Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 41
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जज्जा जन्म प्रभु को देखो, झझझा झूट कभी नहि बोल फेर नहि आवणारे ||२|| टट्टा र प्रभु से हमारी, ठठ्ठा ठोर मिले सुखकारी । डड्डा डर राखो भयभारी, ढड्ढा ढील कब हुं नहिं जाण फेर नहिं आवणा रे || ३ || तत्ता तन मन धन स्थिर नहिं, थथथा स्थिर जग में कोइ नांहि । दद्दा दान देवो जगमांही, धद्धा धर्म से करो तुम प्रीत फेर नहिं आवणा रे || ४ || पप्पा पुस्तकजी घर लावो, फफ्फा फिर तुम रात जगावो । बब्बा बांधो पुनरो लाहो, सम्भा भवसागर तिर जाय फेर नहिं आवणा रे || ५ || यय्या यह इच्छा बहु भारी, रर्रा राखो धर्म बिचारी । लल्ला लाभ लेवो सुखकारी, वन्वा विघ्न टले सुख पाय फेर नहि आवणा रे || ६ || सस्सा समत सितंतर जानों, दुतिक श्रावण मास वखानो । वद तेरस वार बृहस्पति जानों, सस्सा सेवक छगन को तार फेर नहिं आवणा रे ||७|| गायन नं. ५० ( तर्ज - अहमद भुल न जाना ) श्रीसुविधिनाथ को ध्याना, परमानन्द पद पाना || ढेर || जब श्रीनाथ गर्भ में आये, धर्म में मातपिता चित्त लाये | नहीं प्रभु जाय बखाना, परमानन्द पद पाना ॥ १ ॥ सुग्रीव रामा के प्रभु नन्दन, छुडवाते कर्मोंका बन्धन | इनका ध्यान लगाना, परमानन्द पद पाना || २ || प्रभु हैं अनन्त शक्ति के धारी, पार किये हैं कई नरनारी । और न नाथ बनाना, परमानन्द पढ़ पाना || ३ || अभयदान के प्रभु हैं दाता, जगजीवों को करते शाता । ( ३८ ) स्तवनमंजरी किं. ०-४-० For Private And Personal Use Only

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