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गायन नं.३०
( तर्ज--प्रेम कहानी सखी सुनत सुहावे ) शांति जिणंद मुज चित्त सोहावे। प्रभु दिलावे ज्ञान खजाना । जन्म मरण की रीतियां छुडाई ॥ शांति ॥ १ ॥ प्रभु हटावे मोह का भाला । लाख चौराशी की पीर हटाई ॥ २ ॥ धर्म भाव की प्रीत निहाली । जो दील लावे अमर होजावे ॥ ३ ॥ आत्म कमल में ध्यान लगाई, जो गुण गावे मरण नहिं पावे ॥ ४ ॥ लब्धि सूरि नीज ज्योत जगाई, भव दुःख हर के शिवपुर जावे ॥५॥
गायन नं. ३१ ( तर्ज-मथुरा में सही गोकुलमें सही )
मुज मन में तुंही, मुज तनमें तुंही, में सदा रटुं जिन तुंहीं ने तुंही । अब हीनहीं तो कब ही सही। प्रभु दर्श दिखावो कहीं ने कहीं ॥ टेर ॥ लाख्खों को तारे थे जिनवर, अब हम को भी तारो दिलवर । हम प्यासे है प्रभु शिवसुख के, हम चरण दीखा दो कहींने कही ॥ मुज ॥ १ ॥ तुम नाम रटन दिनरात करूं, तुम ध्यान में मस्त सदा ही फीरुं । उम्मेद है हमको तारोगे, प्रभु कर्म हरोगे कहीने कही ॥ २ ॥ आत्मकमल में प्रभु सीमरणसे, सूरि लब्धिका होय विकास सदा । हम कर्मो का अब चुरकरो, प्रभुदर्श दीखावो कहीने कहीं ॥ ३ ॥
( २८ ) ·
स्तवनमंजरी.
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