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卐 साथीया करते वखत बोले ॥ दर्शन ज्ञान चारित्रना, आराधनथी सार । सिद्धशिलानी उपरे, हो मुज वास श्रीकार ।। अक्षत पूजा करतां थकां, सफल करुं अवतार । फल मागु प्रभु आगले, तार तार मुज तार ॥ संसारिक फल मागीने, रवड्यो बहु संसार । अष्ट कर्म निवारवा, मागुं मोक्ष फल सार । चीहुं गति भ्रमण संसारमां, जन्म मरण जंजाल । पंचम गति विण जीवने, सुख नहीं त्रिहुं काल ।
चैत्यवंदनो
श्री शत्रुजय चैत्यवंदन (१) विमल केवलज्ञान कमलाकलित त्रिभुवन हितकरं, सुरराज संस्तुत चरणपंकज नमो आदि जिनेश्वरं ॥ १ ॥ विमल गिरिवर शृंगमंडण, प्रवर गुणगण भूधरं । सुर असुर किन्नर कोडी सेवित, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ २ ॥ करती नाटक किन्नरीगण, गाय जिनगुण मनहरं । निर्जरावली नमे अहोनिश, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ ३ ॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी, कोडी पण मुनि मनहरं । श्री विमलगिरिवर शृंग सिद्धा, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ ४ ॥ निज
स्तवनमंजरी किं. ५-४-८
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