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गायन नं. २ ( राग-दयामण दीजे यह वरदान । प्रभो ! हम सब होवे गुणवान् ॥ टेर ॥ चिन्ताचूरण वांछितपूरण, सुखकर्ता भगवान् । है रक्षक और स्वामी सब के, रक्खो हमारा मान । प्र० ॥ १ ॥ सद्गुणशील बने हम भारी, करें गुरुजन का मान । त्यागें झूठ अप्रिय वाचा को, करें अतिथि सन्मान ॥ २ ॥ द्वेष क्रोध ईर्षा को त्यागें, प्रेम सुधा करें पान । छात्र सकल और धन मिल संगे, करें तेरा गुणगान ॥ ३ ॥
गायन नं. ३
( कव्वाली ) तुम्हारी मोहनी मूरत मेरे दिल में समाई है । टेर ।। न दिन को चैन पहलू में, न सब को नींद आती है । न जाने आपने दर्शन की, मय कैसी पिलाई है ॥ तु० ॥ १ ॥ दिया मैं त्याग जग फानी, फकीरी वेष धारा है। नजर जादूभरी जब सें, हमें तुमने दिखाई है ॥ २ ॥ विचरतां हूँ कभी तन में, कभी वस्ती कभी वन में। जहां सारा रही भटका, मुझे तेरी जुदाई है ॥३॥ नहीं ताकत मेरे पैरों में, अब दर दर भटकने की । तिलक को नाम वस हरदम, एक तेरा सहाई है॥ ४ ॥
गायन नं. ४ ( राग-तुंहीने मुझ को प्रेम शिखाया ) वीर जिणंद मुजे दिल में भाया, काल अनादि का मोह
स्तवनमंजरी
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