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मुकुट कानों में कुण्डल । रत्नों का हार प्रभु तेरे लिये रे ॥ ३ ॥ ओसियां मडली अर्ज करत है। आत्म कल्याण प्रभु तेरे लिये रे॥४॥
गायन नं. ८३ ( तर्ज-मेरी माता के सिरपर ताज रहो ) मेरे दिल में श्री वीर विराज रहो। ए शिर के सदा शिरताज रहो ॥ टेर ॥ शुद्ध देव-गुरु की टेक रहो, जिनधर्म का रीतिरिवाज रहो। मुख से जिन ए उच्चार रहो, और घट में दया का प्रचार रहो ॥ मेरे ॥१॥ जिनराज मेरे रहीमगार रहो, भाइ भाइ का दिल से मिलान रहो । नहीं कोइ कीसी से विरोध रहो, प्रभु नाम हाजरहजुर रहो ॥ २ ॥ तुं ब्रह्मा विष्णु महेश रहो, और दुनिया भेद का छेद लहो । नहि जग में कुछ ही क्लेश रहो, सब लोक में संपसरित वहो ॥ ३ ॥ प्रभु गुण में दिल मुस्ताक रहो, ए सब का भला कर पाक रहो । मेरे आत्म कमल में नाथ रहो, सूरि लब्धि सदा जयकार रहो ॥ ४ ॥
गायन नं. ८४ राग-भैरवी-दीपचंदी ( रसके भरे तोरे नैन ) चमके प्रभुजी के नैन । अंगीयां शोभत भविजन लोभत, देवत वो दिलचेन, चमके० ॥ टेर ॥ आज जीयरवा प्रमुजी को ध्यावो । और करी लो नतिया ॥ चमके० ॥ १॥ आत्म कमल में लब्धि की माला । जोर मुक्ति से रतियां ॥ चमके० ॥ २ ॥
स्तवनमंजरी
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