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गई हुई सम्पत्ति का पुनः मिलना आदि का वर्णन समय समय पर कई प्रकार की नीति शिक्षा प्रकट करते हुये आदर्शता के साथ किया गया है । इतना ही नहीं सती- सुरसुन्दरी द्वारा अपनी शील रक्षा के निमित्त की गई बुद्धिमता को पढ करतो आप को दातों नीचे अंगुली दबाना पड़ेगा ।
भाषा सरल और सरस - तथा विषय अनुपम ढंगपर लिखा गया है, जो प्रत्येक नर नारी और बालक-बालिकाओं के पढ़ने सुनने और समझने योग्य है । एकबार पढ़ना आरम्भ करने के बाद फिर बिना पूरा पढ़े छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती । इसमें परम मनोहर, नयनाभिराम और चित्ताकर्षक रंग-बिरंगे चित्र दिये गये है । जिन्हे मात्र देखने पर ही ' महासती सुरसुन्दरी ' की सारा चरित्र वायस्कोप की भांति आंखो के समक्ष दिख आता है | इतना होने पर भी मूल्य केवल ||) आठ आना मात्र रखा गया है ।
धर्म भावी तीर्थंकर
सुलसा सती
सम्यग्दर्शन का स्थान जैनशास्त्रों मे बहुत ऊँचा हैं। जब तक मनुष्य अपने धर्म पर श्रद्धा नहीं रखता और संदेह में पड़ा रहता है उसे अपने देव, गुरू और धर्म पर अविचल श्रद्धा रखनी ही चाहिये । इस पुस्तक में इसी सिद्धांत का विस्तृत वर्णन महासती सुलसा के जीवनी में आप को मिलेगा ।
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