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बाद में दोनो हाथ जोड़ कर के मस्तक के अंजली कर के जयवीयराय पढे।
॥ जय वीयराय ॥ जय वीयराय ! जगगुरु! होउ ममं तुह पभावओ! भयवं!। भवनिव्वेओ मग्गा–णुसारिया इट्ठफलसिद्धि ॥ लोगविरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परत्थकरणं च । सुहगुरुजोगो तन्वय–णसेवणा आभवमखंडा ॥ *वारिजइ जइ वि निया-णबंधणं वीयराय ! तुह समए । तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥ दुरकरकओ कम्मरकओ, समाहिमरणं च बोहिलाभोअ। संपजउ मह एयं, तुहनाह पणामकरणेणं । सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणं । प्रधानं सर्वधर्माणां जैनं जयति शासनम् । विधि-पिछे खड़े होकर नीचे का पाठ कहै ।
। अरिहंतचेइआणं ॥ अरिहंतचेइयाणं करेमि काउस्सग्गं । वंदणवत्तिआए पूअणवत्तिआए सकारवत्तिआए सम्माणवत्तिआए बोहिलाभवत्तिआए निरुवसग्गवत्तिआए । सद्धाए मेहाए धीईए धारणाए अणुप्पेहाए वड्डमाणीए ठामि काउस्सग्गं ।
॥ अन्नत्थ ऊससिएणं ॥ अन्नथ्थ ऊससिएणं, नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं, जंभा
* तपगच्छवाले बोलते हैं ।
(१२)
महासती मृगावती किं. ०-३-०
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