, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ ५ ॥ संवत ओगणीश नेवू वर्षे, शुद पंचमी कर्या दर्शन हर्षे । मल्यो ज्येष्ठ शुभ मास, जिनने क्रोडो प्रणाम ।। ६॥ आत्म कमलमां सिद्धगिरि ध्याने, जीवन भळशे केवलज्ञाने । लब्धिसूरि शिवधाम, जिनने क्रोडो प्रणाम ।। ७ ॥ स्थापनाजी किं. ०-०-३ (५९) For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन नं. ९६ मैं आया तेरे द्वार पर कुछ लेकर जाऊँगा। अपने सुखदुःख की सारी बातें नाथ सुनाऊँगा ।।टेर। जबकि तेरा कहलाता हूं मैं सेवक दुनियाँ में । तब क्यों कर अपना जीवन दुःखमय नाथ बिताऊँगा ? ॥१॥ तुं वीतराग रहता है इस से यह दुख पाना हैं। पर तुजको तज मैं औरों का नहीं दास कहाऊँगा ॥ २ ॥ अपने अनंत सुख में से मुझ को तू कुछ देदेगा । तो हरिकविन्द्र होकर मैं सुख से नित गुण गाऊँगा ॥ ३ ॥ गायन नं. ९७ ( राग-गजल) मैं देखुं प्रभु के तन की छबि, आती नजर में, हां रे हां.... आती नजर में । टेर ॥ देखने में सादी, पर अजाद भरी है । अजाद किये लाखों जिसने, मिठी नजर में ॥ १ ॥ तेरी सूरत के सामने, और देव की शकल । नहीं शोभा देती चाँद की छबी, जैसे फजर में ॥ २ ॥ आत्म लक्ष्मी आप की, प्रभु है वो मुझ को दीजिये । वल्लभ होवे हर्ष अति, साफ जिगर मैं ॥ ३ ॥ गायन नं. ९८ ( तर्ज-अहमद भूल न जाना ) बेड़ा पार लगाना, प्रभुजी भूल न जाना ॥ टेर । भारतभूमि यह देश हमारा, दूध दधि होता अन पारा, जिनका नहीं है amarinaam vvvvNIA, (६०) स्तवनमंजरी. For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठिकाना ॥ प्रभुजी० ॥ १ ॥ गऊमाता यह भोली भाली, दुष्टन के घर कटवा चाली, जिनसे नाथ बचाना ॥२॥ भारत निंद में सोय रहा है, फैशन में धन खोय रहा है, यही रिवाज मिटाना ॥३॥ दास की अर्जी पे गोर करावे, भारत को स्वतन्त्र बनावे । सम्प का ढुंका बजाना ॥ ५ ॥ गायन नं. ९९ आदि जिनेश्वर कीयो पारणो, आ रस सेलड़ी, टे।। गड़ा एक सो आठ सेलड़ी, रस भरिया छै नीका । उलटभाव सेयाँस वोहराया, मांड दीवी या सब बुकाए ॥ आ रस ॥१॥ देव दुदंभी बाज रही है, सौनै आरी वरखा । बारे माससुं कियो पारणो, गई भूख सब तीरखा रे ॥ आ रस ॥ २ ॥ रिद्धि सीद्धि कारज मनोकामना, गर गर मंगलाचार । दुनीया हर्ष वधामणासीरे, आखातीज तहेवार रे ॥ आ रस ॥३।। संकट काटो विघ्न निवारो राखो हमारी लाज, बे कर जोडी नन्दु कहता, रिखबदेव माहाराज रे ॥ आ रस ॥४॥ गायन नं. १०० ( बधाई ) राजरी बधाई बाजे छ, महाराजरी बधाई बाजे छै ॥ टेर ॥ सरणाई सिरे नौबत बाजे, घनन घनन घन गाजे छै । महा० ॥ ॥१॥ इन्द्राणी मिल मङ्गल गावे, मोतियन चोक पुरावे छै॥२॥ सेवक प्रभुजी से अरज करे छ, चरणांरी सेवा प्यारी लागे छै ॥३॥ mwuwuwvvvvvvvvvvvvvvvv जीवनचरित्र-भेट For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पढिये ! पढिये !! पढिये !!! शान्ति के समय मनोरञ्जन करने योग्य श्री संभवनाथ जैन पुस्तकालय की सर्वोत्तम पुस्तकें चंदराजाका रास (भावार्थ सहित) यद्यपि यह रास गूजरातीमें हैं, लेकिन कीसी भी भाषा का जाणकार इसको पढ सकता है और भाषा सरल होने के कारण समज सकता है। इस पुस्तक में जगद्विख्यात चन्दराजा और रानी गुणाचली तथा प्रेमलालच्छी का संपूर्ण चरित्र अत्यन्त सरल सुन्दर और संसारीओं को शिक्षण लेने योग्य है । यह ग्रन्थ स्त्री-पुरूषों को जितना लाभप्रद है उतनाही साधुसाध्वी गणको लाभप्रद है। कर्मकी केसी केसी दशा होती है यह जानने के लिये जितना महत्त्व बताया गया है उतनाही संसार में लोक कैसे कैसे कर्त्तव्य करते है, पुत्र प्राप्ति के लिये कैसे कैसे कार्य करते For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir है और उसके लिये संसार में कैसी कैसी खटपटे चलती है और संसार में हमको कीस तरह रहना चाहीए यह सब ग्रन्थकर्त्ताने बतलाने की जीतनी कोशीश की है उसके साथ साथ संसारकी एसी खटपटों से-प्रपंचजालों से · मायाजालसे बचने के लिये अल्प आयुष्यी भव्य जीवों को तर जानेके लिये बोधप्रद उपदेश भी समयोचित दीया है। __ वीरमती नामका एक स्त्री पात्र स्त्री अबला नहीं, लेकिन समय आने सबला बन सकती है और जब अपने सत्य स्वरूपमें आती है तब मनमुताबिक पासे रचकर इच्छा मुताबिक कार्य कर सकती है यह आजकी हमारी कमजोर डरपोक-ब्हेन-बेटीआं-माता को शीखलाती है। - ग्रन्थ हाथमें लेने के बाद शायत ही छोड़नेका मन होता है। फीरभी विशेषता यह है कि चाय वहांसे पढने से रस पेदा होता है और कुतहल जागता है कि क्या हुआ ? आगे क्या होगा ? क्या आवेगा ? एसी उत्पन्न आकांक्षा को पूर्ण करने में पढनेवाला ओत प्रोत हो जाता है और किताब खतम करके खडे होनेका मन होता है। ___ क्राउन आठ पेजी साइज ५०० पृष्ट का दलदार ग्रन्थ पक्का रेशमी कपड़े का बाईन्डींग होने पर भी प्रचार के खातीर फक्त मूल्य ४) चार रूपीये रखे गये है। मंगाइए, आजही मंगाईए---- For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री संभवनाथ चरित्र पूर्वजों के पवित्र जीवन चरित्र व पुण्य गाथायें पढने से हृत्पटल खूल जाते हैं, और सन्मति का प्रकाश होता है। फिर तीर्थकरो के चरित्र तो मोक्ष मार्गका प्रकाश करनेवाले होते है। अतः हमने बड़े प्रयत्न से सुन्दर चित्रों से सुशोभित श्रीसंभवनाथ चरित्र अनुठी तथा मनमोहक भाषामें तैयार कराया है, जिसे आप देखते ही आप मंत्र मुग्धवत् बिना समाप्त किये नहीं छोड़ेगे । अतः शीघ्र ही एक प्रति मंगाकर पढिये । बढिया बिलायति कागज सुन्दर ४ चित्र बढिया छपाई लगभग सौ पृष्ट इतना होने पर भी प्रचार के लिये मूल्य केवल आठ आना मात्र । सजील्दके बारे आने, आशा है कि एसा सुवर्ण अवसर हाथसे न जाने देगे। महासती सुरसुन्दरी जैन सिद्धान्त का सार-कर्मों का बन्धन और उनका उदय यदि आप समझना चाहते हैं तो इस रोमांचकारी घटना को एकबार अवश्य पढिये । आठ घण्टे में एक अरब तेतीस करोड़ सोनइयों की सम्पत्ति का विलायमान हो जाना, श्रीमन्तों का लकड़ी ढोना, सवा करोड़ की किमती लालों का हरा जाना, सेठ के पुत्रों का मजदूरी करना, स्त्री है या पुरूष इसकी परीक्षा अनेक प्रकार से कराया जाना, For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गई हुई सम्पत्ति का पुनः मिलना आदि का वर्णन समय समय पर कई प्रकार की नीति शिक्षा प्रकट करते हुये आदर्शता के साथ किया गया है । इतना ही नहीं सती- सुरसुन्दरी द्वारा अपनी शील रक्षा के निमित्त की गई बुद्धिमता को पढ करतो आप को दातों नीचे अंगुली दबाना पड़ेगा । भाषा सरल और सरस - तथा विषय अनुपम ढंगपर लिखा गया है, जो प्रत्येक नर नारी और बालक-बालिकाओं के पढ़ने सुनने और समझने योग्य है । एकबार पढ़ना आरम्भ करने के बाद फिर बिना पूरा पढ़े छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती । इसमें परम मनोहर, नयनाभिराम और चित्ताकर्षक रंग-बिरंगे चित्र दिये गये है । जिन्हे मात्र देखने पर ही ' महासती सुरसुन्दरी ' की सारा चरित्र वायस्कोप की भांति आंखो के समक्ष दिख आता है | इतना होने पर भी मूल्य केवल ||) आठ आना मात्र रखा गया है । धर्म भावी तीर्थंकर सुलसा सती सम्यग्दर्शन का स्थान जैनशास्त्रों मे बहुत ऊँचा हैं। जब तक मनुष्य अपने धर्म पर श्रद्धा नहीं रखता और संदेह में पड़ा रहता है उसे अपने देव, गुरू और धर्म पर अविचल श्रद्धा रखनी ही चाहिये । इस पुस्तक में इसी सिद्धांत का विस्तृत वर्णन महासती सुलसा के जीवनी में आप को मिलेगा । ६५ For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसके साथ ही सती सुलसा का दाम्पत्य जीवन, धर्मप्रभाव, आत्मिकबल, अभयकुमार की चातुर्य तथा अंबड़ द्वारा की गई सुलसा की विषम परीक्षा का बहुत मार्मिक एवं विषद वर्णन पढकर आप प्रफुल्लित हो उठेंगे । एक बार जरूर मँगाकर देखिये बड़िया कागज पर मोटे टाइप में सुन्दर छपी हुई इस पुस्तक का मूल्य केवल 4) आना मात्र है। शीलव्रत का आदर्श रूप ___ महासती भृगावती सब धर्मों में शीलव्रत को अत्यन्त ऊँचा व्रत माना है । यही एक ऐसा विषय है जो प्राणि को मोक्ष पद तक प्राप्त करा सकता है और नरक गति में डाल सकता है। महासती मृगावती ने कैसी विकट परिस्थिति में किस अद्भुत चातुरी से अपने शील की रक्षा की, किस प्रकार शत्रु से धीरे हुए अपने राज्य की रक्षा की आदि का वर्णन पढकर आप चकित हो जायेंगे । शीलवत के प्रभाव से सती मृगावती के जीवन में अद्भुत साहस, धीरजता, गंभीरता और वैराग्यता का दर्शन कर आप मुग्ध हो जायेंगे । यह पुस्तक बहू, बेटियों को उपहार देने योग्य है । बढ़िया कागज पर सुंदरता से छपी हुई यह सचित्र पुस्तक का मूल्य केवल 2) आना है। जिनेन्द्र पूजा संग्रह इस किताब में स्नात्र, अष्टप्रकारी और नौपद की पूजा का संग्रह किया गया है । पुस्तक जेबी आकार में आज की शैली में For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लिखी गई है । अर्थात् एक पंक्ति में एक पद हैं। जिससे कि पढ़ने वाले आसानी से पढ़ सकें । प्रचार के लिये पर भी मूल्य मात्र तीन आना है। सौ प्रतियों के आशा है कि आप यह सुवर्ण अवसर हाथ से न स्वास्थ्य का सच्चा मित्र 66 घर का डाक्टर इस किताब में प्रचलित तमाम रोगों की स्वदेशी दवाईयां इस खूबी से लिखी गई है कि गरीब पूंजीपती समानरूप से लाभ उठा सकते हैं। विशेषता यह है कि हजारों के खर्च से जो रोग न जावे वह कौडियों की दवाई से शीघ्र निर्मूल हो जाते हैं । जनहितार्थ ४८ पृष्ठ होने पर भी मूल्य मात्र दो आना । थोक बन्द मँगाने वालों को कमीशन भी दिया जावेगा । 35 ८० पृष्ठ होने पन्द्रह रुपए । जाने देगें । श्री जैन नित्य-स्मरण माला ( प्रथम भाग ) इस किताब में नित्य पाठ करने लायक दश छन्दों और स्तुति का संग्रह किया गया है, जैसे कि सिद्ध परमात्मा का पार्श्वनाथ स्वामी का, महावीर स्वामी का, और गौतम स्वामी का, सोलह सती का, शान्तिनाथजी का, संखेश्वर - पार्श्वनाथ का, नवकार का, इत्यादि महान् प्रभाविक छन्दों का समावेश है, नित्य पाठ करने से इस लोक और परलोक के सुखों की प्राप्ति होती है, ૬૭ For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यदि आप प्रभावना करें तो ऐसी किताबों की किया करें कि एक पन्थ दो काज वाला लाभ मिले । मूल्य मात्र एक आना, १०० पुस्तक के रुपये पांच, शीघ्र मंगाइये । " दृष्टांत रत्न संचय" (प्रथम भाग) इस किताब नीति, वैराग्य, बुद्धि और शिक्षा हँसी सदाचारादि अनेक विषय के ऐसे दृष्टांत संग्रह किये गये है कि उसके पढ़ने से लोग दुराचार और दुर्व्यसन से बचके सदाचारी बन जाते हैं, एक बार शुरू करने पर सम्पूण पढ़े विना न छोड़ेगें मूल्य मात्र एक आना | आशा है कि आप यह सुर्वण अवसर हाथ से न जाने देगें। अकलका तजरबा . यह एक बुद्धि के लिये समस्याओ है, पढनेवाले बच्चों को तो बहुत ही उपयोगी है चमत्कार पूर्व मूल्य एक आना. रत्नाकर पच्चीशी इसमें परमात्माके आगे बोलने की बहुत ही बड़ीया स्तुति है मूल्य एक आना। For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संक्षिप्त पद्यमय महावीर जीवन इसमें तीर्थनायक का रोचकता से कविता के साथ वर्णन किया गया है, मूल्य तीन पैसे। नवीन महावीर गायनमाला इस किताब में बड़िया नइ फेसन के गायनो का संग्रह है। मूल्य दो पेसे। - स्थापनाजी यह पुस्तक प्रत्येक नरनारी के उपयोगी है । सामाइक करते वखत सामने रखकर सामायक प्रतिक्रमण कर सकते है। यदि प्रभावना करें तो ऐसी किताबो की किया करें कि एक पन्थ दो काजवाला लाभ मिले । मूल्य मात्र एक पैसा १०० पुस्तक के एक रूपीया चार आने-शीघ्र मंगाइये । पुस्तके मिलने का पताश्रीसंभवनाथ जैन पुस्तकालय ठि० निहाल धर्मशाला-सरदारपुरा फलोदी ( मारवाड़) For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir muvvwwwwwwwwws भी संभवनाथ जैन पुस्तकालय की प्रकाशित पुस्तकें aa-MAMT (१) श्रीचंदराजाकारास भावार्थ सहीत-गुजराती (२) श्रीसंभवनाथ चरित्र (सचित्र ) है ( ३ ) महासती सुरसुन्दरी ( सचित्र ) है ( ४ ) महासती सुलसा ... ... है ( ५ ) नविन स्तवनमंजरी .... है ( ६ ) महासती मृगावती ( सचित्र )...' है ( ७ ) जिनेन्द्र पूजासंग्रह है ( ८ ) घरका ( डाक्टर ) (९) दृष्टांत रत्नसंचय है (१०) श्री जैन नित्य स्मरणमाला है (११) रत्नाकर पश्चीशी (१२) अकलका तजरबा ६ (१३) संक्षिप्त पद्यमय महावीर जीवन... है (१४) नवीन महावीर गायनमाला है (१५) सुन्दर आँककी चौपड़ी। (गुजराती) ... १ (१६) स्थापनाजी ... ... ... ... है (१७) संभवनाथ गायनमाला ... - .... (१८) शेठ किसनलालजी लूणावतर्नु जीवन चरित्र (गुजराती) (१९) ,, , , की जीवनसम्पत्ति (हिन्दी) भेट (२०) सूचीपत्र ... ... ... ... .... भेट === VVV ............... Vvvvvvvvvvv For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Home pappulmopnuaryusuyoupirnsamayaunpuriyal [you TAutumn शीघ्रता कीजिये नहीं तो पछताना पड़ेगा (1) श्रीचंदराजाका रास भावार्थ सहीत ... (2) श्री संभवनाथ चरित्र ( सचित्र ) ... (3) महासती सुरसुन्दरी (सचित्र) ... (4) धर्मदृढ़ सती सुलसा (5) स्तवन मंजरी ... (6) महासती मृगावती (सचित्र ) (7) जिनेन्द्रपूजा संग्रह (8) घरका 'डाक्टर' (9) दृष्टान्तरत्नसंचय ..... (10) जननित्य-स्मरणमाला (11) अकलका तजरबा ... ==OMMITT CUDAISHIDAIHTamuTHINoman NuTHymnuperfumenuelunusult propeNeICE पुस्तकें मिलनेका पताश्री संभवनाथ जैन पुस्तकालय ठि. नीहाल धर्मशाला-सरदारपुरा फलोदी ( मारवाड़) Healthmandlinsan marathi hironmentalma l For Private And Personal Use Only