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रह्या उघाडा, जंबू दे गया ताला रे || मांसु० ॥ १० ॥ साल बहोत्तर तीर्थ ओसियां, गयवर प्रभु गुण गाया रे । मूर्ति मनोहर प्रथम जिनंद की, प्रणमुं पायारे ॥ मांसु ।। ११ ।।
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गायन नं. ४८
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( तर्ज - चालों संग सब पूजनको गुरु श्री अभिनंदनस्वामी सदा, सब के ही वांछित पूरते हैं । मूर्ति प्रभु की शान्त निरख कर, भव की बाधा टालते हैं रे || टेर || राग न द्वेष किसी से प्रभु को, सुखी सब प्राणी को चाहते हैं रे ॥ १ ॥ सिद्धार्थ के जो हैं दुलारे, दीनों को अपनाते हैं रे || २ || कपि लंडन के धारणकर्ता, सुरनर सब गुण गाते हैं रे ॥ ३ ॥ शरणागत के पालक प्रभु हैं, भव से पीछा छुड़ाते हैं रे || ४ || ओसियां मण्डल धन को शरणा, चरणों में शिर नवाते हैं रे ॥ ५ ॥
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गायन नं. ४९
( तज फागणकी गाली )
प्रभु वीरतणो उपदेशके दिल में धारणा रे । भवियण जनम मरण मिट जाय, फेर नहिं आवणा रे || ढेर || कक्का कल्पसूत्र सुन सारी, खख्खा खेंवा पार लगारी । गग्गा ज्ञान से कहो बिचारी, घाघट बिच प्रभु को राख फेर नहिं आवणा रे || प्रभु० ॥ १ ॥ चच्चा चउदा सुपना देखो, छछछा छीन छीन रो लेवो लेखो ।
स्तवनमंजरी.
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