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गायन नं. ८०
( राग वागेश्वरी-त्रिताल ) . (कोन करत तोरी बिनति पीहरवा )
नित्य करो प्रभु विनति जीयरवा । जाने दो जाने दो दुसरी बात ॥ नित्य० ॥ टेर । चार गति के दुःख को टारी । राहे मुक्तन के लीजे तात । नित्य० ॥ १ ॥ आत्म कमल में लब्धि लहेरो। चाहे सो जिनके घर जात ॥ २ ॥
गायन नं. ८१ तर्ज-दुनियातणा दिवाना दिलभर मजाओ लूटे
ज्योति अजब छे जिनवर, बुटी नहीं ए खूटे । प्रीति अति तुमथी, तूटी नहीं ए तूटे ।। १ ॥ लबलुट कोइ मचावे, कोइ प्राण पण पचावे । ए प्रेम मुज प्रभुनो, छूठ्यो कदी न छूटे ॥ २ ॥ भटकुं नही हुं भवमां, अटकुं न दुःख दवमां । कुंथुजिणंद भेटी, आनंद चित्त लूटे ॥ ३ ॥ आतम-कमलनी धारा, लब्धि जिणंद ध्याने । वधतां विशेष भावे, कर्मोनो कुट फूटे ।।४ ।।
गायन नं. ८२
मैं तो दीवाना प्रभु तेरे लिये रे ॥ टेर॥ चम्पो चमेली ने और मोगरो । फूलन के हार प्रभु तेरे लिये रे ॥मैं ।। १॥ केशर चन्दन भरी भरी गोली । अंगिया रचाऊँ प्रभु तेरे लिये रे ॥२॥ मस्तक
अकलका तजरवा किं. ०-१-०
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