Book Title: Stavan Manjari
Author(s): Amrutlal Mohanlal Sanghvi
Publisher: Sambhavnath Jain Pustakalay

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गायन न. ७० पारस की छवि देख के मनडो मोह्यो रे ॥टेर। मैं तो गया था दर्शन करन को, दर्शन कीना रे। तन मन से ध्यान लगाय के, दर्शन कीना रे ॥ तन ॥ १ ॥ मैं तो गया था पूजन करन को, पूजा कीनी रे ॥ तन ॥ २ ॥ मैं तो गया था धूप करन को, अगर उखेव्यु रे ।। तन ।। ३ ।। मैं तो गया था दीप करन को, दीपक कीना रे ॥ तन ॥ ४ ॥ मैं तो गया था भक्ति करन को, भक्ति कीनी रे ॥ तन ॥ ५ ॥ मैं तो गया था आरती करन को, आरति कीनी रे ॥ तन ॥ ६ ॥ ओसियाँ मण्डल हर्ष सहित हो, जिन गुण गाया रे ॥ तन ॥ ७ ॥ गायन नं. ७१ ( राग-गुंजत क्यां भमरा ? ) चिंतत क्यां मनवा न जिनवर, दावानल में तु दहना ॥चिंतत।। श्री जिनराज के गुण भवन में, सेजन में ठाई रसीयां ॥ चिंतत ॥ आत्म ज्योत को खोल खेलारी, रमत आतम भाव दीलारी, आत्म कमल ए लब्धि सुधा ॥ चिंतत ।। गायन नं. ७२ मोरवा पपईया बोले पीउ पीउ घनमें, नेम पिया वसे सहसाबन में ॥ टेर । निशि अंधीयारीकारी बिजुरी डरावे, दुजी विरह व्याकुल भइ तन में ॥ १ ॥ झिरमिर झिरमिर बरसत दादुर, सोर ( ४८ ) घर का डाक्टर किं.: ०-२-५ For Private And Personal Use Only

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