Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay
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तिमिर को दूर किया, और ज्ञान का रोशन जगाय दिया। मिथ्या अंधेरा मेट दिया, उजियारा शिवपुरवालेने ॥ २ ॥ सदगुरुने ये उपदेश दिया, प्रभु नाम समर ले होत जिया । भव सिंधु से तर जावेगा, फरमादिया शिवपुरबालेने ॥ ३ ॥ हंसराज सदा वंदत चरणा, प्रभु नाम सदा संकट हरणा । सरणासे हो जावे तिरना, फरमादिया शिवपुरवालेने ॥ ४ ॥
गायन नं. ९५
( तर्ज-काली कमलीवाले तुमपे लाखो प्रणाम ) सिद्धाचलना वासी जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ टेर ॥ आदि जिनवर सुखकर स्वामी, तुम दर्शनथी शिवपद धामी । थया छै असंख्य, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ सिद्धा ॥ १ ॥ विमलगिरिना दर्शन करतां, भवो भवना तिमिर हरतां । आनंद अपार, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ २ ॥ हुँ पापी छं नीच गति गामी, कंचनगिरिनु शरणुं पाभी । तरशुं जरूर, जिनने क्रोडो प्रणाम ।। ३ ।। अणधार्या आ समयमां दर्शन, करतां हृदय थयु अति परसन । जीवन उज्ज्वल, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ ४ ॥ गोडी पार्श्व जिनेश्वरकेरी, करुण प्रतिष्ठा विनति घणेरी । दर्शन पाम्यो मानी, जिनने क्रोडो प्रणाम ॥ ५ ॥ संवत ओगणीश नेवू वर्षे, शुद पंचमी कर्या दर्शन हर्षे । मल्यो ज्येष्ठ शुभ मास, जिनने क्रोडो प्रणाम ।। ६॥ आत्म कमलमां सिद्धगिरि ध्याने, जीवन भळशे केवलज्ञाने । लब्धिसूरि शिवधाम, जिनने क्रोडो प्रणाम ।। ७ ॥
स्थापनाजी किं. ०-०-३ (५९)
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