Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आतम जाने रे, कर्मों को जरी रोकना।। १ ॥ नन्न न वश में, दिल नहीं वश में, ए तुं सब जाने रे । अहो मेरा आतम जाने रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ २ ॥ नरके रखडतां निगोद में पडतां, प्रभुजी बचावो रे । सुख संपद लावो रे, कर्मों को जरी रोकना ॥३॥ तिर्यंच दुखीयां, देव भी दुखिया, मानव दुःख दावो रे । न होय धर्म सहावो रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ ४ ॥ आत्म कमल में, धर्म अमल में, शुभ लब्धि जगावो रे। मुझे प्रभु शिवपुर ठावो रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ ५॥ गायन नं. ७७ ( तर्ज-मेरे मौला बुलालो मदीने मुझे ) मेरा जीव कर्मों से प्रभु हार गया । मेरा मन है माया में मस्तान भया ॥ टेर। हिंसा कीनी मैं झूठ बोला, चोरीयों कीनी बहु । लालच सरिता में डूबा हुं, जिन चरणा शरणा गहुँ । मेरा जीवन करियो जिणंद नया ॥ मेरा ॥ १ ॥ दान नहीं है शील नहीं है तप भी मैं कीया नहीं। भावना का लेश नाही, तुं सभी जाणे सही । तेरे आगे मुझे बहुत आती हया ॥२॥ नीच से भी नीच कामों, कर रहा मैं नित्य हुं । तेरा बनी जिणंदजी, में बहुत गुन्हेगार हुं । मोहे शुद्ध करो मोपे लाइ दया ॥ ३ ॥ लाख चौराशी फिरे, फिर भी बडा मुश्किल है । एसा जनम मानव भया, फिर क्यों भया गाफेल है ? । मैने युही ये रतन गुमाय दीया ॥ ४ ॥ नाम तेरा काम आना, और मायाजाल है। इसके सहारे पालिया, दृष्टान्तरत्नसमुच्चय किं. ०-१-० For Private And Personal Use Only

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