Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay
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।। ४ ।। आत्म कमलमां प्रभु ध्याननी, धारुं वासना । लब्धि सूरि मुज फेरा टालो, भवोभव पासना ॥ ५ ॥
गायन नं. ७५
( तर्ज-आनंद मंगल गावो ) प्रभु दरबारे आवो, स्वामीनां गुण गावो । आवो लाहो फरी नहीं आवशे ॥ टेर ॥ प्रभुनी जाऊं बलिहारी, कर्मोने नाखो वारी । नरनारी गुणो तमारा गावशे ॥ प्रभु ॥ १ ॥ तारा चरणे आव्यो, हुं भक्ति भेटणुं लाग्यो । मोहराजा हवे नहीं फावशे ॥२॥ शासन प्रभुनु मलीयुं, हवे भवनुं दुःख टलीयुं । मध्यदरिये नैया हमारी चालशे ॥ ३॥ क्रोध मानने मारो, माया लोभ छै नठारो । तेने वारो तो जरूर ए हालशे ॥ ४ ॥ प्रभुजी मने मलीया, सुरतरु
आंगणे फलीया । मुक्ति रमा मां जल्दी ए म्हालशे ॥ ५ ॥ प्रभु तमारी वाणी, जे मानशे प्रमाणी । ते प्राणीने जरूर ए तारशे ॥६॥ प्रभुना गुण मैं गाया, पावन थइ मारी काया । तारी कृपा ए कर्मो चीसो पाडशे ॥७॥ आत्म कमलना दरिया, लब्धि गुणो ए भरीआ । तेथी जयंत गुणो तारा धारशे ॥
गायन नं. ७६ ( तर्ज-ओ मोटरवाले रे मोटर को जरा रोकना )
ओ पार्श्व भटेवा रे, कर्मों को जरी रोकना ॥ टेर । काम न वश में, क्रोध न वश में, ए तुं सब जाने रे । अहो मेरो
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(५०)
स्तवनमंजरी
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