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|| श्री जिन नव अंग पूजने के दूहा ||
अंगूठा -- जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजत |
ऋषभ चरण अंगूठडो, दायक भवजल अंत ॥ १ ॥ गुटना - जानु बले काउससम्म रह्या, विचर्या देशविदेश | खड़ां खड़ां केवल लघुं, पूजो जानु नरेश ॥ २ ॥ हाथ - लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान ॥ ३ ॥ खंभा - मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत ।
भुजाबले भवजल तर्या, पूजो खंध महंत ॥ ४ ॥ मस्तक — सिद्धशिला गुण उजली, लोकांते भगवंत ।
वसीया तेणे कारण भवी, शीरशिखा पूजंत ॥ ५॥ लीलाड़ - तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत ।
त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ॥ ६ ॥ कंठ - सोल पहोर प्रभु देशना, कंठ विवर वर्तुल ।
मधुर ध्वनि सुर नर सुणे, तीणे गले तिलक अमुल ॥७॥ हृदय - हृदय कमल उपशम बले, बाल्या राग ने रोष । हिम दहे वन खंडने, हृदय तिलक संतोष ॥ ८ ॥
नाभि - रत्नत्रयी गुण उजली, सकल सुगुण विश्राम | नाभि कमलनी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ९ ॥
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स्तवनमंजरी
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